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आय॑म॒द्य सु॒कृतं॑ प्रा॒तरि॒च्छन्नि॒ष्टेः पु॒त्रं वसु॑मता॒ रथे॑न। अं॒शोः सु॒तं पा॑यय मत्स॒रस्य॑ क्ष॒यद्वी॑रं वर्धय सू॒नृता॑भिः ॥

English Transliteration

āyam adya sukṛtam prātar icchann iṣṭeḥ putraṁ vasumatā rathena | aṁśoḥ sutam pāyaya matsarasya kṣayadvīraṁ vardhaya sūnṛtābhiḥ ||

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Pad Path

आय॑म्। अ॒द्य। सु॒ऽकृत॑म्। प्रा॒तः। इ॒च्छन्। इ॒ष्टेः। पु॒त्रम्। वसु॑मता। रथे॑न। अं॒शोः। सु॒तम्। पा॒य॒य॒। म॒त्स॒रस्य॑। क्ष॒यत्ऽवी॑रम्। व॒र्ध॒य॒। सू॒नृता॑भिः ॥ १.१२५.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:125» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:10» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:18» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर इस संसार में स्त्री और पुरुष कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे धायि ! मैं (अद्य) आज (वसुमता) प्रशंसित धनयुक्त (रथेन) मनोहर रमण करने योग्य रथ आदि यान से (प्रातः) प्रभात समय (इष्टेः) चाहे हुए गृहाश्रम के स्थान से (सुकृतम्) धर्मयुक्त काम की (इच्छन्) इच्छा करता हुआ जिस (पुत्रम्) पवित्र बालक को (आयम्) पाऊँ उस (सुतम्) उत्पन्न हुए पुत्र को (मत्सरस्य) आनन्द करानेवाला जो (अंशोः) स्त्री का शरीर उसके भाग से जो रस अर्थात् दूध उत्पन्न होता उस दूध को (पायय) पिला। हे वीर ! (सूनृताभिः) विद्या सत्य भाषण आदि शुभगुणयुक्त वाणियों से (क्षयद्वीरम्) शत्रुओं का क्षय करनेवालों में प्रशंसित वीर पुरुष की (वर्द्धय) उन्नति कर ॥ ३ ॥
Connotation: - स्त्री-पुरुष पूरे ब्रह्मचर्य से विद्या का संग्रह और एक-दूसरे की प्रसन्नता से विवाह कर धर्मयुक्त व्यवहार से पुत्र आदि सन्तानों को उत्पन्न करें और उनकी रक्षा कराने के लिये धर्मवती धायि को देवें और वह इस सन्तान को उत्तम शिक्षा से युक्त करे ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरत्र स्त्रीपुरुषौ कीदृशौ भवेतामित्याह ।

Anvay:

हे धात्रि अहमद्य वसुमता रथेन प्रातरिष्टेः सुकृतमिच्छन् यं पुत्रमायँस्तं सुतं मत्सरस्यांशो रसं पायय सूनृताभिः क्षयद्वीरं वर्द्धय ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (आयम्) आगच्छेयं प्राप्नुयाम् (अद्य) अस्मिन् दिने (सुकृतम्) धर्म्यं कर्म (प्रातः) प्रभाते (इच्छन्) (इष्टेः) इष्टस्य गृहाश्रमस्य स्थानात् (पुत्रम्) पवित्रं तनयम् (वसुमता) प्रशंसितधनयुक्तेन (रथेन) रमणीयेन यानेन (अंशोः) स्त्रीशरीरस्य भागात् (सुतम्) उत्पन्नम् (पायय) (मत्सरस्य) हर्षनिमित्तस्य (क्षयद्वीरम्) क्षयतां शत्रुहन्तॄणां मध्ये प्रशंसायुक्तम् (वर्द्धय) उन्नय (सूनृताभिः) विद्यासत्यभाषणादिशुभगुणयुक्ताभिर्वाणीभिः ॥ ३ ॥
Connotation: - स्त्रीपुरुषौ पूर्णब्रह्मचर्य्येण विद्यां संगृह्य परस्परस्य प्रसन्नतया विवाहं कृत्वा धर्म्येण व्यवहारेण पुत्रादीनुत्पादयेताम्। तद्रक्षायै धार्मिकीं धात्रीं समर्प्पयेतां सा चेमं सुशिक्षया सम्पन्नं कुर्यात् ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - स्त्री-पुरुषांनी पूर्ण ब्रह्मचर्याने विद्या संग्रहित करावी. परस्पर प्रसन्नतेने विवाह करून धर्मयुक्त व्यवहाराने पुत्र इत्यादी संतानांना उत्पन्न करावे. त्यांचे रक्षण करण्यासाठी धार्मिक दायीला ठेवावे. तिने संतानांना उत्तम शिक्षण देऊन संपन्न करावे. ॥ ३ ॥