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याभि॒र्नरं॑ गोषु॒युधं॑ नृ॒षाह्ये॒ क्षेत्र॑स्य सा॒ता तन॑यस्य॒ जिन्व॑थः। याभी॒ रथाँ॒ अव॑थो॒ याभि॒रर्व॑त॒स्ताभि॑रू॒ षु ऊ॒तिभि॑रश्वि॒ना ग॑तम् ॥

English Transliteration

yābhir naraṁ goṣuyudhaṁ nṛṣāhye kṣetrasya sātā tanayasya jinvathaḥ | yābhī rathām̐ avatho yābhir arvatas tābhir ū ṣu ūtibhir aśvinā gatam ||

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Pad Path

याभिः॑। नर॑म्। गो॒षु॒ऽयुध॑म्। नृ॒ऽसह्ये॑। क्षेत्र॑स्य। सा॒ता। तन॑यस्य। जिन्व॑थः। याभिः॑। रथा॑न्। अव॑थः। याभिः॑। अर्व॑तः। ताभिः॑। ऊँ॒ इति॑। सु। ऊ॒तिऽभिः॑। अ॒श्वि॒ना॒। आ। ग॒त॒म् ॥ १.११२.२२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:112» Mantra:22 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:37» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:22


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उनका युद्ध में कैसा आचरण करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अश्विना) सभासेना के अध्यक्ष ! तुम दोनों (नृषाह्ये) वीरों को सहने और (साता) सेवन करने योग्य संग्राम में (याभिः) जिन (ऊतिभिः) रक्षाओं से (गोषुयुधम्) पृथिवी पर युद्ध करनेहारे (नरम्) नायक को (जिन्वथः) प्रसन्न करो (याभिः) वा जिन रक्षाओं से (क्षेत्रस्य) स्त्री और (तनयस्य) सन्तान को प्रसन्न रक्खो (उ) और (याभिः) जिन रक्षाओं से (रथान्) रथों (अर्वतः) और घोड़ों की (अवतः) रक्षा करो (ताभिः) उन रक्षाओं से सब प्रजाओं की रक्षा करने को (सु, आ, गतम्) अच्छे प्रकार प्रवृत्त हूजिये ॥ २२ ॥
Connotation: - मनुष्यों को योग्य है कि युद्ध में शत्रुओं को मार अपने भृत्य आदि की रक्षा करके सेना के अङ्गों को बढ़ावें और स्त्री, बालकों, युद्ध के देखनेवाले और दूतों को कभी न मारें ॥ २२ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तैर्युद्धे कथमाचरणीयमित्याह ।

Anvay:

हे अश्विना सभासेनाध्यक्षौ युवां नृषाह्ये साता संग्रामे याभिरूतिभिर्गोषु युधं नरं जिन्वथो याभिः क्षेत्रस्य तनयस्य जिन्वथ उ याभी रथानर्वतोऽवथस्ताभिः सर्वाः प्रजाश्च संरक्षितुं स्वागतम् ॥ २२ ॥

Word-Meaning: - (याभिः) (नरम्) नेतारम् (गोषुयुधम्) पृथिव्यादिषु योद्धारम् (नृषाह्ये) नृभिः षोढव्ये (क्षेत्रस्य) स्त्रियाः (साता) संभजनीये संग्रामे। अत्र सप्तम्येकवचनस्य डादेशः। (तनयस्य) (जिन्वथः) प्रीणीत (याभिः) (रथान्) विमानादियानानि (अवथः) वर्धयेतम् (याभिः) (अर्वतः) अश्वान् (ताभिः०) (इति पूर्ववत्) ॥ २२ ॥
Connotation: - मनुष्यैर्युद्धे शत्रून् हत्वा स्वभृत्यादीन् संरक्ष्य सेनाङ्गानि वर्धनीयानि न जातु स्त्रीबालकौ हन्तव्यौ नायोद्धा संप्रेक्षका दूताश्चेति ॥ २२ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी युद्धात शत्रूंचे हनन करावे. आपले सेवक इत्यादींचे रक्षण करून सेनेच्या अंगांना वाढवावे. स्त्री, बालक, युद्ध पाहणारे व दूत यांचे कधी हनन करू नये. ॥ २२ ॥