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इ॒दं पि॒त्रे म॒रुता॑मुच्यते॒ वच॑: स्वा॒दोः स्वादी॑यो रु॒द्राय॒ वर्ध॑नम्। रास्वा॑ च नो अमृत मर्त॒भोज॑नं॒ त्मने॑ तो॒काय॒ तन॑याय मृळ ॥

English Transliteration

idam pitre marutām ucyate vacaḥ svādoḥ svādīyo rudrāya vardhanam | rāsvā ca no amṛta martabhojanaṁ tmane tokāya tanayāya mṛḻa ||

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Pad Path

इ॒दम्। पि॒त्रे। म॒रुता॑म्। उ॒च्य॒ते॒। वचः॑। स्वा॒दोः। स्वादी॑यः। रु॒द्राय॑। वर्ध॑नम्। रास्व॑। च॒। नः॒। अ॒मृ॒त॒। म॒र्त॒ऽभोज॑नम्। त्मने॑। तो॒काय। तन॑याय। मृ॒ळ॒ ॥ १.११४.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:114» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:6» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वैद्य और उपदेश करनेवाले कैसे अपना वर्त्ताव वर्त्तें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अमृत) मरण दुःख दूर कराने तथा आयु बढ़ानेहारे वैद्यराज वा उपदेशक विद्वान् ! आप (नः) हमारे (त्मने) शरीर (तोकाय) छोटे-छोटे बाल-बच्चे (तनयाय) ज्वान बेटे (च) और सेवक वैतनिक वा आयुधिक भृत्य अर्थात् नौकर-चाकरों के लिये (स्वादोः) स्वादिष्ठ से (स्वादीयः) स्वादिष्ठ अर्थात् सब प्रकार स्वादवाला जो खाने में बहुत अच्छा लगे उस (मर्त्यभोजनम्) मनुष्यों के भोजन करने के पदार्थ को (रास्व) देओ, जो (इदम्) यह (मरुताम्) ऋतु-ऋतु में यज्ञ करनेहारे विद्वानों को (वर्द्धनम्) बढ़ानेवाला (वचः) वचन (पित्रे) पालना करने (रुद्राय) और दुष्टों को रुलानेहारे सभाध्यक्ष के लिये (उच्यते) कहा जाता है, उससे हम लोगों को (मृड) सुखी कीजिये ॥ ६ ॥
Connotation: - वैद्य और उपदेश करनेवाले को यह योग्य है कि आप नीरोग और सत्याचारी होकर सब मनुष्यों के लिये औषध देने और उपदेश करने से उपकार कर सबकी निरन्तर रक्षा करें ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्वैद्योपदेशकौ कथं वर्त्तेयातामित्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे अमृत विद्वान् वैद्यराजोपदेशक वा त्वं नो अस्मभ्यमस्माकम् वा त्मने तोकाय तनयाय च स्वादोः स्वादीयो मर्त्तभोजनं रास्वा यदिदं मरुतां वर्धनं वचः पित्रे रुद्राय त्वयोच्यते तेनास्मान् मृड ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (इदम्) (पित्रे) पालकाय (मरुताम्) ऋतावृतौ यजतां विदुषाम् (उच्यते) उपदिश्यते (वचः) वचनम् (स्वादोः) स्वादिष्ठात् (स्वादीयः) अतिशयेन स्वादु प्रियकरम् (रुद्राय) सभाध्यक्षाय (वर्धनम्) वृद्धिकरम् (रास्वा) देहि। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (च) अनुक्तसमुच्चये (नः) अस्मभ्यमस्माकं वा (अमृत) नास्ति मृतं मरणदुःखं येन तत्सम्बुद्धौ (मर्तभोजनम्) मर्त्तानां मनुष्याणां भोग्यं वस्तु (त्मने) आत्मने (तोकाय) ह्रस्वाय बालकाय (तनयाय) यूने पुत्राय (मृड) सुखय ॥ ६ ॥
Connotation: - वैद्यस्योपदेशकस्य चेयं योग्यतास्ति स्वयमरोगः सत्याचारी भूत्वा सर्वेभ्यो मनुष्येभ्य औषधदानेनोपदेशेन चोपकृत्य सर्वान् सततं रक्षेत् ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - वैद्य व उपदेशक यांनी स्वतः निरोगी व सत्याचरणी राहून सर्व माणसांना औषधी द्यावी व उपदेश करून सर्वांचे निरंतर रक्षण करावे. ॥ ६ ॥