Go To Mantra

अव॑ सृजा वनस्पते॒ देव॑ दे॒वेभ्यो॑ ह॒विः। प्र दा॒तुर॑स्तु॒ चेत॑नम्॥

English Transliteration

ava sṛjā vanaspate deva devebhyo haviḥ | pra dātur astu cetanam ||

Mantra Audio
Pad Path

अव॑। सृ॒ज॒। व॒न॒स्प॒ते॒। देव॑। दे॒वेभ्यः॑। ह॒विः। प्र। दा॒तुः। अ॒स्तु॒। चेत॑नम्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:13» Mantra:11 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:25» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:4» Mantra:11


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

वह अग्नि किससे प्रज्वलित हुआ इन कार्य्यों को सिद्ध करता है, इसका उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - जो (देव) फल आदि पदार्थों को देनेवाला (वनस्पतिः) वनों के वृक्ष और ओषधि आदि पदार्थों को अधिक वृष्टि के हेतु से पालन करनेवाला (देवेभ्यः) दिव्यगुणों के लिये (हविः) हवन करने योग्य पदार्थों को (अवसृज) उत्पन्न करता है, वह (प्रदातुः) सब पदार्थों की शुद्धि चाहनेवाले विद्वान् जन के (चेतनम्) विज्ञान को उत्पन्न करानेवाला (अस्तु) होता है॥
Connotation: - मनुष्यों ने पृथिवी तथा सब पदार्थ जलमय युक्ति से क्रियाओं में युक्त किये हुए अग्नि से प्रदीप्त होकर रोगों की निर्मूलता से बुद्धि और बल को देने के कारण ज्ञान के बढ़ाने के हेतु होकर दिव्यगुणों का प्रकाश करते हैं॥११॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

सोऽग्निः केन प्रदीप्तः सन्नेत्कार्य्यं साधयतीत्युपदिश्यते।

Anvay:

अयं देवो वनस्पतिर्देवेभ्यस्तद्धविरवसृजति यत्प्रदातुः सर्वपदार्थशोधयितुर्विदुषश्चेतनमस्तु भवति॥११॥

Word-Meaning: - (अव) विनिग्रहार्थीयः (सृज) सृजति। अत्र व्यत्ययः। द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (वनस्पते) यो वनानां वृक्षौषध्यादिसमूहानामधिकवृष्टिहेतुत्वेन पालयितास्ति सोऽपुष्पः फलवान्। अपुष्पाः फलवन्तो ये ते वनस्पतयः स्मृताः। (मनु०१.४७) (देव) देवः फलादीनां दाता (देवेभ्यः) दिव्यगुणेभ्यः (हविः) हवनीयम्। (प्र) प्रकृष्टार्थे (दातुः) शोधयतुः। ‘दैप् शोधने’ इत्यस्य रूपम्। (अस्तु) भवति। अत्र लडर्थे लोट्। (चेतनम्) चेतयति येन तत्॥११॥
Connotation: - मनुष्यैः पृथिवीजलमयाः सर्वे पदार्था युक्त्या सम्प्रयोजिता अग्नेः प्रदीपका भूत्वा रोगाणां विनिग्रहेण बुद्धिबलप्रदत्वाद्विज्ञानवृद्धिहेतवो भूत्वा दिव्यगुणान् प्रकाशयन्तीति॥११॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - पृथ्वी व जलीय सर्व पदार्थ युक्तीने क्रियेमध्ये संप्रयोजित केलेल्या अग्नीने प्रदीप्त होऊन रोगांचे निर्मूलन करतात व त्यामुळे बुद्धी बल वाढून ते विज्ञानवृद्धीचा हेतू बनतात व दिव्य गुणांना प्रकट करतात, हे माणसांनी जाणावे. ॥ ११ ॥