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यद॒द्य भा॒गं वि॒भजा॑सि॒ नृभ्य॒ उषो॑ देवि मर्त्य॒त्रा सु॑जाते। दे॒वो नो॒ अत्र॑ सवि॒ता दमू॑ना॒ अना॑गसो वोचति॒ सूर्या॑य ॥

English Transliteration

yad adya bhāgaṁ vibhajāsi nṛbhya uṣo devi martyatrā sujāte | devo no atra savitā damūnā anāgaso vocati sūryāya ||

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Pad Path

यत्। अ॒द्य। भा॒गम्। वि॒ऽभजा॑सि। नृऽभ्यः॑। उषः॑। दे॒वि॒। म॒र्त्य॒ऽत्रा। सु॒ऽजा॒ते॒। दे॒वः। नः॒। अत्र॑। स॒वि॒ता। दमू॑नाः। अना॑गसः। वो॒च॒ति॒। सूर्या॑य ॥ १.१२३.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:123» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:4» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:18» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (सुजाते) उत्तम कीर्ति से प्रकाशित और (देवि) अच्छे लक्षणों से शोभा को प्राप्त सुलक्षणी कन्या ! तूँ (अद्य) आज (नृभ्यः) व्यवहारों की प्राप्ति करनेहारे मनुष्यों के लिये (उषः) प्रातःसमय की वेला के समान (यत्) जिन (भागम्) सेवने योग्य व्यवहार का (विभजासि) अच्छे प्रकार सेवन करती और जो (अत्र) इस गृहाश्रम में (दमूनाः) मित्रों में उत्तम (मर्त्यत्रा) मनुष्यों में (सविता) सूर्य के समान (देवः) प्रकाशमान तेरा पति (सूर्याय) परमात्मा के विज्ञान के लिये (न) हम लोगों को (अनागसः) विना अपराध के व्यवहारों को (वोचति) कहे, उन तुम दोनों का सत्कार हम लोग निरन्तर करें ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जब दो स्त्री-पुरुष विद्यावान् धर्म का आचरण और विद्या का प्रचार करनेहारे सब कभी परस्पर में प्रसन्न हों, तब गृहाश्रम में अत्यन्त सुख का सेवन करनेहारे होवें ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे सुजाते देवि कन्ये त्वमद्य नृभ्य उषरिव यद्यं भागं विभजासि यश्चात्र दमूना मर्त्यत्रा सवितेव देवस्तव पतिः सूर्याय नोऽनागसो वोचति तौ युवां वयं सततं सत्कुर्याम ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (यत्) यम् (अद्य) (भागम्) भजनीयम् (विभजासि) विभजेः (नृभ्यः) नायकेभ्यः (उषः) प्रभातवत् (देवि) सुलक्षणैः सुशोभिते (मर्त्यत्रा) मर्त्येषु मनुष्येषु (सुजाते) सत्कीर्त्या प्रकाशिते (देवः) देदीप्यमानः (नः) अस्मभ्यम् (अत्र) अस्मिन् गृहाश्रमे (सविता) सूर्यः (दमूनाः) सुहृद्वरः (अनागसः) अनपराधिनः (वोचति) उच्याः (सूर्याय) परमेश्वरविज्ञानाय ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदा द्वौ स्त्रीपुरुषौ विद्यावन्तौ धर्माचारिणौ विद्याप्रचारकौ सदा परस्परस्मिन् प्रसन्नौ भवेतां तदा गृहाश्रमेऽतीव सुखभाजिनौ स्याताम् ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जेव्हा हे दोघे स्त्री व पुरुष विद्यायुक्त बनून धर्माचे आचरण करतात व विद्येचा प्रचार करून सदैव परस्पर प्रसन्न असतात तेव्हा गृहस्थाश्रम अत्यंत सुखाचा होतो. ॥ ३ ॥