Go To Mantra

एक॑स्या॒ वस्तो॑रावतं॒ रणा॑य॒ वश॑मश्विना स॒नये॑ स॒हस्रा॑। निर॑हतं दु॒च्छुना॒ इन्द्र॑वन्ता पृथु॒श्रव॑सो वृषणा॒वरा॑तीः ॥

English Transliteration

ekasyā vastor āvataṁ raṇāya vaśam aśvinā sanaye sahasrā | nir ahataṁ ducchunā indravantā pṛthuśravaso vṛṣaṇāv arātīḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

एक॑स्याः। वस्तोः॑। आ॒व॒त॒म्। रणा॑य। वश॑म्। अ॒श्वि॒ना॒। स॒नये॑। स॒हस्रा॑। निः। अ॒ह॒त॒म्। दु॒च्छुनाः॑। इन्द्र॑ऽवन्ता। पृ॒थु॒ऽश्रव॑सः। वृ॒ष॒णौ॒। अरा॑तीः ॥ १.११६.२१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:116» Mantra:21 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:12» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:21


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (वृषणौ) शस्त्र-अस्त्र की वर्षा करनेवाले (इन्द्रवन्ता) बहुत ऐश्वर्ययुक्त (अश्विना) सूर्य्य और चन्द्रमा के तुल्य सभा और सेना के अधीशो ! (दुच्छुनाः) जिससे सुख निकल गया उन शत्रु सेनाओं को जैसे अन्धकार और मेघों को सूर्य्य जीतता है, वैसे (एकस्याः) एक सेना के (रणाय) संग्राम के लिये जो पठाना है, उससे (वस्तोः) एक दिन के बीच (आवतम्) अपनी सेना के विजय को चाहो और उन सेनाओं को अपने (वशम्) वश में लाकर (सहस्रा) (सनये) हजारों धनादि पदार्थों को भोगने के लिये (पृथुश्रवसः) जिनके बहुत अन्न आदि पदार्थ हैं और (अरातीः) जो किसी को सुख नहीं देतीं, उन शत्रुसेनाओं को (निरहतम्) निरन्तर मारो ॥ २१ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य और चन्द्रमा के उदय से अन्धकार की निवृत्ति होकर सब प्राणी सुखी होते हैं, वैसे धर्मरूपी व्यवहार से शत्रुओं और अधर्म की निवृत्ति होने से धर्मात्मा जन अच्छे राज्य में सुखी होते हैं ॥ २१ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे वृषणाविन्द्रवन्ताश्विना सभासेनेशौ दुच्छुना यथा तमो मेघांश्च सूर्य्यो जयति तथैकस्याः सेनाया रणाय प्रेषणेन वस्तोर्दिनस्य मध्ये स्वसेनामावतं वशं सहस्रा सनये पृथुश्रवसोऽरातीः शत्रुसेना निरहतम् ॥ २१ ॥

Word-Meaning: - (एकस्याः) सेनायाः (वस्तोः) दिनस्य मध्ये (आवतम्) विजयं कामयतम् (रणाय) संग्रामाय (वशम्) स्वाधीनताम् (अश्विना) सूर्य्याचन्द्रमसाविव सभासेनेशौ (सनये) राज्यसेवनाय (सहस्रा) असंख्यातानि धनादिवस्तूनि (निः) नितराम् (अहतम्) हन्यातम् (दुच्छुनाः) दुर्गतं शुनं सुखं याभ्यस्ताः। अत्र वर्णव्यत्ययेन सस्य तः। शुनमिति सुखना०। निघं० ३। ६। (इन्द्रवन्ता) बह्वैश्वर्ययुक्तौ (पृथश्रवसः) पृथूनि विस्तृतानि श्रवांस्यन्नानि यासां ताः (वृषणौ) शस्त्रास्त्रवर्षयितारौ बलवन्तौ (अरातीः) सुखदानरहिताः शत्रुसेनाः ॥ २१ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्याचन्द्रमसोरुदयेन तमो निवृत्य सर्वे प्राणिन आनन्दन्ति तथा धर्मव्यवहारेण शत्रूणामधर्मस्य च निवृत्त्या धार्मिकाः सुराज्ये सुखयन्ति ॥ २१ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे सूर्य व चंद्राच्या उदयाने अंधार नष्ट होतो व सर्व प्राणी सुखी होतात तसे धर्मरूपी व्यवहाराने शत्रू व अधर्माची निवृत्ती होऊन धर्मात्मा लोक चांगल्या राज्यात सुखी होतात. ॥ २१ ॥