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ऋ॒भु॒क्षण॒मिन्द्र॒मा हु॑व ऊ॒तय॑ ऋ॒भून्वाजा॑न्म॒रुत॒: सोम॑पीतये। उ॒भा मि॒त्रावरु॑णा नू॒नम॒श्विना॒ ते नो॑ हिन्वन्तु सा॒तये॑ धि॒ये जि॒षे ॥

English Transliteration

ṛbhukṣaṇam indram ā huva ūtaya ṛbhūn vājān marutaḥ somapītaye | ubhā mitrāvaruṇā nūnam aśvinā te no hinvantu sātaye dhiye jiṣe ||

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Pad Path

ऋ॒भु॒क्षण॑म्। इन्द्र॑म्। आ। हु॒वे॒। ऊ॒तये॑। ऋ॒भून्। वाजा॑न्। म॒रुतः॑। सोम॑ऽपीतये। उ॒भा। मि॒त्रावरु॑णा। नू॒नम्। अ॒श्विना॑। ते। नः॒। हि॒न्व॒न्तु॒। सा॒तये॑। धि॒ये। जि॒षे ॥ १.१११.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:111» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:32» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

इनका किसलिये हम सत्कार करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - मैं (ऊतये) रक्षा आदि व्यवहार के लिये (ऋभुक्षणम्) जो बुद्धिमानों को वसाता वा समझाता है उस (इन्द्रम्) परमैश्वर्ययुक्त उत्तम बुद्धिमान् को (आहुवे) अच्छी प्रकार स्वीकार करता हूँ। मैं (सोमपीतये) पदार्थों के निकाले हुए रस पिआनेहारे यज्ञ के लिये (वाजान्) जो कि अतीव ज्ञानवान् (मरुतः) और ऋतु-ऋतु में अर्थात् समय-समय पर यज्ञ करने वा करानेहारे (ऋभून्) ऋत्विज् हैं उन बुद्धिमानों को स्वीकार करता हूँ। मैं (उभा) दोनों (मित्रावरुणा) सबके मित्र, सबसे श्रेष्ठ, (अश्विना) समस्त अच्छे-अच्छे गुणों में रहनेहारे, पढ़ाने और पढ़नेहारों को स्वीकार करता हूँ। जो (धिये) उत्तम बुद्धि के पाने के लिये (सातये) वा बांट-चूंट के लिये वा (जिषे) शत्रुओं के जीतने को (नः) हम लोगों के समझाने वा बढ़ाने को समर्थ हैं (ते) विद्वान् जन हम लोगों को (नूनम्) एक निश्चय से (हिन्वन्तु) बढ़ावें और समझावें ॥ ४ ॥
Connotation: - जो शास्त्र में दक्ष, सत्यवादी, क्रियाओं में अतिचतुर और विद्वानों का सेवन करते हैं, वे अच्छी शिक्षायुक्त उत्तम बुद्धि को प्राप्त हों और शत्रुओं को जीतकर कैसे न उन्नति को प्राप्त हों ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

एतान् किमर्थं सत्कुर्यामेत्युपदिश्यते ।

Anvay:

अहमूतय ऋभुक्षणमिन्द्रमाहुवे। अहं सोमपीतये वाजान् मरुत ऋभूनाहुवे। अहमुभा मित्रावरुणाश्विना हुवे। ये धिये सातये शत्रून् जिषे नोऽस्मान् विज्ञापयन्तु वर्द्धयितुं शक्नुवन्तु ते विद्वांसो नोऽस्मान् नूनं हिन्वन्तु ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (ऋभुक्षणम्) य ऋभून् मेधाविनः क्षाययति निवासयति ज्ञापयति वा तम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्ययुक्तम् (आ) समन्तात् (हुवे) आददामि गृह्णामि (ऊतये) रक्षणाद्याय (ऋभून्) मेधाविनः (वाजान्) ज्ञानोत्कृष्टान् (मरुतः) ऋत्विजः (सोमपीतये) सोमपानार्थाय यज्ञाय (उभा) उभौ द्वौ। अत्र सुपां सुलुगित्याकारादेशः। (मित्रावरुणा) सर्वसुहृत्सर्वोत्कृष्टौ। अत्राप्याकारादेशः। (नूनम्) निश्चये (अश्विना) सर्वशुभगुणव्यापनशीलावध्यापकाध्येतारौ (ते) (नः) अस्मान् (हिन्वन्तु) विज्ञापयन्तु वर्द्धयन्तु वा (सातये) संविभागाय (धिये) प्रज्ञाप्राप्तये (जिषे) शत्रूञ्जेतुम्। तुमर्थे से० इति क्सेप्रत्ययः ॥ ४ ॥
Connotation: - य आप्तान् क्रियाकुशलान् सेवन्ते ते सुशिक्षाविद्यायुक्तां प्रज्ञां प्राप्य शत्रून् विजित्य कुतो न वर्द्धेरन् ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे शास्त्रात दक्ष सत्यवादी, अत्यंत क्रियाकुशल असून विद्वानांचा अंगीकार करतात त्यांना चांगल्या शिक्षणाने उत्तम बुद्धी प्राप्त होते तेव्हा शत्रूंना जिंकून त्यांची उन्नती कशी होणार नाही?