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यासां॑ ति॒स्रः प॑ञ्चा॒शतो॑ऽभिव्ल॒ङ्गैर॒पाव॑पः। तत्सु ते॑ मनायति त॒कत्सु ते॑ मनायति ॥

English Transliteration

yāsāṁ tisraḥ pañcāśato bhivlaṅgair apāvapaḥ | tat su te manāyati takat su te manāyati ||

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Pad Path

यासा॑म्। ति॒स्रः। प॒ञ्चा॒शतः॑। अ॒भि॒ऽव्ल॒ङ्गैः। अ॒प॒ऽअव॑पः। तत्। सु। ते॒। म॒ना॒य॒ति॒। त॒कत्। सु। ते॒। म॒ना॒य॒ति॒ ॥ १.१३३.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:133» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:22» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:19» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे परम उत्तम धनयुक्त राजन् ! (यासाम्) जिन शत्रुसेनाओं के बीच (तिस्रः) तीन वा (पञ्चाशतः) पचास सेनाओं को (अभिव्लङ्गैः) चारों ओर से जाने-आने आदि व्यवहारों से (अपावपः) दूर पहुँचाओ, उन सेनाओं का (तत्) वह पहुँचाना (ते) तेरे लिये (सुमनायति) अच्छे अपने मन के समान आचरण करता फिर भी (तकत्) वह (ते) तेरे लिये (सुमनायति) अच्छे अपने मन के समान आचरण करता है ॥ ४ ॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि ऐसा बल बढ़ावें जिससे एक ही वीर पचास दुष्ट शत्रुओं को जीते और अपने बल की रक्षा करे ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मघवन् यासां तिस्राः पञ्चाशतः सेना अभिव्लङ्गैरपावपस्तासां तत् ते सुमनायति तकत् ते सु मनायति ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (यासाम्) (तिस्रः) त्रित्वसंख्याताः (पञ्चाशतः) एतत्संख्याताः (अभिव्लङ्गैः) अभितो गमनागमनैः (अपावपः) दूरे प्रक्षिप (तत्) (सु) (ते) तुभ्यम् (मनायति) आत्मनो मन इवाचरति (तकत्) (सु) (ते) तुभ्यम् (मनायति) ॥ ४ ॥
Connotation: - मनुष्यैरीदृशं बलं वर्द्धनीयं येनैकोऽपि दुष्टानां सार्धशतस्य विजयं कुर्यात् स्वकीयं बलं रक्षेत् ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी असे बल वाढवावे की, ज्यामुळे एकच वीर पन्नास दुष्ट शत्रूंना जिंकू शकेल व स्वतःच्या बलाचे रक्षण करील. ॥ ४ ॥