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कुह॒ यान्ता॑ सुष्टु॒तिं का॒व्यस्य॒ दिवो॑ नपाता वृषणा शयु॒त्रा। हिर॑ण्यस्येव क॒लशं॒ निखा॑त॒मुदू॑पथुर्दश॒मे अ॑श्वि॒नाह॑न् ॥

English Transliteration

kuha yāntā suṣṭutiṁ kāvyasya divo napātā vṛṣaṇā śayutrā | hiraṇyasyeva kalaśaṁ nikhātam ud ūpathur daśame aśvināhan ||

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Pad Path

कुह॑। यान्ता॑। सु॒ऽस्तु॒तिम्। का॒व्यस्य॑। दिवः॑। न॒पा॒ता॒। वृ॒ष॒णा॒। श॒यु॒ऽत्रा। हिर॑ण्यस्यऽइव। क॒लश॑म्। निऽखा॑तम्। उत्। ऊ॒प॒थुः॒। द॒श॒मे। अ॒श्वि॒ना॒। अह॑न् ॥ १.११७.१२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:117» Mantra:12 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:15» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (यान्ता) गमन करने (नपाता) न गिरने (वृषणा) श्रेष्ठ कामनाओं की वर्षा कराने और (शयुत्रा) सोते हुए प्राणियों की रक्षा करनेवाले (अश्विना) सभा सेनाधीशो ! तुम दोनों (दशमे) दशवें (अहन्) दिन (हिरण्यस्येव) सुवर्ण के (निखातम्) बीच में पोले (कलशम्) घड़ा के समान (दिवः) विज्ञानयुक्त (काव्यस्य) कविताई की (सुष्टुतिम्) अच्छी बढ़ाई को (कुह) कहाँ (उदूपथुः) उत्कर्ष से बोते हो ॥ १२ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे धनाढ्यजन सुवर्ण आदि धातुओं के वासनों में दूध, घी, दही आदि पदार्थों को धर और उनको पकाकर खाते हुए प्रशंसा पाते हैं, वैसे दो शिल्पीजन इस विद्या और न्यायमार्गों में प्रजाजनों का प्रवेश कराकर धर्म और न्याय के उपदेशों से उनको पक्के कर राज्य और धन के सुख को भोगते हुए प्रशंसित कहाँ होवें ? इसका यह उत्तर है कि धार्मिक विद्वान् जनों में होवें ॥ १२ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे यान्ता नपाता वृषणा शयुत्राऽश्विना युवां दशमेऽहन् हिरण्यस्येव निखातं कलशं दिवः काव्यस्य सुष्टुतिं कुहोदूपथुः ॥ १२ ॥

Word-Meaning: - (कुह) कुत्र (यान्ता) गच्छन्तौ (सुष्टुतिम्) प्रशस्तां स्तुतिम् (काव्यस्य) कवेः कर्मणः (दिवः) विज्ञानयुक्तस्य (नपाता) अविद्यमानपतनौ (वृषणा) श्रेष्ठौ कामवर्षयितारौ (शयुत्रा) यौ शयून् शयानान् त्रायतस्तौ (हिरण्यस्येव) यथा सुवर्णस्य (कलशम्) घटम् (निखातम्) मध्यावकाशम् (उत्) (ऊपथुः) वपतः (दशमे) (अश्विना) (अहन्) दिने ॥ १२ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा धनाढ्याः सुवर्णादीनां पात्रेषु दुग्धादिकं संस्थाप्य प्रपच्य भुञ्जानाः स्तूयन्ते तथा शिल्पिनावेतद्विद्यान्यायमार्गेषु प्रजाः संवेश्य धर्मन्यायोपदेशैः परिपक्वाः संसाध्य राज्यश्रीसुखं भुञ्जानौ प्रशंसितौ कुह स्याताम् ? धार्मिकेषु विद्वत्स्वित्युत्तरम् ॥ १२ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपकालंकार आहे. जसे धनाढ्य लोक सुवर्ण इत्यादी धातूंच्या भांड्यात दूध, तूप, दही इत्यादी पदार्थ ठेवून शिजवून खातात व प्रशंसेस पात्र होतात. तसेच शिल्पीजन (कारागीर लोक) विद्या व न्यायाने प्रजेला मार्गी लावून धर्म व न्यायाच्या उपदेशाने त्यांना परिपक्व करतात. राज्याचे व धनाचे सुख भोगत प्रशंसित होऊन ते कोणत्या स्थानी निवास करतील? तर त्याचे उत्तर असे की धार्मिक विद्वान लोकात निवास करतील. ॥ १२ ॥