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त्वम॑ग्ने॒ सह॑सा॒ सह॑न्तमः शु॒ष्मिन्त॑मो जायसे दे॒वता॑तये र॒यिर्न दे॒वता॑तये। शु॒ष्मिन्त॑मो॒ हि ते॒ मदो॑ द्यु॒म्निन्त॑म उ॒त क्रतु॑:। अध॑ स्मा ते॒ परि॑ चरन्त्यजर श्रुष्टी॒वानो॒ नाज॑र ॥

English Transliteration

tvam agne sahasā sahantamaḥ śuṣmintamo jāyase devatātaye rayir na devatātaye | śuṣmintamo hi te mado dyumnintama uta kratuḥ | adha smā te pari caranty ajara śruṣṭīvāno nājara ||

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Pad Path

त्वम्। अ॒ग्ने॒। सह॑सा। सह॑न्ऽतमः। शु॒ष्मिन्ऽत॑मः। जा॒य॒से॒। दे॒वऽता॑तये। र॒यिः। न। दे॒वऽता॑तये। शु॒ष्मिन्ऽत॑मः॑। हि। ते॒। मदः॑। द्यु॒म्निन्ऽत॑मः। उ॒त। क्रतुः॑। अध॑। स्म॒। ते॒। परि॑। च॒र॒न्ति॒। अ॒ज॒र॒। श्रु॒ष्टी॒वानः॑। न। अ॒ज॒र॒ ॥ १.१२७.९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:127» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:13» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:19» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर राजा आदि कैसे होते, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अजर) तरुण अवस्थावाले के (न) समान (अजर) अजन्मा परमेश्वर में रमते हुए (अग्ने) शूरवीर विद्वान् ! (देवतातये) विद्वान् के लिये (रयिः) धन जैसे (न) वैसे (देवतातये) विद्वानों के सत्कार के लिये (सहन्तमः) अतीव सहनशील (शुष्मिन्तमः) अत्यन्त प्रशंसित बलवान् (त्वम्) आप (सहसा) बल से (जायसे) प्रकट होते हो जिन (ते) आपका (शुष्मिन्तमः) अत्यन्त बलयुक्त (द्युम्निन्तमः) जिनके सम्बन्ध में बहुत धन विद्यमान वह अत्यन्त धनी (मदः) हर्ष (उत) और (क्रतुः) यज्ञ (हि) ही है (अध) अनन्तर (ते) आपके (श्रुष्टीवानः) शीघ्र क्रियावाले (स्म) ही (परि, चरन्ति) सब ओर से चलते वा आपकी परिचर्या करते उन आपका हम लोग आश्रय करें ॥ ९ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य शरीर और आत्मा के बल से युक्त, अच्छे प्रकार ज्ञाता, विद्या आदि धन प्रकाश युक्त सन्तानोंवाले होते हैं, वे सुख करनेवाले होते हैं ॥ ९ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः राजादयो जनाः कीदृशा जायन्त इत्याह ।

Anvay:

हे अजर नेवाजराग्ने विद्वन् देवतातये रयिर्नेव देवतातये सहन्तमः शुष्मिन्तमस्त्वं सहसा जायसे यस्य ते तव शुष्मिन्तमो द्युम्निन्तमो मद उतापि क्रतुर्हि विद्यते। अध ते तव श्रुष्टीवानः स्म परिचरन्ति तं त्वां सर्वे वयमाश्रयेम ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (अग्ने) शूरवीर विद्वन् (सहसा) बलेन (सहन्तमः) अतिशयेन सह इति सहन्तमः (शुष्मिन्तमः) प्रशंसितं बलं विद्यते यस्य स शुष्मी सोऽतिशयितः (जायसे) (देवतातये) देवाय विदुषे (रयिः) श्रीः (न) इव (देवतातये) देवानां विदुषामेव सत्काराय (शुष्मिन्तमः) अतिशयेन बलवान् (हि) खलु (ते) तव (मदः) हर्षः (द्युम्निन्तमः) बहूनि द्युम्नानि धनानि विद्यन्ते यस्य स द्युम्नी इति द्युम्निन्तमः अत्र सर्वत्र नाद्घस्य। अष्टा० ८। २। १७। इति नुट् । (उत) अपि (क्रतुः) (अध) आनन्तर्ये (स्म) एव। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (ते) तव (परि) सर्वतः (चरन्ति) (अजर) जरादोषरहित (श्रुष्टीवानः) शीघ्रक्रियायुक्ताः (न) इव (अजर) योऽजे जन्मरहित ईश्वरे रमते तत्सम्बुद्धौ। अत्र वाच्छन्दसीत्यविहितो डः ॥ ९ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः सशरीरात्मबलाः प्राज्ञाः श्रीमत्प्रजा जायन्ते ते सुखकारका भवन्ति ॥ ९ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार अहे. जी माणसे शरीर व आत्मा यांच्या बलाने युक्त, प्राज्ञ, विद्या इत्यादी धन, उत्तम संतान यांनी युक्त असतात, ती सुख देणारी असतात. ॥ ९ ॥