Go To Mantra

स नो॒ नव्ये॑भिर्वृषकर्मन्नु॒क्थैः पुरां॑ दर्तः पा॒युभि॑: पाहि श॒ग्मैः। दि॒वो॒दा॒सेभि॑रिन्द्र॒ स्तवा॑नो वावृधी॒था अहो॑भिरिव॒ द्यौः ॥

English Transliteration

sa no navyebhir vṛṣakarmann ukthaiḥ purāṁ dartaḥ pāyubhiḥ pāhi śagmaiḥ | divodāsebhir indra stavāno vāvṛdhīthā ahobhir iva dyauḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

सः। नः॒। नव्ये॑भिः। वृ॒ष॒ऽक॒र्म॒न्। उ॒क्थैः। पुरा॑म्। द॒र्त॒रिति॑ दर्तः। पा॒युऽभिः॑। पा॒हि॒। श॒ग्मैः। दि॒वः॒ऽदा॒सेभिः॑। इ॒न्द्र॒। स्तवा॑नः। व॒वृ॒धी॒थाः। अहो॑भिःऽइव। द्यौः ॥ १.१३०.१०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:130» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:19» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:19» Mantra:10


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा और प्रजाजनों को परस्पर कैसे वर्त्तना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (वृषकर्मन्) जिनके वर्षनेवाले मेघ के कामों के समान काम वह (पुराम्) शत्रुनगरों को (दर्त्तः) दरने-विदारने-विनाशने (इन्द्र) और सबकी रक्षा करनेवाले हे सेनापति ! (दिवोदासेभिः) जो प्रकाश देनेवाली (स्तवानः) स्तुति प्रशंसा को प्राप्त हुए हैं (सः) वह आप (नव्येभिः) नवीन (उक्थैः) प्रशंसा करने योग्य (शग्मैः) सुखों और (पायुभिः) रक्षाओं से (द्यौः) जैसे सूर्य (अहोभिरिव) दिनों से वैसे (नः) हम लोगों की (पाहि) रक्षा करें और (वावृधीथाः) वृद्धि को प्राप्त होवें ॥ १० ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। राजपुरुषों को सूर्य के समान विद्या, उत्तम शिक्षा और धर्म के उपदेश से प्रजाजनों को उत्साह देना और उनकी प्रशंसा करनी चाहिये और वैसे ही प्रजाजनों को राजजन वर्त्तने चाहिये ॥ १० ॥इस सूक्त में राजा और प्रजाजन के काम का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ एकता है, यह जाननी चाहिये ॥ यह एकसौ १३० तीसवाँ सूक्त और १९ उन्नीसवाँ वर्ग पूरा हुआ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुना राजप्रजाजनैः परस्परं कथं वर्त्तितव्यमित्याह ।

Anvay:

हे वृषकर्मन् पुरां दत्तरिन्द्र यो दिवोदासेभिः स्तवानः स त्वं नव्येभिरुक्थैश्शग्मैः पायुभिर्द्यौरहोभिरिव नः पाहि वावृधीथाः ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (सः) (नः) अस्मान् (नव्येभिः) नवीनैः (वृषकर्मन्) वृषस्य मेघस्य कर्माणीव कर्माणि यस्य तत्सम्बुद्धौ (उक्थैः) प्रशंसनीयैः (पुराम्) शत्रुनगराणाम् (दर्त्तः) विदारक (पायुभिः) रक्षणैः (पाहि) रक्ष (शग्मैः) सुखैः। शग्ममिति सुखना०। निघं० ३। ६। (दिवोदासेभिः) प्रकाशस्य दातृभिः (इन्द्र) सर्वरक्षक सभेश (स्तवानः) स्तूयमानः। अत्र कर्मणि शानच्। (वावृधीथाः) वर्धेथाः। अत्र वाच्छन्दसीति शपः श्लुः, तुजादीनामित्यभ्यासस्य दैर्घ्यम्, वाच्छन्दसीत्युपधागुणो न। (अहोभिरिव) यथा दिवसैः (द्यौः) सूर्य्यः ॥ १० ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। राजपुरुषैः सूर्यवत् विद्यासुशिक्षाधर्मोपदेशैः प्रजा उत्साहनीयाः प्रशंसनीयाश्चैवं प्रजाजनैः राजजनाश्चेति ॥ १० ॥अत्र राजप्रजाकर्मवर्णनादेतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥इति त्रिंशदुत्तरं शततमं सूक्तमेकोनविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. राजपुरुषांनी सूर्याप्रमाणे विद्या, उत्तम शिक्षण व धर्माच्या उपदेशाने प्रजेला उत्साहित करावे व त्यांची प्रशंसा करावी. तसेच प्रजेनेही राजाबरोबर वागावे. ॥ १० ॥