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अग॑च्छतं॒ कृप॑माणं परा॒वति॑ पि॒तुः स्वस्य॒ त्यज॑सा॒ निबा॑धितम्। स्व॑र्वतीरि॒त ऊ॒तीर्यु॒वोरह॑ चि॒त्रा अ॒भीके॑ अभवन्न॒भिष्ट॑यः ॥

English Transliteration

agacchataṁ kṛpamāṇam parāvati pituḥ svasya tyajasā nibādhitam | svarvatīr ita ūtīr yuvor aha citrā abhīke abhavann abhiṣṭayaḥ ||

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Pad Path

अग॑च्छतम्। कृप॑माणम्। प॒रा॒ऽवति॑। पि॒तुः। स्वस्य॑। त्यज॑सा। निऽबा॑धितम्। स्वः॑ऽवतीः। इ॒तः। ऊ॒तीः। यु॒वोः। अह॑। चि॒त्राः। अ॒भीके॑। अ॒भ॒व॒न्। अ॒भिष्ट॑यः ॥ १.११९.८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:119» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:21» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे विद्या के विचार में रमे हुए स्त्री-पुरुषो ! आप (स्वस्य) अपने (पितुः) पिता के समान वर्त्तमान पढ़ानेवाले से (परावति) दूर देश में भी ठहरे और (त्यजसा) संसार के सुख को छोड़ने से (निबाधितम्) कष्ट पाते हुए (कृपमाणम्) कृपा करने के शीलवाले संन्यासी को नित्य (अगच्छतम्) प्राप्त होओ (इतः) इसी यति से (युवोः) तुम दोनों के (अभीके) समीप में (अह) निश्चय से (चित्राः) अद्भुत (अभिष्टयः) चाही हुई (स्वर्वतीः) जिनमें प्रशंसित सुख विद्यमान हैं (ऊतीः) वे रक्षा आदि कामना (अभवन्) सिद्ध हों ॥ ८ ॥
Connotation: - सब मनुष्य पूरी विद्या जानने और शास्त्रसिद्धान्त में रमनेवाले राग-द्वेष और पक्षपातरहित सबके ऊपर कृपा करते सर्वथा सत्ययुक्त असत्य को छोड़े, इन्द्रियों को जीते और योग के सिद्धान्त को पाये हुए अगले-पिछले व्यवहार को जाननेवाले जीवन्मुक्त संन्यास के आश्रम में स्थित संसार में उपदेश करने के लिये नित्य भ्रमते हुए वेदविद्या के जाननेवाले संन्यासीजन को पाकर धर्म, अर्थ, काम और मोक्षों की सिद्धियों को विधान के साथ पावें। ऐसे संन्यासी आदि उत्तम विद्वान् के सङ्ग और उपदेश के सुने विना कोई भी मनुष्य यथार्थ बोध को नहीं पा सकता ॥ ८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे अश्विनौ स्त्रीपुरुषौ भवन्तौ स्वस्य पितुः परावति स्थितं त्यजसा निबाधितं कृपमाणं परिव्राजं नित्यमगच्छतम्। इत एव युवोरभीकेऽह चित्रा अभिष्टयः स्वर्वतीरूतिरभवन् ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (अगच्छतम्) प्राप्नुताम् (कृपमाणम्) कृपां कर्त्तुं शीलम् (परावति) दूरेदेशेऽपि स्थितम् (पितुः) जनकवद्वर्त्तमानस्याध्यापकस्य सकाशात् (स्वस्य) स्वकीयस्य (त्यजसा) संसारसुखत्यागेन (निबाधितम्) पीडितं संन्यासिनम् (स्वर्वतीः) स्वः प्रशस्तानि सुखानि विद्यन्ते यासु ताः (इतः) अस्माद्वर्तमानाद्यतेः (ऊतीः) रक्षणाद्याः (युवोः) युवयोः (अह) निश्चये (चित्राः) अद्भुताः (अभीके) समीपे (अभवन्) भवन्तु (अभिष्टयः) अभीप्सिताः ॥ ८ ॥
Connotation: - सर्वे मनुष्या पूर्णविद्यमाप्तं रागद्वेषपक्षपातरहितं सर्वेषामुपरि कृपां कुर्वन्तं सर्वथासत्ययुक्तमसत्यत्यागिनं जितेन्द्रियं प्राप्तयोगसिद्धान्तं परावरज्ञं जीवन्मुक्तं संन्यासाश्रमे स्थितमुपदेशाय नित्यं भ्रमन्तं वेदविदं जनं प्राप्य धर्मार्थकाममोक्षाणां सविधानाः सिद्धिः प्राप्नुवन्तु न खल्वीदृग्जनसङ्गोपदेशश्रवणाभ्यां विना कश्चिदपि यथार्थबोधमाप्तुं शक्नोति ॥ ८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सर्व माणसांनी पूर्ण विद्या जाणून व शास्त्रसिद्धांतात रमून रागद्वेष व भेदभावरहित होऊन सर्वांवर कृपा करणाऱ्या व सर्वस्वी असत्य सोडून इंद्रियांना जिंकणाऱ्या, योगसिद्धांताला प्राप्त करणाऱ्या, पुढचा मागचा व्यवहार जाणणाऱ्या, जीवन्मुक्त संन्यासाश्रमात स्थित राहून जगाला उपदेश करण्यासाठी नित्य भ्रमण करीत वेदविद्या जाणणाऱ्या संन्यासी लोकांकडून धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सिद्धींना नियमपूर्वक प्राप्त करावे. अशा संन्यासी इत्यादींचा उत्तम सहवास व उपदेश ऐकल्याशिवाय कोणत्याही माणसाला यथायोग्य बोध होऊ शकत नाही. ॥ ८ ॥