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ति॒स्रः क्षप॒स्त्रिरहा॑ति॒व्रज॑द्भि॒र्नास॑त्या भु॒ज्युमू॑हथुः पत॒ङ्गैः। स॒मु॒द्रस्य॒ धन्व॑न्ना॒र्द्रस्य॑ पा॒रे त्रि॒भी रथै॑: श॒तप॑द्भि॒: षळ॑श्वैः ॥

English Transliteration

tisraḥ kṣapas trir ahātivrajadbhir nāsatyā bhujyum ūhathuḥ pataṁgaiḥ | samudrasya dhanvann ārdrasya pāre tribhī rathaiḥ śatapadbhiḥ ṣaḻaśvaiḥ ||

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Pad Path

ति॒स्रः। क्षपः॑। त्रिः। अहा॑। अ॒ति॒व्रज॑त्ऽभिः। नास॑त्या। भु॒ज्युम्। ऊ॒ह॒थुः॒। प॒त॒ङ्गैः। स॒मु॒द्रस्य॑। धन्व॑न्। आ॒र्द्रस्य॑। पा॒रे। त्रि॒ऽभिः। रथैः॑। श॒तप॑त्ऽभिः। षट्ऽअ॑श्वैः ॥ १.११६.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:116» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:8» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (नासत्या) सत्य से परिपूर्ण सभापति और सेनापति ! तुम दोनों (तिस्रः) तीन (क्षपः) रात्रि (अहा) तीन दिन (अतिव्रजद्भिः) अतीव चलते हुए पदार्थ (पतङ्गैः) जो कि घोड़े के समान वेगवाले हैं उनके साथ वर्त्तमान (षडश्वैः) जिनमें जल्दी ले जानेहारे छः कलों के घर विद्यमान उन (शतपद्भिः) सैकड़ों पग के समान वेगयुक्त (त्रिभिः) भूमि, अन्तरिक्ष और जल में चलनेहारे (रथैः) रमणीय सुन्दर मनोहर विमान आदि रथों से (भुज्युम्) राज्य की पालना करनेवाले को (समुद्रस्य) जिसमें अच्छे प्रकार परमाणुरूप जल जाते हैं उस अन्तरिक्ष वा (धन्वन्) जिसमें बहुत बालू है उस भूमि वा (आर्द्रस्य) कींच के सहित जो समुद्र उसके (पारे) पार में (त्रिः) तीन बार (ऊहथुः) पहुँचाओ ॥ ४ ॥
Connotation: - आश्चर्य इस बात का है कि मनुष्य जो तीन दिन-रात में समुद्र आदि स्थानों के अवार-पार जावें-आवेंगे तो कुछ भी सुख दुर्लभ रहेगा ! किन्तु कुछ भी नहीं ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे नासत्या सभासेनापती युवां तिस्रः क्षपस्त्र्यहा दिनान्यतिव्रजद्भिः पतङ्गैः सहयुक्तैः षडश्वैः शतपद्भिस्त्रिभी रथैर्भुज्युं समुद्रस्य धन्वन्नार्द्रस्य पारे त्रिरूहथुर्गमयेतम् ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (तिस्रः) त्रिसंख्याकाः (क्षपः) रात्रीः (त्रिः) त्रिवारम् (अहा) त्रीणि दिनानि (अतिव्रजद्भिः) अतिशयेन गमयतृभिर्द्रव्यैः (नासत्या) सत्येन परिपूर्णौ (भुज्युम्) राज्यपालकम् (ऊहथुः) प्राप्नुतम् (पतङ्गैः) अश्ववद्वेगिभिः (समुद्रस्य) सम्यग्द्रवन्त्यापो यस्मिन्तस्यान्तरिक्षस्य (धन्वन्) धन्वनो बहुसिकतस्य स्थलस्य (आर्द्रस्य) सपङ्कस्य सागरस्य (पारे) परभागे (त्रिभिः) भूम्यन्तरिक्षजलेषु गमयितृभिः (रथैः) रमणीयैर्विमानादिभिर्यानैः (शतपद्भिः) शतैर्गमनशीलैः पादवेगैः (षडश्वैः) षट् अश्वा आशुगमकाः कलायन्त्रस्थितिप्रदेशा येषु तैः ॥ ४ ॥
Connotation: - अहो मनुष्या यदा त्रिष्वहोरात्रेषु समुद्रादिपारावारं गमिष्यन्त्यागमिष्यन्ति तदा किमपि सुखं दुर्लभं स्थास्यति न किमपि ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसे जर तीन दिवसात समुद्रापार करतील तर त्यांनी सर्व सुख मिळू शकेल. ॥ ४ ॥