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क्रत्वा॒ यद॑स्य॒ तवि॑षीषु पृ॒ञ्चते॒ऽग्नेरवे॑ण म॒रुतां॒ न भो॒ज्ये॑षि॒राय॒ न भो॒ज्या॑। स हि ष्मा॒ दान॒मिन्व॑ति॒ वसू॑नां च म॒ज्मना॑। स न॑स्त्रासते दुरि॒ताद॑भि॒ह्रुत॒: शंसा॑द॒घाद॑भि॒ह्रुत॑: ॥

English Transliteration

kratvā yad asya taviṣīṣu pṛñcate gner aveṇa marutāṁ na bhojyeṣirāya na bhojyā | sa hi ṣmā dānam invati vasūnāṁ ca majmanā | sa nas trāsate duritād abhihrutaḥ śaṁsād aghād abhihrutaḥ ||

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Pad Path

क्रत्वा॑। यत्। अ॒स्य॒। तवि॑षीषु। पृ॒ञ्चते॑। अ॒ग्नेः। अवे॑न। म॒रुता॒म्। न। भो॒ज्या॑। इ॒षि॒राय। न। भो॒ज्या॑। सः। हि। स्म॒। दान॑म्। इन्व॑ति। वसू॑नाम्। च॒। म॒ज्मना॑। सः। नः॒। त्रा॒स॒ते॒। दुः॒ऽइ॒तात्। अ॒भि॒ऽह्रुतः॑। शंसा॑त्। अ॒घात्। अ॒भि॒ऽह्रुतः॑ ॥ १.१२८.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:128» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:14» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:19» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

इस संसार में उत्तम सुख का विधान करनेवाले कौन होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यत्) जो (अस्य) इस सेनापति की (क्रत्वा) बुद्धि और (अवेन) रक्षा आदि काम से (मरुताम्) पवनों और (अग्नेः) बिजुली आग की (इषिराय) विद्या को प्राप्त हुए पुरुष के लिये (भोज्या) भोजन करने योग्य पदार्थों के (न) समान वा (भोज्या) पालने योग्य पदार्थों के (न) समान पदार्थों का (तविषीषु) प्रशंसित बलयुक्त सेनाओं में (पृञ्चते) सम्बन्ध करता वा जो (हि) ठीक-ठीक (मज्मना) बल से (वसूनाम्) प्रथम कक्षावाले विद्वानों तथा (च) पृथिव्यादि लोकों का (दानम्) जो दिया जाता पदार्थ उसको (इन्वति) प्राप्ति होता वा जो (नः) हम लोगों को (अभिह्रुतः) क्षागे आये हुए कुटिल (दुरितात्) दुःखदायी (अभिह्रुतः) सब ओर से टेढ़े-मेढ़े छोटे-बड़े (अघात्) पाप से (त्रासते) उद्वेग करता अर्थात् उठाता वा (शंसात्) प्रशंसा से संयोग कराता (सः, स्म) वही सुख को प्राप्त होता और (सः) वह सुख करनेवाला होता तथा वही विद्वान् सबके सत्कार करने योग्य और वह सभों की ओर से रक्षा करनेहारा होता है ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो उत्तम शिक्षा और विद्या के दान से दुष्टस्वभावी प्राणियों और अधर्म के आचरणों से निवृत्त कराके अच्छे गुणों में प्रवृत्त कराते, वे इस संसार में कल्याण करनेवाले धर्मात्मा विद्वान् होते हैं ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

केऽत्र कल्याणविधायका भवन्तीत्याह ।

Anvay:

यदस्य क्रत्वाऽवेन मरुतामग्नेरिषिराय भोज्या नेव भोज्या न तविषीषु पृञ्चते यो हि मज्मना वसूनां च दानमिन्वति यो नोऽभिह्रुतो दुरितादभिह्रुतोऽघात् त्रासते शंसात् संयोजयति स स्म सुखं प्राप्नोति स च सुखकारी जायते स स्म विद्वान् पूज्यः स सर्वाऽभिरक्षको भवति ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (क्रत्वा) प्रज्ञया (यत्) यः (अस्य) सेनेशस्य (तविषीषु) प्रशस्तबलयुक्तासु सेनासु (पृञ्चते) सम्बध्नाति (अग्नेः) विद्युतः (अवेन) रक्षणाद्येन (मरुताम्) वायूनाम् (न) इव (भोज्या) भोक्तुं योग्यानि (इषिराय) प्राप्तविद्याय (न) इव (भोज्या) पालयितुं योग्यानि (सः) (हि) (स्म) एव। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (दानम्) दीयत यत्तत् (इन्वति) प्राप्नोति (वसूनाम्) प्रथमकोटिप्रविष्टानां विदुषाम् (च) पृथिव्यादीनां वा (मज्मना) बलेन (सः) (नः) अस्मान् (त्रासते) उद्वेजयति (दुरितात्) दुःखप्रदायिनः (अभिह्रुतः) आभिमुख्यं प्राप्तात् कुटिलात् (शंसात्) प्रशंसनात् (अघात्) पापात् (अभिह्रुतः) अभितः सर्वतो वक्रात् ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ये सुशिक्षाविद्यादानेन दुष्टस्वभावगुणेभ्योऽधर्माचरणेभ्यश्च निवर्त्य शुभगुणेषु प्रवर्त्तयन्ति तेऽत्र कल्याणकारका आप्ता भवन्ति ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे उत्तम शिक्षण व विद्या यांनी दुष्ट स्वभावाच्या प्राण्यांना आणि अधर्माचे आचरण करणाऱ्यांना वाईट गुणांपासून निवृत्त करून चांगल्या गुणात प्रवृत्त करवितात ते या जगात कल्याण करणारे धार्मिक विद्वान असतात. ॥ ५ ॥