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प्र वां॒ दंसां॑स्यश्विनाववोचम॒स्य पति॑: स्यां सु॒गव॑: सु॒वीर॑:। उ॒त पश्य॑न्नश्नु॒वन्दी॒र्घमायु॒रस्त॑मि॒वेज्ज॑रि॒माणं॑ जगम्याम् ॥

English Transliteration

pra vāṁ daṁsāṁsy aśvināv avocam asya patiḥ syāṁ sugavaḥ suvīraḥ | uta paśyann aśnuvan dīrgham āyur astam ivej jarimāṇaṁ jagamyām ||

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Pad Path

प्र। वा॒म्। दंसां॑सि। अ॒श्वि॒नौ॒। अ॒वो॒च॒म्। अ॒स्य। पतिः॑। स्या॒म्। सु॒ऽगवः॑। सु॒ऽवीरः॑। उ॒त। पश्य॑न्। अ॒श्नु॒वन्। दी॒र्घम्। आयुः॑। अस्त॑म्ऽइव। इत्। ज॒रि॒माण॑म्। ज॒ग॒म्या॒म् ॥ १.११६.२५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:116» Mantra:25 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:12» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:25


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अश्विनौ) समस्त शुभ कर्म और विद्या में रमे हुए सज्जनो ! मैं (वाम्) तुम दोनों उपदेश करने और पढ़ानेवालों के (दंसांसि) उपदेश और विद्या पढ़ाने आदि कामों को (प्र, अवोचम्) कहूँ, उससे (सुगवः) अच्छी-अच्छी गौ और उत्तम-उत्तम वाणी आदि पदार्थोंवाला (सुवीरः) पुत्र-पौत्र आदि भृत्ययुक्त (पश्यन्) सत्य-असत्य को देखता (उत) और (दीर्घम्) बड़ी (आयुः) आयुर्दा को (अश्नुवन्) सुख से व्याप्त हुआ (अस्य) इस राज्य व्यवहार का (पतिः) पालनेवाला (स्याम्) होऊँ तथा संन्यासी महात्मा जैसे (अस्तमिव) घर को पाकर निर्लोभ से छोड़ दे, वैसे (जरिमाणम्) बुड्ढे हुए शरीर को छोड़ सुख से (इत्) ही (जगम्यात्) शीघ्र चला जाऊँ ॥ २५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्य सदा धार्मिक शास्त्रवक्ताओं के कर्मों को सेवन कर धर्म और जितेन्द्रियपन से विद्याओं को पाकर आयुर्दा बढ़ाके अच्छे सहाययुक्त हुए संसार की पालना करें और योगाभ्यास से जीर्ण अर्थात् बुड्ढे शरीरों को छोड़ विज्ञान से मुक्ति को प्राप्त होवें ॥ २५ ॥इस सूक्त में पृथिवी आदि पदार्थों के गुणों के दृष्टान्त तथा अनुकूलता से सभासेनापति आदि के गुण कर्मों के वर्णन से इस सूक्त में कहे अर्थ की पिछले सूक्त में कहे अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥यह १२ वर्ग और ११६ सूक्त समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे अश्विनावहं वां युवयोर्दंसांसि प्रावोचं तेन सुगवः सुवीरः पश्यन्नुतापि दीर्घमायुरश्नुवन्सन्नस्य पतिः स्याम्। परिव्राजकोऽस्तमिव जरिमाणं देहं त्यक्त्वा सुखेनेज्जगम्याम् ॥ २५ ॥

Word-Meaning: - (प्र) (वाम्) युवयोरुपदेशकाध्यापकयोः (दंसांसि) उपदेशाध्यापनादीनि कर्माणि (अश्विनौ) सर्वशुभकर्मविद्याव्यापिनौ (अवोचम्) वदेयम् (अस्य) व्यवहारस्य राज्यस्य वा (पतिः) पालकः (स्याम्) भवेयम् (सुगवः) शोभना गावो यस्य (सुवीरः) शोभनपुत्रादिभृत्यः (उत) अपि (पश्यन्) सत्यासत्यं प्रेक्षमाणः (अश्नुवन्) विद्यासुखेन व्याप्नुवन् (दीर्घम्) वर्षशतादप्यधिकम् (आयुः) जीवनम् (अस्तमिव) गृहं प्राप्येव (जरिमाणम्) प्राप्तजरसं देहम् (इत्, एव) (जगम्याम्) भृशं गच्छेयम् ॥ २५ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्याः सदा धार्मिकाणामाप्तानां कर्माणि संसेव्य धर्मजितेन्द्रियत्वाभ्यां विद्याः प्राप्यायुर्वर्धयित्वा सुसहायाः सन्तो जगत्पालयेयुः। योगाभ्यासेन जीर्णानि शरीराणि त्यक्त्वा विज्ञानान्मुक्तिं च गच्छेयुरिति ॥ २५ ॥अत्र पृथिव्यादिपदार्थगुणदृष्टान्तेनानुकूलतया सभासेनापत्यादिगुणकर्मवर्णनादेतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तोक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥इति १२ द्वादशो वर्गः ११६ सूक्तं च समाप्तम् ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी सदैव धार्मिक शास्त्रवक्त्याच्या कर्माप्रमाणे वागून धर्म व जितेन्द्रियतेने विद्या प्राप्त करून आयुष्य वाढवून चांगल्या प्रकारे वागून जगाचे पालन करावे व योगाभ्यासाने जीर्ण अर्थात वृद्ध शरीर सोडून विज्ञानाने मुक्ती प्राप्त करावी. ॥ २५ ॥