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स हि पु॒रू चि॒दोज॑सा वि॒रुक्म॑ता॒ दीद्या॑नो॒ भव॑ति द्रुहन्त॒रः प॑र॒शुर्न द्रु॑हन्त॒रः। वी॒ळु चि॒द्यस्य॒ समृ॑तौ॒ श्रुव॒द्वने॑व॒ यत्स्थि॒रम्। नि॒:षह॑माणो यमते॒ नाय॑ते धन्वा॒सहा॒ नाय॑ते ॥

English Transliteration

sa hi purū cid ojasā virukmatā dīdyāno bhavati druhaṁtaraḥ paraśur na druhaṁtaraḥ | vīḻu cid yasya samṛtau śruvad vaneva yat sthiram | niḥṣahamāṇo yamate nāyate dhanvāsahā nāyate ||

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Pad Path

सः। हि। पु॒रु। चि॒त्। ओज॑सा। वि॒रुक्म॑ता। दीद्या॑नः। भव॑ति। द्रु॒ह॒म्ऽत॒रः। प॒र॒शुः। न। द्रु॒ह॒न्त॒रः। वी॒ळु। चि॒त्। यस्य॑। सम्ऽऋ॑तौ। श्रुव॑त्। वना॑ऽइव। यत्। स्थि॒रम्। निः॒ऽसह॑माणः। य॒म॒ते॒। न। अ॒य॒ते॒। ध॒न्व॒ऽसहा॑। न। अ॒य॒ते॒ ॥ १.१२७.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:127» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:12» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:19» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

इस संसार में कौन प्रजा की पालना करने के लिये उत्तम होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यस्य) जिसकी (समृतौ) अच्छे प्रकार प्राप्ति करानेवाली क्रिया के निमित्त (चित्) ही (वनेव) वनों के समान (वीळु) दृढ़ (स्थिरम्) निश्चल बल को (निःसहमानः) निरन्तर सहनशील वीरोंवाला (श्रुवत्) सुनता हुआ शत्रुओं को (यमते) नियम में लाता अर्थात् उनके सुने हुए उस बल को छिन्न-भिन्न कर उनको शत्रुता करने से रोकता वा जिसको शत्रुजन (नायते) नहीं प्राप्त होता वा (धन्वासह) जो अपने धनुष् से शत्रुओं को सहनेवाला शत्रु जनों को अच्छे प्रकार जीतता वा (यत्) जिसके विजय को शत्रु जन (नायते) नहीं प्राप्त होता वा जो (द्रुहन्तरः) द्रोह करनेवालों को तरता वह (परशुः) फरसा वा कुलाड़ा के (न) समान (पुरु) तीव्र बहुत प्रकार से ज्यों हो त्यों (विरुक्मता) जिससे अनेक प्रकार की प्रीतियाँ हों उस (ओजसा) बल के साथ (दीद्यानः) प्रकाशमान (द्रुहन्तरः) द्रुहन्तर (भवति) होता अर्थात् जिसके सहाय से अति द्रोह करनेवाले शत्रु को जीतता (सः, हि, चित्) वही कभी विजयी होते हैं ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्यों को जानना चाहिये कि जो शत्रुओं से नहीं पराजित होता और अपने प्रशंसित बल से उनको जीत सकता है, वही प्रजा पालनेवालों में शिरोमणि होता है ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

कोऽत्र प्रजापालनायोत्तमो भवतीत्याह ।

Anvay:

हे मनुष्या यस्य समृतौ चिद्वनेव वीळु स्थिरं बलं यो निःसहमानः श्रुवत् शत्रून् यमते यं शत्रुर्नायते धन्वासहारीन् विजयते यत् यस्य विजयं शत्रुर्नायते यो द्रुहन्तरः परशुर्न पुरु विरुक्मतौजसा सह दीद्यानो द्रुहन्तरो भवति स हि चिद्विजयी जायते ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (सः) सभेशः (हि) किल (पुरु) बहु। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (चित्) अपि (ओजसा) बलेन (विरुक्मता) विविधा रुचो भवन्ति यस्मात्तेन (दीद्यानः) प्रकाशमानः (भवति) (द्रुहन्तरः) यो दोग्धॄन् तरति (परशुः) कुठारः (न) इव (द्रुहन्तरः) द्रुहं तरति येन सः (वीळु) दृढम् (चित्) (यस्य) (समृतौ) सम्यक् ऋतिः प्राप्तिर्यया तस्याम् (श्रुवत्) यः शृणोति सः (वनेव) यथा वनानि तथा (यत्) (स्थिरम्) निश्चलम् (निःसहमानः) नितरां सहमाना वीरा यस्य सः (यमते) यच्छति। अत्र वाच्छन्दसीति छादेशो न। (न) निषेधे (अयते) प्राप्नोति (धन्वासहा) यो धनुषा शत्रून् सहते। अत्र छन्दसोऽन्त्यलोपः। (न) निषेधे (अयते) प्राप्नोति ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्यः शत्रुभिर्नाभिभूयते प्रशस्तबलेन तान् विजेतुं शक्नोति स एव प्रजापालकेषु शिरोमणिर्भवतीति वेदितव्यम् ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो शत्रूंकडून पराजित होत नाही व आपल्या प्रशंसनीय बलाने त्यांना जिंकतो तोच प्रजेचे पालन करण्यात श्रेष्ठ ठरतो हे माणसांनी जाणले पाहिजे. ॥ ३ ॥