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पूर्वा॒ विश्व॑स्मा॒द्भुव॑नादबोधि॒ जय॑न्ती॒ वाजं॑ बृह॒ती सनु॑त्री। उ॒च्चा व्य॑ख्यद्युव॒तिः पु॑न॒र्भूरोषा अ॑गन्प्रथ॒मा पू॒र्वहू॑तौ ॥

English Transliteration

pūrvā viśvasmād bhuvanād abodhi jayantī vājam bṛhatī sanutrī | uccā vy akhyad yuvatiḥ punarbhūr oṣā agan prathamā pūrvahūtau ||

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Pad Path

पूर्वा॑। विश्व॑स्मात्। भुव॑नात्। अ॒बो॒धि॒। जय॑न्ती। वाज॑म्। बृ॒ह॒ती। सनु॑त्री। उ॒च्चा। वि। अ॒ख्य॒त्। यु॒व॒तिः। पु॒नः॒ऽभूः। आ। उ॒षाः। अ॒ग॒न्। प्र॒थ॒मा। पू॒र्वऽहू॑तौ ॥ १.१२३.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:123» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:4» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:18» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (पूर्वहूतौ) जिसमें वृद्धजनों का बुलाना होता उस गृहस्थाश्रम में जो (पुनर्भूः) विवाहे हुए पति के मर जाने पीछे नियोग से फिर सन्तान उत्पन्न करनेवाली होती वह (वाजम्) उत्तम ज्ञान को (जयन्ती) जीतती हुई (बृहती) बड़ी (सनुत्री) सब व्यवहारों को अलग-अलग करने और (प्रथमा) प्रथम (युवतिः) युवा अवस्था को प्राप्त होनेवाली नवोढा स्त्री जैसे (उषाः) प्रातःकाल की वेला (विश्वस्मात्) समस्त (भुवनात्) जगत् के पदार्थों से (पूर्वा) प्रथम (अबोधि) जानी जाती और (उच्चा) ऊँची-ऊँची वस्तुओं को (वि, अख्यत्) अच्छे प्रकार प्रकट करती, वैसे (आ, अगन्) आती है, वह विवाह में योग्य होती है ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सब कन्या पच्चीस वर्ष अपनी आयु को विद्या के अभ्यास करने में व्यतीत कर पूरी विद्यावाली होकर अपने समान पति से विवाह कर प्रातःकाल की वेला के समान अच्छे रूपवाली हों ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

या पूर्वहूतौ पुनर्भूर्वाजं जयन्ती बृहती सनुत्री प्रथमा युवतिर्यथोषा विश्वस्माद् भुवनात् पूर्वाऽबोधि। उच्चा व्यख्यत् तथा आगन्त्सा विवाहे योग्या भवति ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (पूर्वा) (विश्वस्मात्) अखिलात् (भुवनात्) जगत्स्थात्पदार्थसमूहात् (अबोधि) बुध्यते (जयन्ती) जयशीला (वाजम्) विज्ञानम् (बृहती) महती (सनुत्री) (विभाजिका) (उच्चा) उच्चानि वस्तूनि (वि) (अख्यत्) ख्यापयति। अत्रान्तर्गतण्यर्थः। (युवतिः) (पुनर्भूः) या विवाहितपतिमरणानन्तरं नियोगेन पुनः सन्तानोत्पादिका भवति सा (आ) (उषाः) (अगन्) गच्छति। अत्र लङि प्रथमैकवचने बहुलं छन्दसीति शपो लुक् संयोगत्वेन तलोपे मो नो धातोरिति मस्य नकारादेशः। (प्रथमा) (पूर्वहूतौ) पूर्वेषां विद्यावृद्धानां हूतिराह्वानं यस्मिन् गृहाश्रमे तस्मिन् ॥ २ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। सर्वाः कन्याः शतस्य चतुर्थांशं वयो विद्याभ्यासे व्यतीत्य पूर्णविद्या भूत्वा स्वसदृशं पतिमुदुह्य प्रभातवत्सुरूपा भवन्तु ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सर्व मुलींनी पंचवीस वर्षांपर्यंत विद्याभ्यासात आपले आयुष्य घालवावे व पूर्ण विदुषी व्हावे. आपल्या सारख्याच पुरुषाबरोबर विवाह करून प्रातःकाळच्या वेळेप्रमाणे प्रफुल्लित असावे. ॥ २ ॥