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इन्द्र॒मीशा॑न॒मोज॑सा॒भि स्तोमा॑ अनूषत। स॒हस्रं॒ यस्य॑ रा॒तय॑ उ॒त वा॒ सन्ति॒ भूय॑सीः॥

English Transliteration

indram īśānam ojasābhi stomā anūṣata | sahasraṁ yasya rātaya uta vā santi bhūyasīḥ ||

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Pad Path

इन्द्र॑म्। ईशा॑नम्। ओज॑सा। अ॒भि। स्तोमाः॑। अ॒नू॒ष॒त॒। स॒हस्र॑म्। यस्य॑। रा॒तयः॑। उ॒त। वा॒। सन्ति॑। भूय॑सीः॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:11» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:21» Mantra:8 | Mandal:1» Anuvak:3» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अगले मन्त्र में ईश्वर के गुणों का उपदेश किया है-

Word-Meaning: - (यस्य) जिस जगदीश्वर के ये सब (स्तोमाः) स्तुतियों के समूह (सहस्रम्) हजारों (उत वा) अथवा (भूयसीः) अधिक (रातयः) दान (सन्ति) हैं, वे उस (ओजसा) अनन्त बल के साथ वर्त्तमान (ईशानम्) कारण से सब जगत् को रचनेवाले तथा (इन्द्रम्) सकल ऐश्वर्य्ययुक्त जगदीश्वर के (अभ्यनूषत) सब प्रकार से गुणकीर्त्तन करते हैं॥८॥
Connotation: - जिस दयालु ईश्वर ने प्राणियों के सुख के लिये जगत् में अनेक उत्तम-उत्तम पदार्थ अपने पराक्रम से उत्पन्न करके जीवों को दिये हैं, उसी ब्रह्म के स्तुतिविधायक सब धन्यवाद होते हैं, इसलिये सब मनुष्यों को उसी का आश्रय लेना चाहिये॥८॥इस सू्क्त में इन्द्र शब्द से ईश्वर की स्तुति, निर्भयता-सम्पादन, सूर्य्यलोक के कार्य्य, शूरवीर के गुणों का वर्णन, दुष्ट शत्रुओं का निवारण, प्रजा की रक्षा तथा ईश्वर के अनन्त सामर्थ्य से कारण करके जगत् की उत्पत्ति आदि के विधान से इस ग्यारहवें सूक्त की सङ्गति दशवें सूक्त के अर्थ के साथ जाननी चाहिये। यह भी सूक्त सायणाचार्य्य आदि आर्य्यावर्त्तवासी तथा यूरोपदेशवासी विलसन साहब आदि ने विपरीत अर्थ के साथ वर्णन किया है॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेश्वरगुणा उपदिश्यन्ते।

Anvay:

यस्य सर्वे स्तोमाः स्तुतयः सहस्रमुत वा भूयसीरधिका रातयश्च सन्ति ता यमोजसा सह वर्त्तमानमीशानमिन्द्रं जगदीश्वरमभ्यनूषत सर्वतः स्तुवन्ति, स एव सर्वैर्मनुष्यैः स्तोतव्यः॥८॥

Word-Meaning: - (इन्द्रम्) सकलैश्वर्य्ययुक्तम् (ईशानम्) ईष्टे कारणात् सकलस्य जगतस्तम् (ओजसा) अनन्तबलेन। ओज इति बलनामसु पठितम्। (निघं०२.९) (अभि) सर्वतोभावे। अभीत्याभिमुख्यं प्राह। (निरु०१.३) (स्तोमाः) स्तुवन्ति यैस्ते स्तुतिसमूहाः (अनूषत) स्तुवन्ति। अत्र लडर्थे लुङ्। (सहस्रम्) असंख्याताः (यस्य) जगदीश्वरस्य (रातयः) दानानि (उत) वितर्के (वा) पक्षान्तरे (सन्ति) भवन्ति (भूयसीः) अधिकाः। अत्र वा छन्दसीति जसः पूर्वसवर्णत्वम्॥८॥
Connotation: - येन दयालुनेश्वरेण प्राणिनां सुखायानेके पदार्था जगति स्वौजसोत्पाद्य दत्ता, यस्य ब्रह्मणः सर्व इमे धन्यवादा भवन्ति, तस्यैवाश्रयो मनुष्यैर्ग्राह्य इति॥८॥अत्रैकादशसूक्ते हीन्द्रशब्देनेश्वरस्य स्तुतिर्निर्भयसम्पादनं सूर्य्यलोककृत्यं शूरवीरगुणवर्णनं दुष्टशत्रुनिवारणं प्रजारक्षणमीश्वरस्यानन्तसामर्थ्याज्जगदुत्पादनादिविधानमुक्तमतोऽस्य दशमसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति बोध्यम्। इदमपि सूक्तं सायणाचार्य्यादिभिर्यूरोपदेशनिवासिभिर्विलसनाख्यादिभिश्चान्यथैव व्याख्यातम्॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्या दयाळू परमेश्वराने प्राण्यांच्या सुखासाठी जगात अनेक उत्तम उत्तम पदार्थ आपल्या पराक्रमाने उत्पन्न करून जीवांना दिलेले आहेत. त्याच ब्रह्म्याची स्तुती करून सर्वजण त्याला धन्यवाद देतात, त्यासाठी सर्व माणसांनी त्याचाच आश्रय घेतला पाहिजे. ॥ ८ ॥