Go To Mantra

च॒त्वारो॑ मा मश॒र्शार॑स्य॒ शिश्व॒स्त्रयो॒ राज्ञ॒ आय॑वसस्य जि॒ष्णोः। रथो॑ वां मित्रावरुणा दी॒र्घाप्सा॒: स्यूम॑गभस्ति॒: सूरो॒ नाद्यौ॑त् ॥

English Transliteration

catvāro mā maśarśārasya śiśvas trayo rājña āyavasasya jiṣṇoḥ | ratho vām mitrāvaruṇā dīrghāpsāḥ syūmagabhastiḥ sūro nādyaut ||

Mantra Audio
Pad Path

च॒त्वारः॑। मा॒। म॒श॒र्शार॑स्य। शिश्वः॑। त्रयः॑। राज्ञः॑। आय॑वसस्य। जि॒ष्णोः। रथः॑। वा॒म्। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। दी॒र्घऽअ॑प्साः॒। स्यूम॑ऽगभस्तिः। सूरः॑। न। अ॒द्यौ॒त् ॥ १.१२२.१५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:122» Mantra:15 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:3» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:18» Mantra:15


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजधर्म विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (मित्रावरुणा) मित्रः और उत्तम जन ! जो (वाम्) तुम लोगों का (रथः) रथ है वह (मा) मुझको प्राप्त होवे, जिस (मशर्शारस्य) दुष्ट शब्दों का विनाश करते हुए (आयवसस्य) पूर्ण सामग्रीयुक्त (जिष्णोः) शत्रुओं को जीतनेहारे (राज्ञः) न्याय और विनय से प्रकाशमान राजा का (स्यूमगभस्तिः) बहुत किरणों से युक्त (सूरः) सूर्य के (न) समान रथ (अद्यौत्) प्रकाश करता तथा जिसके (दीर्घाप्साः) जिनको अच्छे गुणों में बहुत व्याप्ति वे (चत्वारः) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वर्ण और ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास ये चार आश्रम तथा (त्रयः) सेना आदि कामों के अधिपति, प्रजाजन तथा भृत्यजन ये तीन (शिश्वः) सिखाने योग्य हों, वह राज्य करने को योग्य हो ॥ १५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जिस राजा के राज्य में विद्या और अच्छी शिक्षायुक्त गुण, कर्म, स्वभाव से नियमयुक्त धर्मात्माजन चारों वर्ण और आश्रम तथा सेना, प्रजा और न्यायाधीश हैं, वह सूर्य्य के तुल्य कीर्त्ति से अच्छी शोभायुक्त होता है ॥ १५ ॥इस सूक्त में राजा, प्रजा और साधारण मनुष्यों के धर्म के वर्णन से इस सूक्त में कहे हुए अर्थ की पिछले सूक्त के साथ एकता है, यह जानना चाहिये ॥यह १२२ एकसौ बाईसवाँ सूक्त और तीसरा वर्ग पूरा हुआ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजधर्मविषयमाह।

Anvay:

हे मित्रावरुणा यो वां रथः स मा मां प्राप्नोतु यस्य मशर्शारस्यायवसस्य जिष्णो राज्ञः स्यूमगभस्तिः सूरो त रथोऽद्यौत् तथा यस्य दीर्घाप्साश्चत्वारस्त्रयश्च शिश्वः स्युः स राज्यं कर्तुमर्हेत् ॥ १५ ॥

Word-Meaning: - (चत्वारः) वर्णा आश्रमाश्च (मा) माम् (मशर्शारस्य) यो मशान् दुष्टान् शब्दान् शृणाति हिनस्ति तस्य। अत्र पृषोदरादिना पूर्वपदस्य रुगागमः। (शिश्वः) शासनीयाः (त्रयः) अध्यक्षप्रजाभृत्याः (राज्ञः) न्यायविनयाभ्यां राजमानस्य प्रकाशमानस्य (आयवसस्य) पूर्णसामग्रीकस्य (जिष्णोः) जयशीलस्य (रथः) यानम् (वाम्) युवयोः (मित्रावरुणा) सुहृद्वरौ (दीर्घाप्साः) दीर्घा बृहन्तोऽप्साः शुभगुणव्याप्तयो येषां ते (स्यूमगभस्तिः) समूहकिरणः (सूरः) सविता (न) इव (अद्यौत्) प्रकाशयति ॥ १५ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यस्य राज्ञो राष्ट्रे विद्यासुशिक्षायुक्ता गुणकर्मस्वभावतो नियता धार्मिकाश्चत्वारो वर्णा आश्रमाश्च त्रयः सेनाप्रजान्यायाधीशाश्च सन्ति स सूर्य इव कीर्त्या सुशोभितो भवति ॥ १५ ॥अत्र राजप्रजामनुष्यधर्मवर्णनादेतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तोक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति बोध्यम् ॥इति द्वाविंशत्युत्तरं शततमं सूक्तं तृतीयो वर्गश्च समाप्तः ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ज्या राजाच्या राज्यात विद्या व उत्तम शिक्षणयुक्त गुण कर्म स्वभावाचे स्वशासित धर्मात्मा लोक असतात. तसेच चार वर्ण व आश्रम आणि सेना, प्रजा, न्यायाधीश असतात तो सूर्याप्रमाणे कीर्तिमान व सुशोभित होतो. ॥ १५ ॥