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स्तृ॒णी॒त ब॒र्हिरा॑नु॒षग्घृ॒तपृ॑ष्ठं मनीषिणः। यत्रा॒मृत॑स्य॒ चक्ष॑णम्॥

English Transliteration

stṛṇīta barhir ānuṣag ghṛtapṛṣṭham manīṣiṇaḥ | yatrāmṛtasya cakṣaṇam ||

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Pad Path

स्तृ॒णी॒त। ब॒र्हिः। आ॒नु॒षक्। घृ॒तऽपृ॑ष्ठम्। म॒नी॒षि॒णः॒। यत्र॑। अ॒मृत॑स्य। चक्ष॑णम्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:13» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:24» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह भौतिक अग्नि उक्त प्रकार से क्रिया में युक्त किया हुआ क्या करता है, सो अगले मन्त्र में उपदेश किया है-

Word-Meaning: - हे (मनीषिणः) बुद्धिमान् विद्वानो ! (यत्र) जिस अन्तरिक्ष में (अमृतस्य) जलसमूह का (चक्षणम्) दर्शन होता है, उस (आनुषक्) चारों ओर से घिरे और (घृतपृष्ठम्) जल से भरे हुए (बर्हिः) अन्तरिक्ष को (स्तृणीत) होम के धूम से आच्छादन करो, उसी अन्तरिक्ष में अन्य भी बहुत पदार्थ जल आदि को जानो॥५॥
Connotation: - विद्वान् लोग अग्नि में जो घृत आदि पदार्थ छोड़ते हैं, वे अन्तरिक्ष को प्राप्त होकर वहाँ के ठहरे हुए जल को शुद्ध करते हैं, और वह शुद्ध हुआ जल सुगन्धि आदि गुणों से सब पदार्थों को आच्छादन करके सब प्राणियों को सुखयुक्त करता है॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स एवं सम्प्रयुक्तः किं करोतीत्युपदिश्यते।

Anvay:

हे मनीषिणो यत्रामृतस्य चक्षणं वर्तते तदानुषग्घृतपृष्ठं बर्हिः स्तृणीताच्छादयत॥५॥

Word-Meaning: - (स्तृणीत) आच्छादयत (बर्हिः) अन्तरिक्षम् (आनुषक्) अभितो यदनुषङ्गि तत् (घृतपृष्ठम्) घृतमुदकं पृष्ठे यस्मिँस्तत् (मनीषिणः) मेधाविनो विद्वांसः। मनीषीति मेधाविनामसु पठितम्। (निघं०३.१५) (यत्र) यस्मिन्नन्तरिक्षे (अमृतस्य) उदकसमूहस्य। अमृतमित्युदकनामसु पठितम्। (निघं०१.१२) (चक्षणम्) दर्शनम्। ‘चक्षिङ् दर्शने’ इत्यस्माल्ल्युटि प्रत्यये परे असनयोश्च। (अष्टा०२.४.५४) इति वार्तिकेन ख्याञादेशाभावः॥५॥
Connotation: - विद्वद्भिरग्नौ यद् घृतादिकं प्रक्षिप्यते तदन्तरिक्षानुगतं भूत्वा तत्रस्थस्य जलसमूहस्य शोधकं जायते, तच्च सुगन्ध्यादिगुणैः सर्वान् पदार्थानाच्छाद्य सर्वान् प्राणिनः सुखयुक्तान् सद्यः सम्पादयतीति॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - विद्वान लोक अग्नीत जे घृत इत्यादी पदार्थ टाकतात ते अंतरिक्षातील जल शुद्ध करतात व ते शुद्ध जल सुगंधित होऊन सर्व पदार्थांना आच्छादित करून सर्व प्राण्यांना सुखी करते. ॥ ५ ॥