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यु॒वमत्र॒येऽव॑नीताय त॒प्तमूर्ज॑मो॒मान॑मश्विनावधत्तम्। यु॒वं कण्वा॒यापि॑रिप्ताय॒ चक्षु॒: प्रत्य॑धत्तं सुष्टु॒तिं जु॑जुषा॒णा ॥

English Transliteration

yuvam atraye vanītāya taptam ūrjam omānam aśvināv adhattam | yuvaṁ kaṇvāyāpiriptāya cakṣuḥ praty adhattaṁ suṣṭutiṁ jujuṣāṇā ||

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Pad Path

यु॒वम्। अत्र॑ये। अव॑ऽनीताय। त॒प्तम्। ऊर्ज॑म्। ओ॒मान॑म्। अ॒श्वि॒नौ॒। अ॒ध॒त्त॒म्। यु॒वम्। कण्वा॑य। अपि॑ऽरिप्ताय। चक्षुः॑। प्रति॑। अ॒ध॒त्त॒म्। सु॒ऽष्टु॒तिम्। जु॒जु॒षा॒णा ॥ १.११८.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:118» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:19» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (जुजुषाणा) सेवा वा प्रीति को प्राप्त (अश्विनौ) समस्त गुणों में व्याप्त स्त्री-पुरुषो ! (युवम्) तुम दोनों (अवनीताय) अविद्या अज्ञान के दूर होने (अपिरिप्ताय) और समस्त विद्याओं के बढ़ने के लिये (अत्रये) जिसको तीन प्रकार का दुःख नहीं है, उस (कण्वाय) बुद्धिमान् के लिये (तप्तम्) तपस्या से उत्पन्न हुए (ओमानम्) रक्षा आदि अच्छे कामों की पालना करनेवाले (ऊर्जम्) पराक्रम को (अधत्तम्) धारण करो और (युवम्) तुम दोनों उससे (चक्षुः) सकल व्यवहारों के दिखलानेहारे उत्तम ज्ञान और (सुष्टुतिम्) सुन्दर प्रशंसा को (प्रति, अधत्तम्) प्रतीति के साथ धारण करो ॥ ७ ॥
Connotation: - सभासेनाधीश आदि राजपुरषों को चाहिये कि धर्मात्मा जो कि वेद आदि विद्या के प्रचार के लिये अच्छा यत्न करते हैं, उन विद्वानों की रक्षा का विधान कर उनसे विनय को पाकर प्रजाजनों की पालना करें ॥ ७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे जुजुषाणाऽश्विनौ युवं युवामवनीतायापिरिप्तायात्रये कण्वाय तप्तमोमानमूर्जमधत्तम्। युवं युवां तस्माच्चक्षुः सुष्टुतिं च प्रत्यधत्तम् ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (युवम्) युवां स्त्रीपुरुषौ (अत्रये) अविद्यमानत्रिविधदुःखाय (अवनीताय) अविद्यानामपगमनाय (=अविद्याऽज्ञानापगमनाय) (तप्तम्) तपोजनितम् (उर्जम्) पराक्रमम् (ओमानम्) रक्षणादिसत्कर्मपालकम् (अश्विनौ) (अधत्तम्) दध्यातम् (युवम्) (कण्वाय) मेधाविने (अपिरिप्ताय) सकलविद्योपचयनाय। लिपधातोर्निष्ठा कपिलकादित्वाल्लत्वविकल्पः। (चक्षुः) दर्शकं विज्ञानम् (प्रति) (अधत्तम्) (सुष्टुतिम्) शोभनां प्रशंसाम् (जुजुषाणा) सेवितौ प्रीतौ वा ॥ ७ ॥
Connotation: - सभासेनाध्यक्षादिभी राजपुरुषैर्धार्मिकाणां वेदादिविद्याप्रचाराय प्रयत्नमानानां विदुषां रक्षां विधाय तेभ्यो विनयं प्राप्य प्रजाः पालनीयाः ॥ ७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सभासेनाधीश इत्यादी राजपुरुषांनी धर्मात्मा वेदविद्या इत्यादीचा प्रचार करण्याचा प्रयत्न करणाऱ्या विद्वानांच्या रक्षणाची व्यवस्था करून त्यांच्याकडून विनम्रता शिकून प्रजेचे पालन करावे. ॥ ७ ॥