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आ त॑क्षत सा॒तिम॒स्मभ्य॑मृभवः सा॒तिं रथा॑य सा॒तिमर्व॑ते नरः। सा॒तिं नो॒ जैत्रीं॒ सं म॑हेत वि॒श्वहा॑ जा॒मिमजा॑मिं॒ पृत॑नासु स॒क्षणि॑म् ॥

English Transliteration

ā takṣata sātim asmabhyam ṛbhavaḥ sātiṁ rathāya sātim arvate naraḥ | sātiṁ no jaitrīṁ sam maheta viśvahā jāmim ajāmim pṛtanāsu sakṣaṇim ||

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Pad Path

आ। त॒क्ष॒त॒। सा॒तिम्। अ॒स्मभ्य॑म्। ऋ॒भ॒वः॒। सा॒तिम्। रथा॑य। सा॒तिम्। अर्व॑ते। न॒रः॒। सा॒तिम्। नः॒। जैत्री॑म्। सम्। म॒हे॒त॒। वि॒श्वऽहा॑। जा॒मिम्। अजा॑मिम्। पृत॑नासु। स॒क्षणि॑म् ॥ १.१११.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:111» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:32» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (ऋभवः) शिल्पक्रिया में अति चतुर (नरः) मनुष्यो ! तुम (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (विश्वहा) सब दिन (रथाय) विमान आदि यानसमूह की सिद्धि के लिये (सातिम्) अलग विभाग करना और (अवते) उत्तम अश्व के लिये (सातिम्) अलग-अलग घोड़ों की सिखावट को (आ, तक्षत) सब प्रकार से सिद्ध करो और (पृतनासु) सेनाओं में (सातिम्) विद्यादि उत्तम-उत्तम पदार्थ वा (जामिम्) प्रसिद्ध और (अजामिम्) अप्रसिद्ध (सक्षणिम्) सहन करनेवाले शत्रु को जीतके (नः) हमारे लिये (जैत्रीम्) जीत देनेहारी (सातिम्) उत्तम भक्ति को (सम्, महेत) अच्छे प्रकार प्रशंसित करो ॥ ३ ॥
Connotation: - जो विद्वान् जन हमारी रक्षा करने और शत्रुओं को जीतनेहारे हैं, उनका सत्कार हम लोग निरन्तर करें ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते किं कुर्य्युरित्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे ऋभवो नरो यूयमस्मभ्यं विश्वहा रथाय सातिमर्वते च सातिमातक्षत पृतनासु सातिं जामिमजामिं सक्षणिं शत्रुं जित्वा नोऽस्मभ्यं जैत्रीं सातिं संमहेत ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (आ) अभितः (तक्षत) निष्पादयत (सातिम्) विद्यादिदानम् (अस्मभ्यम्) (ऋभवः) मेधाविनः (सातिम्) संविभागम् (रथाय) विमानादियानसमूहसिद्धये (सातिम्) अश्वशिक्षाविभागम् (अर्वते) अश्वाय (नरः) विद्यानायकाः (सातिम्) संभक्तिम् (नः) अस्मभ्यम् (जैत्रीम्) जयशीलाम् (सम्) (महेत) पूजयेत (विश्वहा) सर्वाणि दिनानि। अत्र कृतो बहुलमित्यधिकरणे क्विप्। सुपां सुलुगित्यधिकरणस्य स्थान आकारादेशः। (जामिम्) प्रसिद्धं (अजामिम्) अप्रसिद्धं वैरिणम् (पृतनासु) सेनासु (सक्षणिम्) सोढारम् ॥ ३ ॥
Connotation: - ये विद्वांसोऽस्माकं रक्षकाः शत्रूणां विजेतारः सन्ति तेषां सत्कारं वयं सततं कुर्य्याम ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे विद्वान आमचे रक्षण करणारे व शत्रूंना जिंकणारे आहेत त्यांचा सत्कार आम्ही सदैव करावा. ॥ ३ ॥