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दि॒वो व॑रा॒हम॑रु॒षं क॑प॒र्दिनं॑ त्वे॒षं रू॒पं नम॑सा॒ नि ह्व॑यामहे। हस्ते॒ बिभ्र॑द्भेष॒जा वार्या॑णि॒ शर्म॒ वर्म॑ च्छ॒र्दिर॒स्मभ्यं॑ यंसत् ॥

English Transliteration

divo varāham aruṣaṁ kapardinaṁ tveṣaṁ rūpaṁ namasā ni hvayāmahe | haste bibhrad bheṣajā vāryāṇi śarma varma cchardir asmabhyaṁ yaṁsat ||

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Pad Path

दि॒वः। व॒रा॒हम्। अ॒रु॒षम्। क॒प॒र्दिन॑म्। त्वे॒षम्। रू॒पम्। नम॑सा। नि। ह्व॒या॒म॒हे॒। हस्ते॑। बिभ्र॑त्। भे॒ष॒जा। वार्या॑णि। शर्म॑। वर्म॑। छ॒र्दिः। अ॒स्मभ्य॑म्। यं॒स॒त् ॥ १.११४.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:114» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:5» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब वैद्यजन के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हम लोग (नमसा) अन्न और सेवा से जो (हस्ते) हाथ में (भेषजा) रोगनिवारक औषध (वार्य्याणि) और ग्रहण करने योग्य साधनों को (बिभ्रत्) धारण करता हुआ (शर्म्म) घर, सुख (वर्म्म) कवच (छर्दिः) प्रकाशयुक्त शस्त्र और अस्त्रादि को (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (यंसत्) नियम से रक्खे उस (कपर्दिनम्) जटाजूट ब्रह्मचारी वैद्य विद्वान् वा (दिवः) विद्यान्यायप्रकाशित व्यवहारों वा (वराहम्) मेघ के तुल्य (अरुषम्) घोड़े आदि की (त्वेषम्) वा प्रकाशमान (रूपम्) सुन्दर रूप की (निह्वयामहे) नित्य स्पर्द्धा करें ॥ ५ ॥
Connotation: - जो मनुष्य वैद्य के मित्र पथ्यकारी जितेन्द्रिय उत्तम शीलवाले होते हैं, वे ही इस जगत् में रोगरहित और राज्यादि को प्राप्त होकर सुख को बढ़ाते हैं ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ वैद्यविषयमाह ।

Anvay:

वयं नमसा यो हस्ते भेषजा वार्याणि बिभ्रत् सन् शर्म वर्म छर्दिरस्मभ्यं यंसत् तं कपर्दिनं वैद्यं दिवो वराहमरुषं त्वेषं रूपं च निह्वयामहे ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (दिवः) विद्यान्यायप्रकाशितव्यवहारान् (वराहम्) मेघमिव (अरुषम्) अश्वादिकम् (कपर्दिनम्) कृतब्रह्मचर्यं जटिलं विद्वांसम् (त्वेषम्) प्रकाशमानम् (रूपम्) सुरूपम् (नमसा) अन्नेन परिचर्यया च (नि) (ह्वयामहे) स्पर्द्धामहे (हस्ते) करे (बिभ्रत्) धारयन् (भेषजा) रोगनिवारकाणि (वार्याणि) ग्रहीतुं योग्यानि साधनानि (शर्म) गृहं सुखं वा (वर्म) कवचम् (छर्दिः) दीप्तियुक्तं शस्त्रास्त्रादिकम् (अस्मभ्यम्) (यंसत्) यच्छेत् ॥ ५ ॥
Connotation: - ये मनुष्या वैद्यमित्राः पथ्यकारिणो जितेन्द्रियाः सुशीला भवन्ति त एवास्मिञ् जगति नीरोगा भूत्वा राज्यादिकं प्राप्य सुखमेधन्ते ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे वैद्यमित्र, पथ्यकारी, जितेंद्रिय, उत्तम शीलवान असतात तीच या जगात रोगरहित बनतात व राज्य इत्यादीला प्राप्त करतात आणि सुख वाढवितात. ॥ ५ ॥