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उदी॑र्ध्वं जी॒वो असु॑र्न॒ आगा॒दप॒ प्रागा॒त्तम॒ आ ज्योति॑रेति। आरै॒क्पन्थां॒ यात॑वे॒ सूर्या॒याग॑न्म॒ यत्र॑ प्रति॒रन्त॒ आयु॑: ॥

English Transliteration

ud īrdhvaṁ jīvo asur na āgād apa prāgāt tama ā jyotir eti | āraik panthāṁ yātave sūryāyāganma yatra pratiranta āyuḥ ||

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Pad Path

उत्। ई॒र्ध्व॒म्। जी॒वः। असुः॑। नः॒। आ। अ॒गा॒त्। अप॑। प्र। अ॒गा॒त्। तमः॑। आ। ज्योतिः॑। ए॒ति॒। अरै॑क्। पन्था॑म्। यात॑वे। सूर्या॑य। अग॑न्म। यत्र॑। प्र॒ऽति॒रन्ते॑। आयुः॑ ॥ १.११३.१६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:113» Mantra:16 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:4» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:16


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जिस उषा की उत्तेजना से (नः) हम लोगों का (जीवः) जीवन का धर्त्ता इच्छादि गुणयुक्त (असुः) प्राण (आ, अगात्) सब ओर से प्राप्त होता, (ज्योतिः) प्रकाश (प्र, अगात्) प्राप्त होता, (तमः) रात्रि (अप, एति) दूर हो जाती और (यातवे) जाने-आने को (पन्थाम्) मार्ग (अरैक्) अलग प्रकट होता, जिससे हम लोग (सूर्य्याय) सूर्य को (आ, अगन्) अच्छे प्रकार होते तथा (यत्र) जिसमें प्राणी (आयुः) जीवन को (प्रतिरन्ते) प्राप्त होकर आनन्द से बिताते हैं, उसको जानकर (उदीर्ध्वम्) पुरुषार्थ करने में चेष्टा किया करो ॥ १६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे यह प्रातःकाल की उषा सब प्राणियों को जगाती, अन्धकार को निवृत्त करती है। और जैसे सांयकाल की उषा सबको कार्य्यों से निवृत्त करके सुलाती है अर्थात् माता के समान सब जीवों को अच्छे प्रकार पालन कर व्यवहार में नियुक्त कर देती है, वैसे ही सज्जन विदुषी स्त्री होती है ॥ १६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मनुष्या यस्या उषसः सकाशान् नोऽस्माञ्जीवोसुरागाज्ज्योतिः प्रागात्तमोपैति यातवे पन्थामरैक् तथा यतो वयं सूर्यायागन्म प्राणिनो यत्रायुः प्रतिरन्ते तां विदित्वोदीर्ध्वम् ॥ १६ ॥

Word-Meaning: - (उत्) ऊर्ध्वम् (ईर्ध्वम्) कम्पध्वम् (जीवः) इच्छादिगुणविशिष्टः (असुः) प्राणः (नः) अस्मान् (आ) (अगात्) आगच्छति (अप) (प्र) (अगात्) गच्छति (तमः) तिमिरम् (एति) प्राप्नोति (अरैक्) न्यतिरिणक्ति (पन्थाम्) पन्थानम्। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वेति न लोपः। (यातवे) यातुम् (सूर्याय) सूर्यम्। गत्यर्थकर्मणि द्वितीयाचतुर्थ्यौ०। (अगन्म) गच्छामः (यत्र) (प्रतिरन्ते) प्रकृष्टतया तरन्ति उल्लङ्घयन्ति (आयुः) जीवनम् ॥ १६ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। प्रातःकालीनोषाः सर्वान् प्राणिनो जागरयति अन्धकारं च निवर्त्तयति। यथेयं सायंकालस्था सर्वान् कार्येभ्यो निवर्त्य स्वापयति मातृवत् सर्वान् व्यवहारयति तथैव सती विदुषी स्त्री भवति ॥ १६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी ही प्रातःकाळची उषा सर्व प्राण्यांना जागविते, अंधकार नाहीसा करते व जशी संध्याकाळची वेला सर्वांना कार्यांपासून निवृत्त करून झोपविते. अर्थात मातेप्रमाणे सर्व जीवांचे चांगल्या प्रकारे पालन करून व्यवहारात नियुक्त करते तशी सत्त्वगुणी विदुषी स्त्री असते. ॥ १६ ॥