विश्वा॑सां त्वा वि॒शां पतिं॑ हवामहे॒ सर्वा॑सां समा॒नं दम्प॑तिं भु॒जे स॒त्यगि॑र्वाहसं भु॒जे। अति॑थिं॒ मानु॑षाणां पि॒तुर्न यस्या॑स॒या। अ॒मी च॒ विश्वे॑ अ॒मृता॑स॒ आ वयो॑ ह॒व्या दे॒वेष्वा वय॑: ॥
viśvāsāṁ tvā viśām patiṁ havāmahe sarvāsāṁ samānaṁ dampatim bhuje satyagirvāhasam bhuje | atithim mānuṣāṇām pitur na yasyāsayā | amī ca viśve amṛtāsa ā vayo havyā deveṣv ā vayaḥ ||
विश्वा॑साम्। त्वा॒। वि॒शाम्। पति॑म्। ह॒वा॒म॒हे॒। सर्वा॑साम्। स॒मा॒नम्। दम्ऽप॑तिम्। भु॒जे। स॒त्यऽगि॑र्वाहसम्। भु॒जे। अति॑थिम्। मानु॑षाणाम्। पि॒तुः। न। यस्य॑। आ॒स॒या। अ॒मी इति॑। च॒। विश्वे॑। अ॒मृता॑सः। आ। वयः॑। ह॒व्या। दे॒वेषु॑। आ। वयः॑ ॥ १.१२७.८
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब कैसे राजा और प्रजाजनों की उन्नति हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अथ कथं राजप्रजाजनोन्नतिः स्यादित्याह ।
हे मनुष्य यथा वयं भुजे विश्वासां विशां सर्वासां प्रजानां पतिं त्वा हवामहे। यथा चामी देवेष्वा वयो हव्या गृहीतवन्त आवयो विश्वेऽमृतासस्सन्तो वयं यस्यासया पितुर्न भुजे मानुषाणां समानमतिथिं सत्यगिर्वाहसं त्वां पतिं हवामहे तथा दम्पतिं भजामः ॥ ८ ॥
MATA SAVITA JOSHI
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