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अ॒श्याम॑ ते सुम॒तिं दे॑वय॒ज्यया॑ क्ष॒यद्वी॑रस्य॒ तव॑ रुद्र मीढ्वः। सु॒म्ना॒यन्निद्विशो॑ अ॒स्माक॒मा च॒रारि॑ष्टवीरा जुहवाम ते ह॒विः ॥

English Transliteration

aśyāma te sumatiṁ devayajyayā kṣayadvīrasya tava rudra mīḍhvaḥ | sumnāyann id viśo asmākam ā carāriṣṭavīrā juhavāma te haviḥ ||

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Pad Path

अ॒श्याम॑। ते॒। सु॒ऽम॒तिम्। दे॒व॒ऽय॒ज्यया॑। क्ष॒यत्ऽवी॑रस्य। तव॑। रु॒द्र॒। मी॒ढ्वः॒। सु॒म्न॒ऽयन्। इत्। विशः॑। अ॒स्माक॑म्। आ। च॒र॒। अरि॑ष्टऽवीराः। जु॒ह॒वा॒म॒। ते॒। ह॒विः ॥ १.११४.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:114» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:5» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (मीढ्वः) प्रजा को सुख से सींचने और (रुद्र) सत्योपदेश करनेवाले सभाध्यक्ष राजन् ! हम लोग (देवयज्यया) विद्वानों की सङ्गति और सत्कार से (क्षयद्वीरस्य) वीरों का निवास करानेहारे (तव) तेरी (सुमतिम्) श्रेष्ठ प्रज्ञा को (अश्याम) प्राप्त होवें, जो (सुम्नयन्) सुख कराता हुआ तू (अस्माकम्) हमारी (अरिष्टवीराः) हिंसारहित वीरोंवाली (विशः) प्रजाओं को (आ, चर) सब ओर से प्राप्त हो, उस (ते) तेरी प्रजाओं को हम लोग (इत्) भी प्राप्त हों और (ते) तेरे लिये (हविः) देने योग्य पदार्थ को (जुहवाम) दिया करें ॥ ३ ॥
Connotation: - राजा को योग्य है कि प्रजाओं को निरन्तर प्रसन्न रक्खे और प्रजाओं को उचित है कि राजा को आनन्दित करें। जो राजा प्रजा से कर लेकर पालन न करे तो वह राजा डाकुओं के समान जानना चाहिये। जो पालन की हुई प्रजा राजभक्त न हों वे भी चोर के तुल्य जाननी चाहिये, इसलिये प्रजा राजा को कर देती है कि जिससे यह हमारा पालन करे और राजा इसलिये पालन करता है कि जिससे प्रजा मुझको कर देवें ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मीढ्वो रुद्र सभाध्यक्ष राजन् वयं देवयज्यया क्षयद्वीरस्य तव सुमतिमश्याम यः सुम्नयँस्त्वमस्माकमरिष्टवीरा विश आचर समन्तात्प्राप्नुयाः तस्य ते तव वयमिदश्याम ते तुभ्यं हविर्जुहवाम च ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (अश्याम) प्राप्नुयाम (ते) तव (सुमतिम्) शोभनां बुद्धिम् (देवयज्यया) विदुषां सङ्गत्या सत्कारेण च (क्षयद्वीरस्य) क्षयन्तो निवासिता वीरा येन तस्य (तव) (रुद्र) रुतः सत्योपदेशान् राति ददाति तत्संबुद्धौ (मीढ्वः) सुखैः सिञ्चन् (सुम्नयन्) सुखयन् (इत्) अपि (विशः) प्रजाः (अस्माकम्) (आ) (चर) (अरिष्टवीराः) अरिष्टा अहिंसिता वीरा यासु ताः (जुहवाम) दद्याम (ते) तुभ्यम् (हविः) ग्रहीतुं योग्यं करम् ॥ ३ ॥
Connotation: - राज्ञा प्रजाः सततं सुखयितव्याः प्रजाभी राजा च यदि राजा प्रजाभ्यः करं गृहीत्वा न पालयेत्तर्हि स राजा दस्युवद्विज्ञेयः या पालिताः प्रजा राजभक्ता न स्युस्ता अपि चोरतुल्या बोध्या अतएव प्रजा राज्ञे करं ददति यतोऽयमस्माकं पालनं कुर्य्यात् राजाप्येतत्प्रयोजनाय पालयति यतः प्रजा मह्यं करं प्रदद्युः ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - राजाने प्रजेला निरंतर प्रसन्न ठेवावे व प्रजेने राजाला आनंदित करावे. जो राजा प्रजेकडून कर घेतो व त्यांचे पालन करीत नाही त्या राजाला लुटारूप्रमाणे समजावे. जर पालन केलेली प्रजा राजभक्त नसेल तर तीही चोराप्रमाणे समजली पाहिजे. प्रजा राजाला कर यासाठी देते की त्याने प्रजेचे पालन करावे व राजाने त्यांचे यासाठी पालन करावे की प्रजेने त्याला कर द्यावा. ॥ ३ ॥