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तद्वां॑ नरा॒ शंस्यं॑ पज्रि॒येण॑ क॒क्षीव॑ता नासत्या॒ परि॑ज्मन्। श॒फादश्व॑स्य वा॒जिनो॒ जना॑य श॒तं कु॒म्भाँ अ॑सिञ्चतं॒ मधू॑नाम् ॥

English Transliteration

tad vāṁ narā śaṁsyam pajriyeṇa kakṣīvatā nāsatyā parijman | śaphād aśvasya vājino janāya śataṁ kumbhām̐ asiñcatam madhūnām ||

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Pad Path

तत्। वा॒म्। न॒रा॒। शंस्य॑म्। प॒ज्रि॒येण॑। क॒क्षीव॑ता। ना॒स॒त्या॒। परि॑ज्मन्। श॒फात्। अश्व॑स्य। वा॒जिनः॑। जना॑य। श॒तम्। कु॒म्भान्। अ॒सि॒ञ्च॒त॒म्। मधू॑नाम् ॥ १.११७.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:117» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:14» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (पज्रियेण) प्राप्त होने योग्यों में प्रसिद्ध हुए (कक्षीवता) शिक्षा करनेहारे विद्वान् के साथ वर्त्तमान (नासत्या) सत्य व्यवहार वर्त्तनेवाले (नरा) मनुष्यों में उत्तम सबको अपने-अपने ढंग में लगानेहारे सभासेनाधीशो ! तुम दोनों जो (परिज्मन्) सब प्रकार से जिसमें जाते हैं उस मार्ग को (वाजिनः) वेगवान् (अश्वस्य) घोड़ा की (शफात्) टाप के समान बिजुली के वेग से (जनाय) अच्छे गुणों और उत्तम विद्याओं में प्रसिद्ध हुए विद्वान् के लिये (मधूनाम्) जलों के (शतम्) सैकड़ों (कुम्भान्) घड़ों को (असिञ्चतम्) सुख से सींचो अर्थात् भरो (तत्) उस (वाम्) तुम लोगों के (शंस्यम्) प्रशंसा करने योग्य काम को हम जानते हैं ॥ ६ ॥
Connotation: - राजपुरुषों को चाहिये कि मनुष्य आदि प्राणियों के सुख के लिये मार्ग में अनेक घड़ों के जल से नित्य सींचाव कराया करें, जिससे घोड़े, बैल आदि के पैरों की खूदन से धूर न उड़े। और जिससे मार्ग में अपनी सेना के जन सुख से आवें-जावें। इस प्रकार ऐसे प्रशंसित कामों को करके प्रजाजनों को निरन्तर आनन्द देवें ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे पज्रियेण कक्षीवता सह वर्तमानौ नासत्या नरा वां यत् परिज्मन् वाजिनोऽश्वस्य शफादिव विद्युद्वेगात् जनाय मधूनां शतं कुम्भानसिञ्चतं तद्वां युवयोः शंस्यं कर्म विजानीमः ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (तत्) (वाम्) युवयोः (नरा) नृषूत्तमौ नायकौ (शंस्यम्) प्रशंसनीयम् (पज्रियेण) प्राप्तव्येषु भवेन (कक्षीवता) शिक्षकेण विदुषा सहितेन (नासत्या) (परिज्मन्) परितः सर्वतो गच्छन्ति यस्मिन्मार्गे (शफात्) खुरात् शं फणति प्रापयतीति शफो वेगस्तस्माद्वा। अत्रान्येभ्योऽपि दृश्यत इति डः पृषोदरादित्वान्मलोपश्च। (अश्वस्य) तुरगस्य (वाजिनः) वेगवतः (जनाय) शुभगुणविद्यासु प्रादुर्भूताय विदुषे (शतम्) (कुम्भान्) कलशान् (असिञ्चतम्) सुखेन सिञ्चतम् (मधूनाम्) उदकानाम्। मध्वित्युदकना०। निघं० १। १२। ॥ ६ ॥
Connotation: - राजपुरुषैर्मनुष्यादिसुखाय मार्गेऽनेककुम्भजलेन सेचनं प्रत्यहं कारयितव्यम् यतस्तुरङ्गादीनां पादापस्करणाद्धूलिर्नोत्तिष्ठेत् येन मार्गे स्वसेनास्था जनाः सुखेन गमनागमने कुर्य्युः। एवमीदृशानि स्तुत्यानि कर्माणि कृत्वा प्रजाः सततमाह्लादितव्याः ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - राजपुरुषांनी माणसांच्या सुखासाठी रस्त्यावर घट भरून पाण्याचे सिंचन करावे. ज्यामुळे घोडे, बैल इत्यादींच्या पायाची धूळ उडता कामा नये व त्या मार्गावर सेना सुखाने जावी यावी. अशा प्रकारचे प्रशंसित कार्य करून प्रजेला सतत आनंदित ठेवावे. ॥ ६ ॥