Go To Mantra

जु॒जु॒रुषो॑ नासत्यो॒त व॒व्रिं प्रामु॑ञ्चतं द्रा॒पिमि॑व॒ च्यवा॑नात्। प्राति॑रतं जहि॒तस्यायु॑र्द॒स्रादित्पति॑मकृणुतं क॒नीना॑म् ॥

English Transliteration

jujuruṣo nāsatyota vavrim prāmuñcataṁ drāpim iva cyavānāt | prātirataṁ jahitasyāyur dasrād it patim akṛṇutaṁ kanīnām ||

Mantra Audio
Pad Path

जु॒जु॒रुषः॑। ना॒स॒त्या॒। उ॒त। व॒व्रिम्। प्र। अ॒मु॒ञ्च॒त॒म्। द्रा॒पिम्ऽइ॑व। च्यवा॑नात्। प्र। अ॒ति॒र॒त॒म्। ज॒हि॒तस्य॑। आयुः॑। द॒स्रा॒। आत्। इत्। पति॑म्। अ॒कृ॒णु॒त॒म्। क॒नीना॑म् ॥ १.११६.१०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:116» Mantra:10 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:9» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:10


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सामान्य से विधि का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

Word-Meaning: - हे (नासत्या) राजधर्म की सभा के पति ! तुम दोनों (च्यवानात्) भागे हुए से (द्रापिमिव) कवच के समान (वव्रिम्) अच्छे विभाग करानेवाले को (प्रामुञ्चतम्) भलीभाँति दुःख से पृथक् करो (उत) और (जुजुरुषः) बुड्ढे विद्यावान् शास्त्रज्ञ पढ़ानेवाले से (कनीनाम्) यौवनपन से तेजधारिणी ब्रह्मचारिणी कन्याओं को शिक्षा (अकृणुतम्) करो (आत्) इसके अनन्तर नियत समय की प्राप्ति में उनमें से एक-एक (इत्) ही का एक-एक (पतिम्) रक्षक पति करो। हे (दस्रा) वैद्यों के समान प्राण के देनेहारो ! (जहितस्य) त्यागी की (आयुः) आयुर्दा को (प्रातिरतम्) अच्छे प्रकार पार लों पहुँचाओ ॥ १० ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। राजपुरुष और उपदेश करनेवालों को देनेवालों का दुःख दूर करना चाहिये, विद्याओं में प्रवृत्ति करते हुए कुमार और कुमारियों की रक्षा कर विद्या और अच्छी शिक्षा उनको दिलवाना चाहिये। बालकपन में अर्थात् पच्चीस वर्ष के भीतर पुरुष और सोलह वर्ष के भीतर स्त्री के विवाह को रोक, इसके उपरान्त अड़तालीस वर्ष पर्य्यन्त पुरुष और चौबीस वर्ष पर्यन्त स्त्री का स्वयंवर विवाह कराकर सबके आत्मा और शरीर के बल को पूर्ण करना चाहिये ॥ १० ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विधिः सामान्यत उपदिश्यते ।

Anvay:

हे नासत्या राजधर्मसभापती युवां च्यवानाद्द्रापिमिव वव्रिं प्राऽमुञ्चतम्। दुःखात् पृथक् कुरुतम्। उतापि जुजुरुषो विद्यावयोवृद्धादाप्तादध्यापकात् कनीनां शिक्षामकृणुतमात् समये प्राप्त एकैकस्या इदेवैकैकं पतिं च। हे दस्रा वैद्याविव प्राणदातारौ जहितस्यायुः प्राऽतिरतम् ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (जुजुरुषः) जीर्णाद्वृद्धात् (नासत्या) (उत) अपि (वव्रिम्) संविभक्तारम् (प्र, अमुञ्चतम्) प्रमुञ्चेतम् (द्रापिमिव) यथा कवचम् (च्यवानात्) पालयमानात् (प्र,अतिरतम्) प्रतरेतम् (जहितस्य) हातुः। अत्र हा धातोरौणादिक इतच् प्रत्ययो बाहुलकात् सन्वच्च। (आयुः) जीवनम् (दस्रा) दातारौ (आत्) अनन्तरम् (इत्) एव (पतिम्) पालकं स्वामिनम् (अकृणुतम्) कुरुतम् (कनीनाम्) यौवनत्वेन दीप्तिमतीनां ब्रह्मचारिणीनां कन्यानाम् ॥ १० ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। राजपुरुषैरुपदेशकैश्च दातॄणां दुःखं विनाशनीयम्। विद्यासु प्रवृत्तानां कुमारकुमारीणां रक्षणं विधाय विद्यासुशिक्षे प्रदापनीये, बाल्यावस्थायामर्थात् पञ्चविंशाद्वर्षात्प्राक् पुरुषस्य षोडशात् प्राक् स्त्रियाश्च विवाहं निवार्य्यात ऊर्ध्वं यावदष्टाचत्वारिंशद्वर्षं पुरुषस्याचतुर्विंशतिवर्षं स्त्रियाः स्वयंवरं विवाहं कारयित्वा सर्वेषामात्मशरीरबलमलं कर्त्तव्यम् ॥ १० ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. राजपुरुष व उपदेशक यांनी दात्याचे दुःख दूर करावे. विद्या शिकण्याची प्रवृत्ती असणाऱ्या कुमार-कुमारींचे रक्षण करून विद्या व चांगले शिक्षण त्यांना द्यावे. बाल्यावस्थेत अर्थात पंचवीस वर्षांपूर्वी पुरुष व सोळा वर्षांपूर्वी स्त्री यांचे विवाह करू नयेत. त्यानंतर अठ्ठेचाळीस वर्षांपर्यंत पुरुष व चोवीस वर्षांपर्यंत स्त्रीचा स्वयंवर विवाह करवून सर्वांचे आत्मे व शरीर यांचे बल वाढवावे. ॥ १० ॥