ता सु॑जि॒ह्वा उप॑ह्वये॒ होता॑रा॒ दैव्या॑ क॒वी। य॒ज्ञं नो॑ यक्षतामि॒मम्॥
tā sujihvā upa hvaye hotārā daivyā kavī | yajñaṁ no yakṣatām imam ||
ता। सु॒ऽजि॒ह्वौ। उप॑। ह्व॒ये॒। होता॑रा। दैव्या॑। क॒वी इति॑। य॒ज्ञम् नः॒। य॒क्ष॒ता॒म्। इ॒मम्॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब अगले मन्त्र में उन अग्नियों का उपदेश किया है कि जो शुद्ध करनेवाले विद्युद्रूप से अप्रसिद्ध और प्रत्यक्ष स्थूलरूप से प्रसिद्ध हैं-
SWAMI DAYANAND SARSWATI
तत्र शोधकौ प्रसिद्धाप्रसिद्धावग्नी उपदिश्येते।
अहं क्रियाकाण्डाऽनुष्ठाताऽस्मिन् गृहे यौ नोऽस्माकमिमं यज्ञं यक्षतां सङ्गमयतस्तौ सुजिह्वौ होतारौ कवी दैव्यावुपह्वये सामीप्ये स्पर्द्धे॥८॥
MATA SAVITA JOSHI
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