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वाजे॑भिर्नो॒ वाज॑सातावविड्ढ्यृभु॒माँ इ॑न्द्र चि॒त्रमा द॑र्षि॒ राध॑:। तन्नो॑ मि॒त्रो वरु॑णो मामहन्ता॒मदि॑ति॒: सिन्धु॑: पृथि॒वी उ॒त द्यौः ॥

English Transliteration

vājebhir no vājasātāv aviḍḍhy ṛbhumām̐ indra citram ā darṣi rādhaḥ | tan no mitro varuṇo māmahantām aditiḥ sindhuḥ pṛthivī uta dyauḥ ||

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Pad Path

वाजे॑भिः। नः॒। वाज॑ऽसातौ। अ॒वि॒ड्ढि॒। ऋ॒भु॒मान्। इ॒न्द्र॒। चि॒त्रम्। आ। द॒र्षि॒। राधः॑। तत्। नः॒। मि॒त्रः। वरु॑णः। म॒म॒ह॒न्ता॒म्। अदि॑तिः। सिन्धुः॑। पृ॒थि॒वी। उ॒त। द्यौः ॥ १.११०.९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:110» Mantra:9 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:31» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सेनाध्यक्ष कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययुक्त सेनाध्यक्ष ! (ऋभुमान्) जिनके प्रशंसित बुद्धिमान् जन विद्यमान हैं वे आप (नः) हमारे लिये जिस (राधः) धन को (मित्रः) सुहृत् जन (वरुणः) श्रेष्ठ गुणयुक्त (अदितिः) अन्तरिक्ष (सिन्धुः) समुद्र (पृथिवी) पृथिवी (उत) और (द्यौः) सूर्य्य का प्रकाश (मामहन्ताम्) बढ़ावें (तत्) उस (चित्रम्) अद्भुत धन को (अविड्ढि) व्याप्त हूजिये अर्थात् सब प्रकार समझिये और (नः) हम लोगों को (वाजेभिः) अन्नादि सामग्रियों से (वाजसातौ) संग्राम में (आदर्षि) आदरयुक्त कीजिये ॥ ९ ॥
Connotation: - कोई सेनाध्यक्ष बुद्धिमानों के सहाय के विना शत्रुओं को जीत नहीं सकता ॥ ९ ॥।इस सूक्त में बुद्धिमानों के काम और गुणों का वर्णन है। इससे इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥यह –३१ एकतीसवाँ वर्ग और– ११० एकसौ दशवाँ सूक्त पूरा हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सेनाध्यक्षः कीदृशः इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे इन्द्र ऋभुमाँस्त्वं नो यद्राधो मित्रो वरुणोऽदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौर्मामहन्तां तच्चित्रं राधो विड्ढि नोऽस्माँश्च वाजेभिर्वाजसातावादर्षि समन्तादादरयुक्तान् कुरु ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (वाजेभिः) वाजैरन्नादिसामग्रीभिः सह (नः) (वाजसातौ) संग्रामे (अविड्ढि) व्याप्नुहि। अत्र विष्लृधातोः शपो लुकि लोटि मध्यमैकवचने हेर्धिः ष्टुत्वं जश्त्वं च छन्दस्यपि दृश्यत इत्यडागमः। (ऋभुमान्) प्रशस्ता ऋभवो मेधाविनो विद्यन्ते यस्य सः (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययुक्त सेनाध्यक्ष (चित्रम्) आश्चर्य्यगुणयुक्तम् (आ) (दर्षि) द्रियस्वादरं कुरु। अत्र दृङ् आदर इत्यस्माल्लोटि मध्यमैकवचने वाच्छन्दसीति तिपः पित्वाद्गुणः। (राधः) धनम्। तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामिति पूर्ववत् ॥ ९ ॥
Connotation: - नहि कश्चित्सेनाध्यक्षो बुद्धिमतां सहायेन विना शत्रून् विजेतुं शक्नोतीति ॥ ९ ॥अत्र मेधाविनां कर्मगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥इत्येकत्रिंशो वर्गो दशोत्तरं शततमं सूक्तं च समाप्तम् ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - कोणताही सेनाध्यक्ष बुद्धिमानाच्या साह्याखेरीज शत्रूंना जिंकू शकत नाही. ॥ ९ ॥