इ॒ह त्वष्टा॑रमग्रि॒यं वि॒श्वरू॑प॒मुप॑ ह्वये। अ॒स्माक॑मस्तु॒ केव॑लः॥
iha tvaṣṭāram agriyaṁ viśvarūpam upa hvaye | asmākam astu kevalaḥ ||
इ॒ह। त्वष्टा॑रम्। अ॒ग्रि॒यम्। वि॒श्वऽरू॑पम्। उप॑। ह्व॒ये॒। अ॒स्माक॑म्। अ॒स्तु॒। केव॑लः॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वहाँ क्या-क्या करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तत्र किं किं कार्य्यमित्युपदिश्यते।
अहं यं विश्वरूपमग्रियं त्वष्टारमग्निं परमात्मानमिहोपह्वये सम्यक् स्पर्द्धे स एवास्माकं केवल इष्टोऽस्त्वित्येकः।अहं यं विश्वरूपमग्रियं त्वष्टारं भौतिकमग्निमिहोपह्वये सोऽस्माकं केवलोऽसाधारणसाधनोऽस्तु भवतीति द्वितीयः॥१०॥
MATA SAVITA JOSHI
N/A