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स नो॒ नेदि॑ष्ठं॒ ददृ॑शान॒ आ भ॒राग्ने॑ दे॒वेभि॒: सच॑नाः सुचे॒तुना॑ म॒हो रा॒यः सु॑चे॒तुना॑। महि॑ शविष्ठ नस्कृधि सं॒चक्षे॑ भु॒जे अ॒स्यै। महि॑ स्तो॒तृभ्यो॑ मघवन्त्सु॒वीर्यं॒ मथी॑रु॒ग्रो न शव॑सा ॥

English Transliteration

sa no nediṣṭhaṁ dadṛśāna ā bharāgne devebhiḥ sacanāḥ sucetunā maho rāyaḥ sucetunā | mahi śaviṣṭha nas kṛdhi saṁcakṣe bhuje asyai | mahi stotṛbhyo maghavan suvīryam mathīr ugro na śavasā ||

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Pad Path

सः। नः॒। नेदि॑ष्ठम्। ददृ॑शानः। आ। भ॒र॒। अग्ने॑। दे॒वेभिः॑। सऽच॑नाः। सुऽचे॒तुना॑। म॒हः। रा॒यः। सु॒ऽचे॒तुना॑। महि॑। श॒वि॒ष्ठ॒। नः॒। कृ॒धि॒। स॒म्ऽचक्षे॑। भु॒जे। अ॒स्यै। महि॑। स्तो॒तृऽभ्यः॑। म॒घ॒ऽव॒न्। सु॒ऽवीर्य॑म्। मथीः॑। उ॒ग्रः। न। शव॑सा ॥ १.१२७.११

Rigveda » Mandal:1» Sukta:127» Mantra:11 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:13» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:19» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्यार्थियों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (मघवन्) प्रशंसित धनयुक्त (शविष्ठ) अतीव बलवान् विद्यादि गुणों को पाये हुए (अग्ने) अग्नि के समान प्रकाशमान (सः) वह (ददृशानः) देखे हुए विद्वान् ! आप (सुचेतुना) सुन्दर समझनेवाले और (देवेभिः) विद्वानों के साथ (नः) हम लोगों के लिये (महः) बहुत (सचनाः) सम्बन्ध करने योग्य (रायः) धनों को (आ, भर) अच्छे प्रकार धारण करें (अस्यै) इस प्रजा के लिये (संचक्षे) उत्तमता में कहने उपदेश देने और (भुजे) इसको पालना करने के लिये (शवसा) अपने पराक्रम से (उग्रः) प्रचण्ड प्रतापवान् (न) के समान (मथीः) दुष्टों को मथनेवाले आप (नेदिष्ठम्) अत्यन्त समीप (महि) बहुत (सुवीर्यम्) उत्तम पराक्रम को अच्छे प्रकार धारण करो और इस (सुचेतुना) सुन्दर ज्ञान देनेवाले गुण से (महि) अधिकता से जैसे हो वैसे (स्तोतृभ्यः) स्तुति प्रशंसा करनेवालों से (नः) हम लोगों को विद्यावान् (कृधि) करो ॥ ११ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। विद्यार्थियों को चाहिये कि सकल शास्त्र पढ़े हुए धार्मिक विद्वानों की प्रार्थना और सेवा कर पूरी विद्याओं को पावें, जिससे राजा और प्रजाजन विद्यावान् होकर निरन्तर धर्म का आचरण करें ॥ ११ ॥इस सूक्त में विद्वान् और राजधर्म का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ एकता जाननी चाहिये ॥ यह एकसौ सत्ताईसवाँ सूक्त और तेरहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्यार्थिभिः किं कर्त्तव्यमित्याह ।

Anvay:

हे मघवन् शविष्ठाग्ने स ददृशानस्त्वं सुचेतुना देवेभिश्च सह नो महः सचना राय आभरास्यै प्रजायै संचक्षे भुजे शवसोग्रो न मथीस्त्वं नेदिष्ठं महि सुवीर्यमाभराऽनेन सुचेतुना महि स्तोतृभ्यो नोऽस्मान्विद्यावतः कृधि ॥ ११ ॥

Word-Meaning: - (सः) विद्वान् (नः) अस्मभ्यम् (नेदिष्ठम्) अतिशयेनान्तिकम् (ददृशानः) दृष्टवान् सन् (आ) समन्तात् (भर) धर (अग्ने) पावक इव वर्त्तमान (देवेभिः) विद्वद्भिः सह (सचनाः) समवेतुं योग्याः (सुचेतुना) सुष्ठुविज्ञात्रा (महः) महतः (रायः) धनानि (सुचेतुना) सुष्ठु चेतयित्रा (महि) महत् (शविष्ठ) अतिशयेन बलवान् प्राप्तविद्य (नः) अस्मान् (कृधि) कुरु (संचक्षे) सम्यगाख्यानाय (भुजे) पालनाय (अस्यै) प्रजायै (महि) महद्भ्यः (स्तोतृभ्यः) (मघवन्) पूजितधनयुक्त (सुवीर्यम्) शोभनं पराक्रमम् (मथीः) या दुष्टान् मथ्नाति सः (उग्रः) तेजस्वी (न) इव (शवसा) बलेन ॥ ११ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। विद्यार्थिभिराप्तानध्यापकान् संप्रार्थ्य संसेव्य पूर्णा विद्याः प्रापणीयाः। येन राजप्रजाजना विद्यावन्तो भूत्वा सततं धर्ममाचरेयुः ॥ ११ ॥इति सप्तविंशत्युत्तरं शततमं सूक्तं त्रयोदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. विद्यार्थ्यांनी संपूर्ण शास्त्र शिकलेल्या धार्मिक विद्वानांची प्रार्थना व सेवा करून पूर्ण विद्या प्राप्त करावी. ज्यामुळे राजा व प्रजा यांनी विद्यायुक्त होऊन निरंतर धर्माचे आचरण करावे. ॥ ११ ॥