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तत्स॑वि॒ता वो॑ऽमृत॒त्वमासु॑व॒दगो॑ह्यं॒ यच्छ्र॒वय॑न्त॒ ऐत॑न। त्यं चि॑च्चम॒समसु॑रस्य॒ भक्ष॑ण॒मेकं॒ सन्त॑मकृणुता॒ चतु॑र्वयम् ॥

English Transliteration

tat savitā vo mṛtatvam āsuvad agohyaṁ yac chravayanta aitana | tyaṁ cic camasam asurasya bhakṣaṇam ekaṁ santam akṛṇutā caturvayam ||

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Pad Path

तत्। स॒वि॒ता। वः॒। अ॒मृ॒त॒ऽत्वम्। आ। अ॒सु॒व॒त्। अगो॑ह्यम्। यत्। श्र॒वय॑न्तः। ऐत॑न। त्यम्। चि॒त्। च॒म॒सम्। असु॑रस्य। भक्ष॑णम्। एक॑म्। सन्त॑म्। अ॒कृ॒णु॒त॒। चतुः॑ऽवयम् ॥ १.११०.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:110» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:30» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे वर्त्तें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे बुद्धिमानो ! तुम जो (सविता) ऐश्वर्य्य का देनेवाला विद्वान् (वः) तुम्हारे लिये (यत्) जिस (अमृतत्वम्) मोक्षभाव के (आ, असुवत्) अच्छे प्रकार ऐश्वर्य्य का योग करे (तत्) उसको (अगोह्यम्) प्रकट (श्रवयन्तः) सुनाते हुए सब विद्याओं को (ऐतन) समझाओ, (असुरस्य) जो प्राणों में रम रहा है, उस मेघ के (चमसम्) जिसमें सब भोजन करते हैं अर्थात् जिससे उत्पन्न हुए अन्न को सब खाते हैं (त्यम्) उस (भक्षणम्) सूर्य के प्रकाश को निगल जाने के (चित्) समान (चतुर्वयम्) जिसमें धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष हैं ऐसे (एकम्) एक (सन्तम्) अपने वर्त्ताव को (अकृणुत) करो ॥ ३ ॥
Connotation: - हे विद्वानो ! जैसे मेघ प्राण की पुष्टि करनेवाले अन्न आदि पदार्थों को देनेवाला होकर सुखी करता है, वैसे ही आप लोग विद्या के दान करनेवाले होकर विद्यार्थियों को विद्वान् कर सुन्दर उपकार करो ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते कथं वर्त्तेरन्नित्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे बुद्धिमन्तो यूयं यः सविता वो यदमृतत्वमासुवत् तद्गोह्यं श्रवयन्तः सकला विद्या ऐतन विज्ञापयत। असुरस्य चमसं त्यं भक्षणं चिदिव चतुर्वयमेकं सन्तमकृणुत ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (तत्) (सविता) ऐश्वर्यप्रदो विद्वान् (वः) युष्मभ्यम् (अमृतत्वम्) मोक्षभावम् (आ) (असुवत्) ऐश्वर्ययोगं कुर्यात् (अगोह्यम्) गोप्तुमनर्हम् (यत्) (श्रवयन्तः) श्रावयन्तः (ऐतन) विज्ञापयत (त्यम्) अमुम् (चित्) इव (चमसम्) चमन्त्यस्मिन् मेघे (असुरस्य) असुषु प्राणेषु रतस्य। असुरताः। निरु० ३। ८। (भक्षणम्) सूर्य्यप्रकाशस्याभ्यवहरणम् (एकम्) असहायम् (सन्तम्) वर्त्तमानम् (अकृणुत) कुरुत। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (चतुर्वयम्) चत्वारो धर्मार्थकाममोक्षा वया व्याप्तव्या येन तम् ॥ ३ ॥
Connotation: - हे विद्वांसो यथा मेघः प्राणपोषकान्नजलादिपदार्थप्रदो भूत्वा सुखयति तथैव यूयं विद्यादातारो भूत्वा विद्यार्थिनो विदुषः संपाद्य सूपकारान् कुरुत ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वानांनो ! जसा मेघ, प्राणपोषक अन्न व जल इत्यादी पदार्थ देतो व सुखी करतो तसेच तुम्ही विद्यादान करून विद्यार्थ्यांना विद्वान बनवून उपकृत करा. ॥ ३ ॥