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आ श्ये॒नस्य॒ जव॑सा॒ नूत॑नेना॒स्मे या॑तं नासत्या स॒जोषा॑:। हवे॒ हि वा॑मश्विना रा॒तह॑व्यः शश्वत्त॒माया॑ उ॒षसो॒ व्यु॑ष्टौ ॥

English Transliteration

ā śyenasya javasā nūtanenāsme yātaṁ nāsatyā sajoṣāḥ | have hi vām aśvinā rātahavyaḥ śaśvattamāyā uṣaso vyuṣṭau ||

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Pad Path

आ। श्ये॒नस्य॑। जव॑सा। नूत॑नेन। अ॒स्मे इति॑। या॒त॒म्। ना॒स॒त्या॒। स॒जोषाः॑। हवे॑। हि। वा॒म्। अ॒श्वि॒ना॒। रा॒तऽह॑व्यः। श॒श्व॒त्ऽत॒मायाः॑। उ॒षसः॑। विऽउ॑ष्टौ ॥ १.११८.११

Rigveda » Mandal:1» Sukta:118» Mantra:11 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:19» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (नासत्या) सत्ययुक्त (अश्विना) समस्त गुणों में रमे हुए स्त्री-पुरुषो वा सभासेनाधीशो ! (सजोषाः) जिसका एक सा प्रेम (रातहव्यः) वा जिसने भली-भाँति होम की (सामग्री) दी वह मैं (शश्वत्तमायाः) अतीव अनादि रूप (उषसः) प्रातःकाल की वेला के (व्युष्टौ) विशेष करके चाहे हुए समय में जिन (वाम्) तुमको (हवे) स्तुति से बुलाऊँ वे तुम (हि) निश्चय के साथ (श्येनस्य) वाज पखेरू के (जवसा) वेग के समान (नूतनेन) नये रथ से (अस्मे) हम लोगों को (आ, यातम्) आ मिलो ॥ ११ ॥
Connotation: - स्त्री-पुरुष रात्रि के चौथे प्रहर में उठ अपना आवश्यक अर्थात् शरीर शुद्धि आदि काम कर फिर जगदीश्वर की उपासना और योगाभ्यास को करके राजा और प्रजा के कामों का आचरण करने को प्रवृत्त हों। राजा आदि सज्जनों को चाहिये कि प्रशंसा के योग्य प्रजाजनों का सत्कार करें और प्रजाजनों को चाहिये कि स्तुति के योग्य राजजनों की स्तुति करें। क्योंकि किसी को अधर्म सेवनेवाले दुष्ट जन की स्तुति और धर्म का सेवन करनेवाले धर्मात्मा जन की निन्दा करने योग्य नहीं हैं, इससे सब जन धर्म की व्यवस्था का आचरण करें ॥ ११ ॥इस सूक्त में स्त्री-पुरुष और राजा-प्रजा के धर्म का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति समझनी चाहिये ॥यह एकसौ अट्ठारहवाँ सूक्त और उन्नीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे नासत्याऽश्विना सजोषा रातहव्योऽहं शश्वत्तमाया उषसो व्युष्टौ यौ वां हवे तौ युवां हि किल श्येनस्य जवसेन नूतनेन रथेनास्मैऽस्मानायातम् ॥ ११ ॥

Word-Meaning: - (आ) (श्येनस्य) (जवसा) वेगेनेव (नूतनेन) नवीनरथेन (अस्मे) अस्मान् (यातम्) उपागतम् (नासत्या) (सजोषाः) समानप्रेमा (हवे) स्तौमि (हि) किल (वाम्) युवाम् (अश्विना) (रातहव्यः) प्रदत्तहविः (शश्वत्तमायाः) अतिशयेनानादिरूपायाः (उषसः) प्रभातवेलायाः (व्युष्टौ) विशेषेण कामयमाने समये ॥ ११ ॥
Connotation: - स्त्रीपुरुषा रात्रेश्चतुर्थे याम उत्थायावश्यकं कृत्वा जगदीश्वरमुपास्य योगाभ्यासं कृत्वा राजप्रजाकार्य्याण्यनुष्ठातुं प्रवर्त्तेरन्। राजादिभिः प्रशंसनीयाः प्रजाजनाः सत्कर्त्तव्याः प्रजापुरुषैश्च स्तोतुमर्हा राजजनाश्च स्तोतव्याः। नहि केनचिदधर्मसेवी स्तोतुमर्हो धर्मसेवी निन्दितुं वा योग्योऽस्ति तस्मात्सर्वे धर्मव्यवस्थामाचरेयुः ॥ ११ ॥।अत्र स्त्रीपुरुषराजप्रजाधर्मवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति बोध्यम् ॥११८ इत्यष्टादशोत्तरशततमं सूक्तं एकोनविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - स्त्री-पुरुषांनी रात्रीच्या चौथ्या प्रहरी उठून आपले आवश्यक कार्य अर्थात शरीर शुद्धी इत्यादी काम करून जगदीश्वराची उपासना व योगाभ्यास करावा. राजा व प्रजेच्या कार्याचे अनुष्ठान करण्यास प्रवृत्त व्हावे. राजाने प्रशंसा योग्य प्रजेचा सत्कार करावा व प्रजेने स्तुती योग्य राजाची स्तुती करावी. कारण अधर्माचे ग्रहण करणाऱ्या दुष्ट लोकांची स्तुती व धर्माचे ग्रहण करणाऱ्या धर्मात्मा लोकांची निंदा करणे योग्य नाही. त्यामुळे सर्वांनी धर्माच्या व्यवस्थेप्रमाणे वर्तन ठेवावे. ॥ ११ ॥