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नाक॑स्य पृ॒ष्ठे अधि॑ तिष्ठति श्रि॒तो यः पृ॒णाति॒ स ह॑ दे॒वेषु॑ गच्छति। तस्मा॒ आपो॑ घृ॒तम॑र्षन्ति॒ सिन्ध॑व॒स्तस्मा॑ इ॒यं दक्षि॑णा पिन्वते॒ सदा॑ ॥

English Transliteration

nākasya pṛṣṭhe adhi tiṣṭhati śrito yaḥ pṛṇāti sa ha deveṣu gacchati | tasmā āpo ghṛtam arṣanti sindhavas tasmā iyaṁ dakṣiṇā pinvate sadā ||

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Pad Path

नाक॑स्य। पृ॒ष्ठे। अधि॑। ति॒ष्ठ॒ति॒। श्रि॒तः। यः। पृ॒णाति॑। सः। ह॒। दे॒वेषु॑। ग॒च्छ॒ति॒। तस्मै॑। आपः॑। घृ॒तम्। अ॒र्ष॒न्ति॒। सिन्ध॑वः। तस्मै॑। इ॒यम्। दक्षि॑णा। पि॒न्व॒ते॒। सदा॑ ॥ १.१२५.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:125» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:10» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:18» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

इस संसार में मनुष्यों को किन कामों से मोक्ष प्राप्त हो सकता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यः) जो मनुष्य (देवेषु) दिव्यगुण वा उत्तम विद्वानों में (गच्छति) जाता है (सः, ह) वही विद्या के (श्रितः) आश्रय को प्राप्त हुआ (नाकस्य) जिसमें किञ्चित् दुःख नहीं उस उत्तम सुख के (पृष्ठे) आधार (अधि, तिष्ठति) पर स्थिर होता वा (पृणाति) विद्या उत्तम शिक्षा और अच्छे बनाए हुए अन्न आदि पदार्थों से आप पुष्ट होता और सन्तान को पुष्ट करता है (तस्मै) उसके लिये (आपः) प्राण वा जल (सदा) सब कभी (घृतम्) घी (अर्षन्ति) वर्षाते तथा (तस्मै) उसके लिये (इयम्) यह पढ़ाने से मिली हुई (दक्षिणा) और (सिन्धवः) नदीनद (सदा) सब कभी (पिन्वते) प्रसन्नता करते हैं ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य इस मनुष्य देह का आश्रय कर सत्पुरुषों का सङ्ग और धर्म के अनुकूल आचरण को सदा करते वे सदैव सुखी होते हैं। जो विद्वान् वा जो विदुषी पण्डिता स्त्री, बालक, ज्वान और बुड्ढे मनुष्यों तथा कन्या, युवति और बुड्ढी स्त्रियों को निष्कपटता से विद्या और उत्तम शिक्षा को निरन्तर प्राप्त कराते, वे इस संसार में समग्र सुख को प्राप्त होकर अन्तकाल में मोक्ष को अधिगत होते अर्थात् अधिकता से प्राप्त होते हैं ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैः कैः कर्मभिरत्र मोक्ष आप्तव्य इत्याह।

Anvay:

यो मनुष्यो देवेषु गच्छति स ह विद्यामाश्रितः सन् नाकस्य पृष्ठेऽधि तिष्ठति सर्वान् पृणाति तस्मा आपः सदा घृतमर्षन्ति तस्मा इयं दक्षिणा सिन्धवः सदा पिन्वते ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (नाकस्य) अविद्यमानदुःखस्यानन्दस्य (पृष्ठे) आधारे (अधि) उपरिभावे (तिष्ठति) (श्रितः) विद्यामाश्रितः (यः) (पृणाति) विद्यासुशिक्षासंस्कृताऽन्नाद्यैः स्वयं पुष्यति सन्तानात् पोषयति च (सः) (ह) किल (देवेषु) दिव्येषु गुणेषु विद्वत्सु वा (गच्छति) (तस्मै) (आपः) प्राणा जलानि वा (घृतम्) आज्यम् (अर्षन्ति) वर्षन्ति (सिन्धवः) नद्यः (तस्मै) (इयम्) अध्यापनजन्या (दक्षिणा) (पिन्वते) प्रीणाति (सदा) ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या नरदेहमाश्रित्य सत्पुरुषसङ्गं धर्म्याऽचारं च सदा कुर्वन्ति ते सदैव सुखिनो भवन्ति। ये विद्वांसो या विदुष्यो बालकान् यूनो वृद्धांश्च कन्या युवतिर्वृद्धाश्च निष्कपटतया विद्यासुशिक्षे सततं प्रापयन्ति तेऽत्राखिलं सुखं प्राप्य मोक्षमधिगच्छन्ति ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे मनुष्य देह प्राप्त करून सत्पुरुषांचा संग व धर्मानुकूल आचरण करतात ती सदैव सुखी होतात. जे विद्वान किंवा विदुषी, बालक, तरुण, वृद्धांना तसेच बालिका, तरुणी, वृद्ध स्त्रियांना निष्कपटीपणाने विद्या व उत्तम शिक्षण देववितात ते या संसारात संपूर्ण सुख प्राप्त करून शेवटी मोक्ष प्राप्त करतात. ॥ ५ ॥