Go To Mantra

नरा॒शंस॑मि॒ह प्रि॒यम॒स्मिन्य॒ज्ञ उप॑ह्वये। मधु॑जिह्वं हवि॒ष्कृत॑म्॥

English Transliteration

narāśaṁsam iha priyam asmin yajña upa hvaye | madhujihvaṁ haviṣkṛtam ||

Mantra Audio
Pad Path

नरा॒शंस॑म्। इ॒ह। प्रि॒यम्। अ॒स्मिन्। य॒ज्ञे। उप॑। ह्व॒ये॒। मधु॑ऽजिह्वम्। ह॒विः॒ऽकृत॑म्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:13» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:24» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:4» Mantra:3


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अगले मन्त्र में मनुष्यों के प्रशंसा करने योग्य भौतिक अग्नि के गुणों का उपदेश किया है-

Word-Meaning: - मैं (अस्मिन्) इस (यज्ञे) अनुष्ठान करने योग्य यज्ञ तथा (इह) संसार में (हविष्कृतम्) जो कि होम करने योग्य पदार्थों से प्रदीप्त किया जाता है और (मधुजिह्वम्) जिसकी काली, कराली, मनोजवा, सुलोहिता, सुधूम्रवर्णा, स्फुलिङ्गिनी और विश्वरूपी ये अति प्रकाशमान चपल ज्वालारूपी जीभें हैं (प्रियम्) जो सब जीवों को प्रीति देने और (नराशंसम्) जिस सुख की मनुष्य प्रशंसा करते हैं, उसके प्रकाश करनेवाले अग्नि को (उपह्वये) समीप प्रज्वलित करता हूँ॥३॥
Connotation: - जो भौतिक अग्नि इस संसार में होम के निमित्त युक्ति से ग्रहण किया हुआ प्राणियों की प्रसन्नता करानेवाला है, उस अग्नि की सात जीभें हैं अर्थात् काली जो कि सुपेद आदि रङ्ग का प्रकाश करनेवाली, कराली-सहने में कठिन, मनोजवा-मन के समान वेगवाली, सुलोहिता-जिसका उत्तम रक्तवर्ण है, सुधूम्रवर्णा-जिसका सुन्दर धुमलासा वर्ण है, स्फुलिङ्गिनी-जिससे बहुत से चिनगे उठतें हों तथा विश्वरूपी-जिसका सब रूप हैं। ये देवी अर्थात् अतिशय करके प्रकाशमान और लेलायमाना-प्रकाश से सब जगह जानेवाली सात प्रकार की जिह्वा हैं अर्थात् सब पदार्थों को ग्रहण करनेवाली होती हैं। इस उक्त सात प्रकार की अग्नि की जीभों से सब पदार्थों में उपकार लेना मनुष्यों को चाहिये॥३॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

नरैः प्रशंसनीयस्य भौतिकाग्नेर्गुणा उपदिश्यन्ते।

Anvay:

अहमस्मिन् यज्ञे इह संसारे च हविष्कृतं मधुजिह्वं प्रियं नराशंसमग्निमुपह्वय उपगम्योपतापये॥३॥

Word-Meaning: - (नराशंसम्) नरैरभितः शस्यते प्रशस्यते तं सुखसमूहकारकम्। नराशंसो यज्ञ इति कात्थक्यो नरा अस्मिन्नासीनाः शंसन्त्यग्निमिति शाकपूणिर्नरैः प्रशस्यो भवति। (निरु०८.६) (इह) अस्मद्भोगविषये संसारे (प्रियम्) प्रीणति सर्वान् प्राणिनस्तम् (अस्मिन्) प्रत्यक्षे (यज्ञे) यष्टव्ये (उप) उपगतभोगद्योतने (ह्वये) उपतापये (मधुजिह्वम्) मधुरगुणसम्पादिका जिह्वा ज्वाला यस्य तम्। जिह्वा जोहुवा। (निरु०५.२६) काली कराली च मनोजवा च सुलोहिता या च सुधूम्रवर्णा। स्फुलिङ्गिनी विश्वरूपी च देवी लेलायमाना इति सप्त जिह्वाः॥ इति मुण्डकोपनि० (मुण्डक १.२.४) (हविष्कृतम्) हविर्भिः क्रियते तम्। अत्र वर्त्तमानकाले कर्मण्यौणादिकः क्तः प्रत्ययः॥३॥
Connotation: - योऽयं भौतिकोऽग्निरस्मिन् जगति युक्त्या सेवितः प्राणिनां प्रियकारी भवति, तस्याऽग्नेः सप्त जिह्वाः सन्ति। काली=शुक्लादिवर्णप्रकाशिका, कराली=दुःसहा, मनोजवा=मनोवद्वेगवती, सुलोहिता= शोभनो लोहितो रक्तो वर्णो यस्याः सा, सुधूम्रवर्णा=शोभनो धूम्रो वर्णो यस्याः सा, स्फुलिङ्गिनी=बहवः स्फुलिङ्गाः कणा विद्यन्ते यस्यां सा। अत्र भूम्न्यर्थ इनिः। विश्वरूपी=विश्वं सर्वं रूपं यस्याः सा। इति सप्तविधा। पुनः सा किं भूता देवी देदीप्यमाना, लेलायमाना लेलायति सर्वत्र प्रकाशयति या सा। अत्र लेला दीप्तावित्यस्मात् कण्ड्वादित्वाद्यक्। व्यत्ययेनात्मनेपदं च। सा जिह्वाऽर्थाज्जोहुवा पुनः पुनः सर्वान् पदार्थान् जुहोत्यादत्तेऽसाविति॥३॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जो भौतिक अग्नी या जगात होमाच्या निमित्ताने युक्तीने ग्रहण केलेला असतो, तो प्राण्यांना प्रसन्न करणारा असतो. त्या अग्नीच्या सात जिव्हा असतात. काली - काळे-पांढरे रंग प्रदर्शित करणारी, कराली- सहन करण्यास कठीण, मनोजवा- मनाप्रमाणे वेगवान, सुलोहिता- जिचा उत्तम रक्तवर्ण आहे, सुधूम्रवर्णा- जिचा सुंदर धूम्रयुक्त वर्ण आहे, स्फुल्लिङ्गिनी - जिच्यातून स्फुल्लिंग बाहेर पडतात तसेच विश्वरूपी- जिचे सर्व रूप आहे ती देवी अर्थात अतिशय प्रकाशमान व लोलायमाना - प्रकाशाने सर्वत्र जाणारी अशा सात प्रकारच्या जिव्हा आहेत. अर्थात सर्व पदार्थांना ग्रहण करणाऱ्या आहेत. या वरील सात प्रकारच्या अग्नीच्या जिव्हांद्वारे माणसांनी सर्व पदार्थांत त्यांचा उपयोग करून घेतला पाहिजे. ॥ ३ ॥