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आ वां॒ रथं॑ दुहि॒ता सूर्य॑स्य॒ कार्ष्मे॑वातिष्ठ॒दर्व॑ता॒ जय॑न्ती। विश्वे॑ दे॒वा अन्व॑मन्यन्त हृ॒द्भिः समु॑ श्रि॒या ना॑सत्या सचेथे ॥

English Transliteration

ā vāṁ rathaṁ duhitā sūryasya kārṣmevātiṣṭhad arvatā jayantī | viśve devā anv amanyanta hṛdbhiḥ sam u śriyā nāsatyā sacethe ||

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Pad Path

आ। वा॒म्। रथ॑म्। दु॒हि॒ता। सूर्य॑स्य। कार्ष्म॑ऽइव। अ॒ति॒ष्ठ॒त्। अर्व॑ता। जय॑न्ती। विश्वे॑। दे॒वाः। अनु॑। अ॒म॒न्य॒न्त॒। हृ॒त्ऽभिः। सम्। ऊँ॒ इति॑। श्रि॒या। ना॒स॒त्या॒। स॒चे॒थे॒ इति॑ ॥ १.११६.१७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:116» Mantra:17 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:11» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:17


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (नासत्या) अच्छे विज्ञान का प्रकाश करनेवाले सभा सेनापति जनो ! (सूर्य्यस्य) सूर्य्य की (दुहिता) जो दूरदेश में हित करनेवाली कन्या जैसी कान्ति प्रातःसमय की वेला और (कार्ष्मेव) काठ आदि पदार्थों के समान (वाम्) तुम लोगों की (जयन्ती) शत्रुओं को जीतनेवाली सेना (अर्वता) घोड़े से जुड़े हुए (रथम्) रथ को (आ, अतिष्ठत्) स्थित हो अर्थात् रथ पर स्थित होवे वा जिसको (विश्वे) समस्त (देवाः) विद्वान् जन (हृद्भिः) अपने चित्तों से (अनु, अमन्यन्त) अनुमान करें उसको (उ) तौ (श्रिया) शुभ लक्षणोंवाली लक्ष्मी अर्थात् अच्छे धन से युक्त सेना को तुम लोग (सं, सचेथे) अच्छे प्रकार इकट्ठा करो ॥ १७ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! समस्त विद्वानों ने प्रशंसा की हुई शस्त्र, अस्त्र, वाहन तथा और सामग्री आदि सहित धनवती सेना को सिद्ध कर जैसे सूर्य्य अपना प्रकाश करे, वैसे तुम लोग धर्म और न्याय का प्रकाश कराओ ॥ १७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे नासत्या सभासेनेशौ सूर्य्यस्य दुहितेव कार्ष्मेव वां युवयोर्जयन्ती सेनार्वता युक्तं रथमातिष्ठत् समन्तात्तिष्ठतु। यं विश्वे देवा हृद्भिरन्वमन्यन्त तामु श्रिया युक्तां सेनां युवां सं सचेथे ॥ १७ ॥

Word-Meaning: - (आ) (वाम्) युवयोः सभासेनेशयोः (रथम्) विमानादियानम् (दुहिता) दूरे हिता कन्येव कान्तिरुषाः (सूर्य्यस्य) (कार्ष्मेव) यथा काष्ठादिकं द्रव्यम् (अतिष्ठत्) तिष्ठतु (अर्वता) अश्वेन युक्तम् (जयन्ती) उत्कर्षतां प्राप्नुवती सेना (विश्वे) सर्वे (देवाः) विद्वांसः (अनु) पश्चात् (अमन्यन्त) मन्यन्ताम् (हृद्भिः) चित्तैः (सम्) (उ) (श्रिया) शुभलक्षणया लक्ष्म्या (नासत्या) सद्विज्ञानप्रकाशकौ (सचेथे) सङ्गच्छेथाम् ॥ १७ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या अखिलविद्वत्प्रशंसितां शस्त्रास्त्रवाहनसंभारादिसहितां श्रीमतीं सेनां संसाध्य सूर्य्य इव धर्मन्यायं यूयं प्रकाशयत ॥ १७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! संपूर्ण विद्वानांनी प्रशंसा केलेली शस्त्र, अस्त्र, वाहन व इतर साधने इत्यादींनी समृद्ध सेना तयार करून सूर्य जसा आपला प्रकाश करतो तसे तुम्ही धर्म व न्यायाचा प्रकाश करा. ॥ १७ ॥