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यु॒वं च्यवा॑नमश्विना॒ जर॑न्तं॒ पुन॒र्युवा॑नं चक्रथु॒: शची॑भिः। यु॒वो रथं॑ दुहि॒ता सूर्य॑स्य स॒ह श्रि॒या ना॑सत्यावृणीत ॥

English Transliteration

yuvaṁ cyavānam aśvinā jarantam punar yuvānaṁ cakrathuḥ śacībhiḥ | yuvo rathaṁ duhitā sūryasya saha śriyā nāsatyāvṛṇīta ||

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Pad Path

यु॒वम्। च्यवा॑नम्। अ॒श्वि॒ना॒। जर॑न्तम्। पुनः॑। युवा॑नम्। च॒क्र॒थुः॒। शची॑भिः। यु॒वोः। रथ॑म्। दु॒हि॒ता। सूर्य॑स्य। स॒ह। श्रि॒या। ना॒स॒त्या॒। अ॒वृ॒णी॒त॒ ॥ १.११७.१३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:117» Mantra:13 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:15» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर जवान अवस्था ही में विवाह करना अवश्य है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (नासत्या) सत्य वर्त्ताव वर्त्तनेवाले (अश्विना) शरीर और आत्मा के बल से युक्त सभासेनाधीशो ! (युवम्) तुम दोनों (शचीभिः) अच्छी बुद्धियों वा कर्मों के साथ वर्त्तमान अपने सन्तानों को भली-भाँति सेवा कर ज्वान (चक्रथुः) करो (पुनः) फिर (युवोः) तुम दोनों की युवती अर्थात् यौवन अवस्था को प्राप्त (सूर्यस्य) सूर्य की किई हुई प्रातःकाल की वेला के समान (दुहिता) कन्या (श्रिया) धन, शोभा, विद्या वा सेवा के (सह) साथ वर्त्तमान (च्यवानम्) गमन और (जरन्तम्) प्रशंसा करनेवाले (युवानम्) ज्वानी से परिपूर्ण (रथम्) रमण करने योग्य मनोहर पति को (अवृणीत) वरे और पुत्र भी ऐसा ज्वान होता हुआ युवति स्त्री को वरे ॥ १३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में लुप्तोपमालङ्कार है। माता-पिता आदि को अतीव योग्य है कि जब अपने सन्तान पूर्ण अच्छी सिखावट, विद्या, शरीर और आत्मा के बल, रूप, लावण्य, स्वभाव, आरोग्यपन, धर्म और ईश्वर को जानने आदि उत्तम गुणों के साथ वर्त्ताव रखने को समर्थ हों तब अपनी इच्छा और परीक्षा के साथ आप ही स्वयंवर विधि से दोनों सुन्दर समान गुण, कर्म, स्वभावयुक्त पूरे ज्वान, बली, लड़की-लड़के विवाह कर ऋतु समय में साथ का संयोग करनेवाले होकर, धर्म के साथ अपना वर्त्ताव वर्त्तकर प्रजा अर्थात् सन्तानों को अच्छे उत्पन्न करें, यह उपदेश देने चाहियें। विना इसके कभी कुल की उन्नति होने के योग्य नहीं है, इससे सज्जन पुरुषों को ऐसा ही सदा करना चाहिये ॥ १३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्युवाऽवस्थायामेव विवाहकरणाऽवश्यकत्वमाह ।

Anvay:

हे नासत्याऽश्विना युवं शचीभिः सह वर्त्तमानान् स्वसन्तानान् सम्यग् यूनश्चक्रथुः। पुनर्युवोर्युवयोर्युवतिः सूर्यस्योषा इव दुहिता श्रिया सह वर्त्तमानं च्यवानं जरन्तं युवानं रथं पतिं चावृणीत। पुत्रोऽपि युवा सन् युवतिं च ॥ १३ ॥

Word-Meaning: - (युवम्) युवाम् (च्यवानम्) गच्छन्तम् (अश्विना) शरीरात्मबलयुतौ (जरन्तम्) स्तवानम् (पुनः) (युवानम्) संपादितयौवनम् (चक्रथुः) कुरुतम् (शचीभिः) प्रज्ञाभिः कर्मभिर्वा (युवोः) (रथम्) रमणीयं पतिम् (दुहिता) पूर्णयुवतिः कन्या (सूर्यस्य) सवितुरुषा इव (सह) (श्रिया) लक्ष्म्या शोभया विद्यया सेवया वा (नासत्या) (अवृणीत) वृणुयात् ॥ १३ ॥
Connotation: - अत्र लुप्तोपमालङ्कारः। मातापित्रादीनामतीव योग्यमस्ति यदा स्वापत्यानि पूर्णसुशिक्षाविद्याशरीरात्मबलरूपलावण्यशीलारोग्य-धर्मेश्वरविज्ञानादिभिः शुभेर्गुणैः सह वर्त्तमानानि स्युस्तदा स्वेच्छापरीक्षाभ्यां स्वयंवरविधानेनाभिरूपौ तुल्यगुणकर्मस्वभावौ पूर्णयुवावस्थौ बलिष्ठौ कुमारौ विवाहं कृत्वर्त्तुं गामिनौ भूत्वा धर्मेण वर्त्तित्वा प्रजाः सूत्पादयेतामित्युपदेष्टव्यानि नह्येतेन विना कदाचित् कुलोत्कर्षो भवितुं योग्योऽस्तीति तस्मात् सज्जनैरेवमेव सदा विधेयम् ॥ १३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात लुप्तोपमालंकार आहे. माता-पिता जेव्हा आपल्या संतानांना पूर्ण चांगली शिकवण, विद्या, शरीर व आत्मा यांचे बल, रूप, लावण्य, स्वभाव, आरोग्य, धर्म, ईश्वराची जाण इत्यादी गुणांसह वर्तन ठेवण्यास समर्थ करतील तेव्हा स्वेच्छेने व परीक्षेद्वारे सुंदर, समान गुण, कर्म स्वभावयुक्त, पूर्ण तारुण्ययुक्त बलवान मुला-मुलींनी स्वयंवर विधीने विवाह करावा. ऋतूकाळी संयोग करून धार्मिक आचरण करून चांगले संतान उत्पन्न करा असा त्यांना उपदेश द्यावा. याशिवाय कुलाची उन्नती होत नाही. त्यासाठी सज्जन माणसांनी सदैव याप्रमाणे वागावे. ॥ १३ ॥