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या॒व॒यद्द्वे॑षा ऋत॒पा ऋ॑ते॒जाः सु॑म्ना॒वरी॑ सू॒नृता॑ ई॒रय॑न्ती। सु॒म॒ङ्ग॒लीर्बिभ्र॑ती दे॒ववी॑तिमि॒हाद्योष॒: श्रेष्ठ॑तमा॒ व्यु॑च्छ ॥

English Transliteration

yāvayaddveṣā ṛtapā ṛtejāḥ sumnāvarī sūnṛtā īrayantī | sumaṅgalīr bibhratī devavītim ihādyoṣaḥ śreṣṭhatamā vy uccha ||

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Pad Path

या॒व॒यत्ऽद्वे॑षाः। ऋ॒त॒ऽपाः। ऋ॒ते॒ऽजाः। सु॒म्न॒ऽवरी॑। सू॒नृताः॑। ई॒रय॑न्ती। सु॒ऽम॒ङ्ग॒लीः। बिभ्र॑ती। दे॒वऽवी॑तिम्। इ॒ह। अ॒द्य। उ॒षः॒। श्रेष्ठ॑ऽतमा। वि। उ॒च्छ॒ ॥ १.११३.१२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:113» Mantra:12 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:3» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उषा के प्रसङ्ग से स्त्रीविषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (उषः) उषा के वर्त्तमान विदुषी स्त्रि ! (यावयद्द्वेषाः) जिसने द्वेषयुक्त कर्म दूर किये (ऋतपाः) सत्य की रक्षक (ऋतेजाः) सत्य व्यवहार में प्रसिद्ध (सुम्नावरी) जिसमें प्रशंसित सुख विद्यमान वा (सुमङ्गलीः) जिसमें सुन्दर मङ्गल होते उन (सूनृताः) वेदादि सत्यशास्त्रों की सिद्धान्तवाणियों को (ईरयन्ती) शीघ्र प्रेरणा करती हुई (श्रेष्ठतमा) अतिशय उत्तम गुण, कर्म और स्वभाव से युक्त (देववीतिम्) विद्वानों की विशेष नीति को (बिभ्रती) धारण करती हुई तूं (इह) यहाँ (अद्य) आज (व्युच्छ) दुःख को दूर कर ॥ १२ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे प्रभात वेला अन्धकार का निवारण, प्रकाश का प्रादुर्भाव करा, धार्मिकों को सुखी और चोरादि को पीड़ित करके सब प्राणियों को आनन्दित करती है, वैसे ही विद्या, धर्म, प्रकाशवती शमादि गुणों से युक्त, विदुषी, उत्तम स्त्री अपने पतियों से सन्तानोत्पत्ति करके अच्छी शिक्षा से अविद्यान्धकार को छुड़ा विद्यारूप सूर्य को प्राप्त करा कुल को सुभूषित करें ॥ १२ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरुषःप्रसङ्गेन स्त्रीविषयमाह ।

Anvay:

हे उषरुषर्वद्यावयद्द्वेषा ऋतपाः ऋतेजाः सुम्नावरी सुमङ्गलीः सूनृताः ईरयन्ती श्रेष्ठतमा देववीतिं बिभ्रती त्वमिहाद्य व्युच्छ ॥ १२ ॥

Word-Meaning: - (यावयद्द्वेषाः) यवयन्ति दूरीकृतानि द्वेषांस्यप्रियकर्माणि यया सा (ऋतपाः) सत्यपालिका (ऋतेजाः) सत्ये प्रादुर्भूता (सुम्नावरी) सुम्नानि प्रशस्तानि सुखानि विद्यन्ते यस्यां सा (सूनृताः) वेदादिसत्यशास्त्रसिद्धान्तवाचः (ईरयन्ती) सद्यः प्रेरयन्ती (सुमङ्गलीः) शोभनानि मङ्गलानि यासु ताः (देववीतिम्) विदुषां वीतिं विशिष्टां नीतिम् (इह) (अद्य) (उषः) उषर्वद् वर्त्तमाने विदुषि (श्रेष्ठतमा) अतिशयेन प्रशंसिता (न) (उच्छ) दुःखं विवासय ॥ १२ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथोषास्तमो विवार्य प्रकाशं प्रादुर्भाव्य धार्मिकान् सुखयित्वा चोरादीन् पीडयित्वा सर्वान् प्राणिन आह्लादयति तथैव विद्याधर्मप्रकाशवत्यः शमादिगुणान्विता विदुष्यस्सत्स्त्रियः स्वपतिभ्योऽपत्यानि कृत्वा सुशिक्षया विद्यान्धकारं निवार्य्य विद्यार्कं प्रापय्य कुलं सुभूषयेयुः ॥ १२ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी प्रभात वेळा अंधःकाराचे निवारण करून प्रकाशाचा प्रादुर्भाव करते. धार्मिक लोकांना सुखी करून चोरांना त्रस्त करून सर्व प्राण्यांना आनंदित करते तसेच विद्या, धर्म प्रकाशयुक्त, शम इत्यादी गुणांनी युक्त, विदुषी स्त्रियांनी आपल्या पतींकडून संतानोत्त्पत्ती करून उत्तम शिक्षणाने अविद्यांधकार नाहीसा करून विद्यारूपी सूर्य प्राप्त करून कुल सुशोभित करावे. ॥ १२ ॥