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अजो॑हवीन्नासत्या क॒रा वां॑ म॒हे याम॑न्पुरुभुजा॒ पुर॑न्धिः। श्रु॒तं तच्छासु॑रिव वध्रिम॒त्या हिर॑ण्यहस्तमश्विनावदत्तम् ॥

English Transliteration

ajohavīn nāsatyā karā vām mahe yāman purubhujā puraṁdhiḥ | śrutaṁ tac chāsur iva vadhrimatyā hiraṇyahastam aśvināv adattam ||

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Pad Path

अजो॑हवीत्। ना॒स॒त्या॒। क॒रा। वा॒म्। म॒हे। याम॑न्। पु॒रु॒ऽभु॒जा॒। पुर॑म्ऽधिः। श्रु॒तम्। तत्। शासुः॑ऽइव। व॒ध्रि॒ऽम॒त्या। हिर॑ण्यऽहस्तम्। अ॒श्वि॒नौ॒। अ॒द॒त्त॒म् ॥ १.११६.१३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:116» Mantra:13 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:10» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (नासत्या) असत्य अज्ञान के विनाश से सत्य का प्रकाश करने (पुरुभुजा) बहुत आनन्दों के भोगने तथा (अश्विनौ) शुभ गुण और विद्या में व्याप्त होनेवाले अध्यापको ! जो (पुरन्धिः) बहुत विद्यायुक्त विद्वान् (वध्रिमत्याः) प्रशंसित जिसकी वृद्धि है, उस उत्तम स्त्री के (करा) कर्म करते हुए दो पुत्रों का (महे) अत्यन्त (यामन्) सुख भोगने के लिये (अजोहवीत्) निरन्तर ग्रहण करे और (वाम्) तुम दोनों का जो (श्रुतम्) सुना-पढ़ा है (तत्) उसको (शासुरिव) जैसे पूर्ण विद्यायुक्त पढ़ानेवाले से शिष्य ग्रहण करे वैसे निरन्तर ग्रहण करे। वे तुम दोनों विद्या चाहनेवाले सब जनों के लिये जो ऐसा है कि (हिरण्यहस्तम्) जिससे हाथ में सुवर्ण आता है, उस पढ़े सीखे बोध को (अदत्तम्) निरन्तर देवो ॥ १३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे विद्वानो जैसे विद्वान् जन विदुषी स्त्री का पाणिग्रहण कर गृहाश्रम के व्यवहार को सिद्ध करे, वैसे बुद्धिमान् विद्यार्थियों का संग्रह कर पूर्ण विद्याप्रचार को करो और जैसे पढ़ानेवाले से पढ़नेवाले विद्या का संग्रह कर आनन्दित होते हैं, वैसे विद्वान् स्त्री-पुरुष अपने तथा औरों के सन्तानों को उत्तम शिक्षा से विद्या देकर सदा प्रमुदित होवें ॥ १३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे नासत्या पुरुऽभुजाऽश्विनावध्यापकौ यः पुरन्धिर्विद्वान् वध्रिमत्याः करा महे यामन्नजोहवीद्वां युवयोर्यच्छ्रुतं तच्छासुरिवाजोहवीत् तौ युवां सर्वेभ्यो विद्यां जिज्ञासुभ्यो यद्धिरण्यहस्तं श्रुतं तददत्तं सततं दद्यातम् ॥ १३ ॥

Word-Meaning: - (अजोहवीत्) भृशं गृह्णीयात् (नासत्या) असत्याज्ञानविनाशनेन सत्यप्रकाशिनौ (वरा) कुर्वाणौ (वाम्) युवयोः (महे) महते (यामन्) याम्ने सुखप्राप्तये। अत्र या धातोरौणादिको मनिन्। (पुरुभुजा) पुरून् बहूनानन्दान् भुङ्क्तस्तौ (पुरन्धिः) बहुविद्यायुक्तः (श्रुतम्) पठितम् (तत्) (शासुरिव) यथा पूर्णविद्यस्याध्यापकस्य सकाशाच्छिष्याः (वध्रिमत्याः) वध्रयः प्रशस्ता वृद्धयो विद्यन्ते यस्यास्तस्याः सत्स्त्रियः। अत्र वृधु धातोरौणादिको रिक् प्रत्ययो बाहुलकात् रेफलोपः। (हिरण्यहस्तम्) हिरण्यं हस्ते यस्मात् तम् (अश्विनौ) शुभगुणविद्याव्यापिनौ (अदत्तम्) दद्यातम् ॥ १३ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो यथा विद्वान् विदुष्याः पाणिं गृहीत्वा गृहाश्रमव्यवहारं साधयति तथा बुद्धिमतो विद्यार्थिनः संगृह्य पूर्णं विद्याप्रचारं कुरुत यथा चाध्यापकादध्येतारो विद्याः संगृह्यानन्दिता भवन्ति तथा विद्वांसौ स्त्रीपुरुषौ स्वकीयपरकीयापत्येभ्यः सुशिक्षया विद्यां दत्वा सदा प्रमोदेताम् ॥ १३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो! जसे विद्वान लोक विदुषी स्त्रीचे पाणिग्रहण करून गृहस्थाश्रमाचे व्यवहार सिद्ध करतात तसे बुद्धिमान विद्यार्थ्यांचा संग्रह करून पूर्ण विद्या प्रचार करा व जसे अध्यापकाकडून विद्यार्थी विद्येचा संग्रह करून आनंदित होतात तसे विद्वान स्त्री-पुरुषांनी आपल्या व इतरांच्या संतानांना उत्तम शिक्षण देऊन व विद्या देऊन प्रमुदित व्हावे. ॥ १३ ॥