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तवा॒हं शू॑र रा॒तिभिः॒ प्रत्या॑यं॒ सिन्धु॑मा॒वद॑न्। उपा॑तिष्ठन्त गिर्वणो वि॒दुष्टे॒ तस्य॑ का॒रवः॑॥

English Transliteration

tavāhaṁ śūra rātibhiḥ praty āyaṁ sindhum āvadan | upātiṣṭhanta girvaṇo viduṣ ṭe tasya kāravaḥ ||

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Pad Path

तव॑। अ॒हम्। शू॒र॒। रा॒तिऽभिः॑। प्रति॑। आ॒य॒म्। सिन्धु॑म्। आ॒ऽवद॑न्। उप॑। अ॒ति॒ष्ठ॒न्त॒। गि॒र्व॒णः॒। वि॒दुः। ते॒। तस्य॑। का॒रवः॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:11» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:21» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:3» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अगले मन्त्र में इन्द्र शब्द से शूरवीर के गुणों का उपदेश किया है-

Word-Meaning: - हे (शूर) धार्मिक घोर युद्ध से दुष्टों की निवृत्ति करने तथा विद्या बल पराक्रमवाले वीर पुरुष ! जो (तव) आपके निर्भयता आदि दानों से मैं (सिन्धुम्) समुद्र के समान गम्भीर वा सुख देनेवाले आपको (आवदन्) निरन्तर कहता हुआ (प्रत्यायम्) प्रतीत करके प्राप्त होऊँ। हे (गिर्वणः) मनुष्यों की स्तुतियों से सेवन करने योग्य ! जो (ते) आपके (तस्य) युद्ध राज्य वा शिल्पविद्या के सहायक (कारवः) कारीगर हैं, वे भी आप को शूरवीर (विदुः) जानते तथा (उपातिष्ठन्त) समीपस्थ होकर उत्तम काम करते हैं, वे सब दिन सुखी रहते हैं॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में लुप्तोपमालङ्कार है। ईश्वर सब मनुष्यों को आज्ञा देता है कि-जैसे मनुष्यों को धार्मिक शूर प्रशंसनीय सभाध्यक्ष वा सेनापति मनुष्यों के अभयदान से निर्भयता को प्राप्त होकर जैसे समुद्र के गुणों को जानते हैं, वैसे ही उक्त पुरुष के आश्रय से अच्छी प्रकार जानकर उनको प्रसिद्ध करना चाहिये तथा दुःखों के निवारण से सब सुखों के लिये परस्पर विचार भी करना चाहिये॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेन्द्रशब्देन शूरवीरगुणा उपदिश्यन्ते।

Anvay:

हे शूर! ये तव रातिभिस्त्वां सिन्धुमिवावदन् सन्नहं प्रत्यायम्। हे गिर्वणस्तव तस्य च कारवस्त्वां शूरं विदुरुपातिष्ठन्त ते सदा सुखिनो भवन्ति॥६॥

Word-Meaning: - (तव) बलपराक्रमयुक्तस्य (अहम्) सर्वो जनः (शूर) धार्मिक दुष्टनिवारक विद्याबलपराक्रमवन् सभाध्यक्ष ! (रातिभिः) अभयादिदानैः (प्रति) प्रतीतार्थे क्रियायोगे (आयम्) प्राप्नुयाम्। अत्र लिङर्थे लङ्। (सिन्धुम्) स्यन्दते प्रस्रवति सुखानि समुद्र इव गम्भीरस्तम् (आवदन्) समन्तात् ब्रुवन्सन् (उप) सामीप्यार्थे (अतिष्ठन्त) स्थिरा भवेयुः। अत्र लिङर्थे लङ्। (गिर्वणः) गीर्भिर्वन्द्यते सेव्यते जनैस्तत्सम्बुद्धौ (विदुः) जानन्ति (ते) तव (तस्य) राज्यस्य युद्धस्य शिल्पस्य वा (कारवः) ये कार्य्याणि कुर्वन्ति ते॥६॥
Connotation: - अत्र लुप्तोपमालङ्कारौ स्तः। ईश्वरः सर्वानाज्ञापयति-मनुष्यैर्धार्मिकस्य शूरस्य प्रशंसितस्य सभाध्यक्षस्य वा सेनाध्यक्षस्य मनुष्याभयदानेन समुद्रस्य जन्तव इवाश्रयेण राज्यकार्य्याणि सम्यग् विदित्वा संसाधनीयानि दुःखनिवारणेन सुखाय परस्परमुपस्थितिश्च कार्य्येति॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात लुप्तोपमालंकार आहे. ईश्वर सर्व माणसांना आज्ञा देतो की, जसे माणसांना धार्मिक शूर, प्रशंसनीय सभाध्यक्ष किंवा सेनापतीच्या अभयदानाने निर्भयता प्राप्त होऊन जसे समुद्राच्या गुणांना जाणता येते तसे वरील पुरुषाच्या आश्रयाने राजकारण जाणून त्यांना प्रकट केले पाहिजे. दुःखाच्या निवारणासाठी व सर्वांच्या सुखासाठी परस्पर विचारही केला पाहिजे. ॥ ६ ॥