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इ॒म आ या॑त॒मिन्द॑व॒: सोमा॑सो॒ दध्या॑शिरः सु॒तासो॒ दध्या॑शिरः। उ॒त वा॑मु॒षसो॑ बु॒धि सा॒कं सूर्य॑स्य र॒श्मिभि॑:। सु॒तो मि॒त्राय॒ वरु॑णाय पी॒तये॒ चारु॑र्ऋ॒ताय॑ पी॒तये॑ ॥

English Transliteration

ima ā yātam indavaḥ somāso dadhyāśiraḥ sutāso dadhyāśiraḥ | uta vām uṣaso budhi sākaṁ sūryasya raśmibhiḥ | suto mitrāya varuṇāya pītaye cārur ṛtāya pītaye ||

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Pad Path

इ॒मे। आ। या॒त॒म्। इन्द॑वः। सोमा॑सः। दधि॑ऽआशिरः। सु॒तासः॑। दधि॑ऽआशिरः। उ॒त। वा॒म्। उ॒षसः॑। बु॒धि। सा॒कम्। सूर्य॑स्य। र॒श्मिऽभिः॑। सु॒तः। मि॒त्राय। वरु॑णाय। पी॒तये॑। चारुः॑। ऋ॒ताय॑। पी॒तये॑ ॥ १.१३७.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:137» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:1» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:20» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ओषधि आदि पदार्थों के रस के पीने आदि के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे पढ़ाने वा पढ़नेवाले ! जो (चारुः) सुन्दर (मित्राय) मित्र के लिये (पीतये) पीने को और (वरुणाय) उत्तम जन के लिये (ऋताय) सत्याचरण और (पीतये) पीने को (उषसः) प्रभात वेला के (बुधि) प्रबोध में (सूर्य्यस्य) सूर्यमण्डल की (रश्मिभिः) किरणों के (साकम्) साथ ओषधियों का रस (सुतः) सब ओर से सिद्ध किया गया है उसको तुम (आयातम्) प्राप्त होओ तथा (वाम्) तुम्हारे लिये (इमे) ये (इन्दवः) गीले वा टपकते हुए (सोमासः) दिव्य ओषधियों के रस और (दध्याशिरः) जो पदार्थ दही के साथ भोजन किये जाते उनके समान (दध्याशिरः) दही से मिले हुए भोजन (सुतासः) सिद्ध किये गये हैं (उत) उन्हें भी प्राप्त होओ ॥ २ ॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि इस संसार में जितने रस वा ओषधियों को सिद्ध करें, उन सबको मित्रपन और उत्तम कर्म सेवने को तथा आलस्यादि दोषों के नाश करने को समर्पण करें ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथौषध्यादिरसपानविषयमाह ।

Anvay:

हेऽध्यापकाऽध्येतारौ यश्चारुर्मित्राय पीतये वरुणायर्ताय पीतये चोषसो बुधि सूर्यस्य रश्मिभिः साकं सोमस्सुतस्तं युवामायातम्। वां य इम इन्दवः सोमासो दध्याशिर इव दध्याशिरस्सुतासः सन्ति तानुताप्यायातम् ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (इमे) (आ) (यातम्) (इन्दवः) आर्द्रीभूताः (सोमासः) दिव्यौषधिरसाः (दध्याशिरः) ये दध्ना अश्यन्ते ते (सुतासः) संपादिताः (दध्याशिरः) (उत) अपि (वाम्) युवाभ्याम् (उषसः) (बुधि) बोधे। अत्र संपदादिलक्षणः क्विप्। (साकम्) सह (सूर्य्यस्य) (रश्मिभिः) किरणैः (सुतः) अभिनिष्पादितः (मित्राय) सुहृदे (वरुणाय) वराय (पीतये) पानाय (चारुः) सुन्दरः (ऋताय) सत्याचाराय (पीतये) पानाय ॥ २ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैरस्मिन्संसारे यावन्तो रसा ओषधयश्च निर्मातव्यास्तावन्तः सर्वे सौहार्दोत्तमकर्मसेवनायालस्यादिनाशाय च समर्पणीयाः ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या जगात जितका रस किंवा औषधी सिद्ध केली जाते त्या सर्वांना माणसांनी सौहार्द व उत्तम कर्म अंगीकारण्यासाठी तसेच आळस इत्यादी दोषांचा नाश करण्यासाठी समर्पित करावे. ॥ २ ॥