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याभि॒: कुत्स॑मार्जुने॒यं श॑तक्रतू॒ प्र तु॒र्वीतिं॒ प्र च॑ द॒भीति॒माव॑तम्। याभि॑र्ध्व॒सन्तिं॑ पुरु॒षन्ति॒माव॑तं॒ ताभि॑रू॒ षु ऊ॒तिभि॑रश्वि॒ना ग॑तम् ॥

English Transliteration

yābhiḥ kutsam ārjuneyaṁ śatakratū pra turvītim pra ca dabhītim āvatam | yābhir dhvasantim puruṣantim āvataṁ tābhir ū ṣu ūtibhir aśvinā gatam ||

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Pad Path

याभिः॑। कुत्स॑म्। आ॒र्जु॒ने॒यम्। श॒त॒क्र॒तू॒ इति॑ शतऽक्रतू। प्र। तु॒र्वीति॑म्। प्र। च॒। द॒भीति॑म्। आव॑तम्। याभिः॑। ध्व॒सन्ति॑म्। पु॒रु॒ऽसन्ति॑म्। आव॑तम्। ताभिः॑। ऊँ॒ इति॑। सु। ऊ॒तिऽभिः॑। अ॒श्वि॒ना॒। आ। ग॒त॒म् ॥ १.११२.२३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:112» Mantra:23 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:37» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:23


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब वे राजजन दुष्टों की निवृत्ति और श्रेष्ठों की रक्षा कैसे करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (शतक्रतू) असंख्योत्तम बुद्धिकर्मयुक्त (अश्विना) सभा सेना के पति ! आप दोनों (याभिः) जिन (ऊतिभिः) रक्षा आदि से सूर्य-चन्द्रमा के समान प्रकाशमान होकर (आर्जुनेयम्) सुन्दर रूप के साथ सिद्ध किये हुए (कुत्सम्) वज्र का ग्रहण करके (तुर्वीतिम्) हिंसक (दभीतिम्) दम्भी (ध्वसन्तिम्) नीच गति को जानेवाले पापी को (प्र, आवतम्) अच्छे प्रकार मारो (च) और (याभिः) जिन रक्षाओं से (पुरुषन्तिम्) बहुतों को अलग बांटनेवाले की (प्र, आवतम्) रक्षा करो, (ताभिः, उ) उन्हीं रक्षाओं से धर्म की रक्षा करने को (सु, आ, गतम्) अच्छे प्रकार तत्पर हूजिये ॥ २३ ॥
Connotation: - राजादि मनुष्यों को योग्य है कि शस्त्रास्त्र प्रयोगों को जान, दुष्ट शत्रुओं का निवारण करके जितने इस संसार में अधर्मयुक्त कर्म हैं उतनों का धर्म्मोपदेश से निवारण कर, नाना प्रकार की रक्षा का विधानकर, प्रजा का अच्छे प्रकार पालन करके परम आनन्द का भोग किया करें ॥ २३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ ते दुष्टनिवृत्तिं श्रेष्ठरक्षां कथं कुर्य्युरित्याह ।

Anvay:

हे शतक्रतू अश्विना सभासेनेशौ युवां याभिरूतिभिः सूर्यचन्द्रवत् प्रकाशमानौ सन्तावार्जुनेयं कुत्सं संगृह्य तुर्वीतिं दभीतिं ध्वसन्तिं प्रावतम्। याभिः पुरुषन्तिं च प्रावतं ताभिरु धर्मं रक्षितुं स्वागतम् ॥ २३ ॥

Word-Meaning: - (याभिः) (कुत्सम्) वज्रम् (आर्जुनेयम्) अर्जुनेन रूपेण निर्वृत्तम्। अत्र चातुरर्थिको ढक्। (शतक्रतू) शतं प्रज्ञा कर्माणि वा ययोस्तौ (प्र) (तुर्वीतिम्) हिंसकम्। अत्र बाहुलकात् कीतिः प्रत्ययः। (प्र) (च) समुच्चये (दभीतिम्) दम्भिनम् (आवतम्) हन्यातम् (याभिः) (ध्वसन्तिम्) अधोगन्तारं पापिनम् (पुरुषन्तिम्) पुरूणां बहूनां सन्तिं विभाजितारम् (आवतम्) रक्षतम् (ताभिः) इति पूर्ववत् ॥ २३ ॥
Connotation: - राजादिमनुष्यैः शस्त्रास्त्रप्रयोगान् विदित्वा दुष्टान् शत्रून् निवार्य यावन्तीहाधर्मयुक्तानि कर्माणि सन्ति तावन्ति धर्मोपदेशेन निवार्य विविधा रक्षा विधाय प्रजाः संपाल्य परमानन्दो भोक्तव्यः ॥ २३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - राजा इत्यादींनी शस्त्रास्त्र प्रयोग जाणावे, दुष्ट शत्रूंचे निवारण करून या जगात जितके अधर्मयुक्त कर्म आहेत त्यांचे धर्मोपदेशनाने निवारण करून नाना प्रकारच्या रक्षणाचे कायदे करून प्रजेचे चांगल्या प्रकारे पालन करावे व परम आनंद भोगावा. ॥ २३ ॥