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यु॒वं तमि॑न्द्रापर्वता पुरो॒युधा॒ यो न॑: पृत॒न्यादप॒ तंत॒मिद्ध॑तं॒ वज्रे॑ण॒ तंत॒मिद्ध॑तम्। दू॒रे च॒त्ताय॑ च्छन्त्स॒द्गह॑नं॒ यदिन॑क्षत्। अ॒स्माकं॒ शत्रू॒न्परि॑ शूर वि॒श्वतो॑ द॒र्मा द॑र्षीष्ट वि॒श्वत॑: ॥

English Transliteration

yuvaṁ tam indrāparvatā puroyudhā yo naḥ pṛtanyād apa taṁ-tam id dhataṁ vajreṇa taṁ-tam id dhatam | dūre cattāya cchantsad gahanaṁ yad inakṣat | asmākaṁ śatrūn pari śūra viśvato darmā darṣīṣṭa viśvataḥ ||

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Pad Path

यु॒वम्। तम्। इ॒न्द्रा॒प॒र्व॒ता॒। पु॒रः॒ऽयुधा॑। यः। नः॒। पृ॒त॒न्यात्। अप॑। तम्ऽत॑म्। इत्। ह॒त॒म्। वज्रे॑ण। तम्ऽत॑म्। इत्। ह॒त॒म्। दू॒रे। च॒त्ताय॑। छ॒न्त्स॒त्। गह॑नम्। यत्। इन॑क्षत्। अ॒स्माक॑म्। शत्रू॑न्। परि॑। शू॒र॒। वि॒श्वतः॑। द॒र्मा। द॒र्षी॒ष्ट॒। वि॒श्वतः॑ ॥ १.१३२.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:132» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:21» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:19» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर सेना जन परस्पर कैसे वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (पुरोयुधा) पहिले युद्ध करनेवाले (इन्द्रापर्वता) सूर्य्य और मेघ के समान वर्त्तमान सभा सेनाधीशो ! (युवम्) तुम (यः) जो (नः) हम लोगों की (पृतन्यात्) सेना को चाहे (तम्) उसको (वज्रेण) पैने तीक्ष्ण शस्त्र वा अस्त्र अर्थात् कलाकौशल से बने हुए शस्त्र से (अप, हतम्) अत्यन्त मारो, जैसे तुम दोनों जिस जिसको (हतम्) मारो (तं तम्) उस उसको (इत्) ही हम लोग भी मारें और जिस जिसको हम लोग मारें (तं तम्) उस उसको (इत्) ही तुम मारो। हे (शूर) शूरवीर ! (दर्मा) शत्रुओं को विदीर्ण करते हुए आप जिन (अस्माकम्) हमारे (शत्रून्) शत्रुओं को (विश्वतः) सब ओर से (दर्षीष्ट) दरो विदीर्ण करो, इनको हम लोग भी (विश्वतः) सब ओर से (परि) सब प्रकार दरें विदीर्ण करें, (यत्) जो (चत्ताय) माँगे हुए के लिये (गहनम्) कठिन व्यवहार को (दूरे) दूर में (छन्त्सत्) स्वीकार करे और शत्रुओं की सेना को (इनक्षत्) व्याप्त हो, उसकी तुम निरन्तर रक्षा करो ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सेना पुरुषों को जो सेनापति आदि पुरुषों के शत्रु हैं, वे अपने भी शत्रु जानने चाहिये, शत्रुओं से परस्पर फूट को न प्राप्त हुए धार्मिक जन उन शत्रुओं को विदीर्ण कर प्रजाजनों की रक्षा करें ॥ ६ ॥इस सूक्त में राजधर्म का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥यह एकसौ बत्तीसवाँ सूक्त और इक्कीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सेनाजनाः परस्परं कथं वर्त्तेरन्नित्याह ।

Anvay:

हे पुरोयुधेन्द्रापर्वता युवं यो नः पृतन्यात् तं वज्रेणाऽप हतं यथा युवां यं यं हतं तंतमिद्वयमपि हन्याम। यं यं वयं हन्याम तंतमिद् युवामप हतम्। हे शूर दर्मा त्वं यानस्माकं शत्रून्विश्वतो दर्षीष्ट तान्वयमपि विश्वतो परि दर्षीष्महि यच्चत्ताय गहनं दूरे छन्त्सत् शत्रुसेनामिनक्षत् तं युवां सततं रक्षतम् ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (युवम्) युवाम् (तम्) (इन्द्रापर्वता) सूर्यमेघाविव वर्त्तमानौ सभासेनेशौ (पुरोयुधा) पुरः पूर्वं युध्येते यौ तौ (यः) (नः) अस्माकम् (पृतन्यात्) पृतनां सेनामिच्छेत् (अप) (तंतम्) (इत्) एव (हतम्) नाशयतम् (वज्रेण) तीव्रेण शस्त्राऽस्त्रेण (तंतम्) (इत्) एव (हतम्) (दूरे) (चत्ताय) याचिताय (छन्त्सत्) संवृणुयात् (गहनम्) कठिनम् (यत्) यः (इनक्षत्) व्याप्नुयात् (अस्माकम्) (शत्रून्) (परि) (शूर) (विश्वतः) सर्वतः (दर्मा) विदारकः सन् (दर्षीष्ट) दृणीहि (विश्वतः) अभितः ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। सेनापुरुषैर्ये सेनेशादीनां शत्रवस्सन्ति ते स्वेषामपि शत्रवो वेद्याः शत्रुभिः परस्परं भेदमप्राप्ताः संतः शत्रून् विदीर्य प्रजाः संरक्षन्तु ॥ ६ ॥अत्र राजधर्मवर्णनादेतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति बोध्यम् ॥इति द्वात्रिंशदुत्तरं शततमं सूक्तमेकविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सेनेतील माणसांनी सेनापतीचे शत्रू आपले शत्रू समजले पाहिजेत. शत्रूतील परस्पर भेद जाणून धार्मिक लोकांनी शत्रूंचा नाश करून प्रजेचे रक्षण केले पाहिजे. ॥ ६ ॥