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मधु॑मन्तं तनूनपाद्य॒ज्ञं दे॒वेषु॑ नः कवे। अ॒द्या कृ॑णुहि वी॒तये॑॥

English Transliteration

madhumantaṁ tanūnapād yajñaṁ deveṣu naḥ kave | adyā kṛṇuhi vītaye ||

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Pad Path

मधु॑ऽमन्तम्। त॒नू॒ऽन॒पा॒त्। य॒ज्ञम्। दे॒वेषु॑। नः॒। क॒वे॒। अ॒द्य। कृ॒णु॒हि॒। वी॒तये॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:13» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:24» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:4» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर भी अगले मन्त्र में शरीर आदि की रक्षा करनेवाले भौतिक अग्नि के गुण वर्णन किये हैं-

Word-Meaning: - जो (तनूनपात्) शरीर तथा ओषधि आदि पदार्थों के छोटे-छोटे अंशों का भी रक्षा करने और (कवे) सब पदार्थों का दिखलानेवाला अग्नि है, वह (देवेषु) विद्वानों तथा दिव्यपदार्थों में (वीतये) सुख प्राप्त होने के लिये (अद्य) आज (नः) हमारे (मधुमन्तम्) उत्तम-उत्तम रसयुक्त (यज्ञम्) यज्ञ को (कृणुहि) निश्चित करता है॥२॥
Connotation: - जब अग्नि में सुगन्धि आदि पदार्थों का हवन होता है, तभी वह यज्ञ वायु आदि पदार्थों को शुद्ध तथा शरीर और ओषधि आदि पदार्थों की रक्षा करके अनेक प्रकार के रसों को उत्पन्न करता है, तथा वह यज्ञ उन शुद्ध पदार्थों के भोग से प्राणियों के विद्या ज्ञान और बल की वृद्धि भी होती है॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः शरीरादिसंरक्षकाग्नेर्गुणा उपदिश्यन्ते।

Anvay:

यस्तूनपात्कविरग्निर्देवेषु सुखस्य वीतयेऽद्य नो मधुमन्तं यज्ञं कुणुहि कृणोति॥२॥

Word-Meaning: - (मधुमन्तम्) मधवः प्रशस्ता रसा विद्यन्ते यस्य तम् (तनूनपात्) तनूनां शरीरौषध्यादीनामूनानि न्यूनान्युपाङ्गानि पाति रक्षति सः। इमं शब्दं यास्कमुनिरेवं समाचष्टे-तनूनपात् आज्यमिति कात्थक्यः। नपादित्यननन्तरायाः प्रजाया नामधेयम्। निर्णततमा भवति। गौरत्र तनूरुच्यते। तता अस्यां भोगाः। तस्याः पयो जायते। पयस आज्यं जायते। अग्निरिति शाकपूणिः। आपोऽत्र तन्व उच्यन्ते। तता अन्तरिक्षे। ताभ्य ओषधिवनस्पतयो जायन्ते। ओषधिवनस्पतिभ्य एष जायते। (निरु०८.५) (यज्ञम्) यजनीयम् (देवेषु) विद्वत्सु दिव्येषु पदार्थेषु वा (नः) अस्माकम् (कवे) कविः क्रान्तदर्शनः (अद्य) अस्मिन् दिने। अत्र निपातस्य च। (अष्टा०६.३.१३६) इति सूत्रेण दीर्घः। (कृणुहि) करोति। अत्र व्यत्ययः, कृवि हिंसाकरणयोश्चेत्यस्माल्लडर्थे लोट्। उतश्च प्रत्ययाच्छन्दो वा वचनम्। (अष्टा०६.४.१०६) इति वार्त्तिकेन हेर्लुगभावः। (वीतये) प्राप्तये॥२॥
Connotation: - यदाऽग्नौ हविर्हूयते तदैवायं वाय्वादीन् शुद्धान् कृत्वा शरीरौषध्यादीन् रक्षयित्वाऽनेकविधान् रसान् जनयति, तैः शुद्धैर्भुक्तैश्च प्राणिनां विद्याज्ञानबलवृद्धिरपि जायत इति॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जेव्हा अग्नीत सुगंधी पदार्थ घालून हवन केले जाते तेव्हा तो यज्ञ वायू इत्यादी पदार्थांना शुद्ध करतो व शरीर आणि औषधी इत्यादी पदार्थांचे रक्षण करतो. तसेच अनेक प्रकारचे रस उत्पन्न करतो. त्या शुद्ध पदार्थांच्या सेवनामुळे प्राण्यांच्या विद्या, ज्ञान, बल यांच्यात वाढ होते. ॥ २ ॥