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स॒ख्ये त॑ इन्द्र वा॒जिनो॒ मा भे॑म शवसस्पते। त्वाम॒भि प्रणो॑नुमो॒ जेता॑र॒मप॑राजितम्॥

English Transliteration

sakhye ta indra vājino mā bhema śavasas pate | tvām abhi pra ṇonumo jetāram aparājitam ||

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Pad Path

स॒ख्ये। ते॒। इ॒न्द्र॒। वा॒जिनः॑। मा। भे॒म॒। श॒व॒सः॒। प॒ते॒। त्वाम्। अ॒भि। प्र। नो॒नु॒मः॒। जेता॑रम्। अप॑राऽजितम्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:11» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:21» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर भी अगले मन्त्र में इन्हीं दोनों का प्रकाश किया है-

Word-Meaning: - हे (शवसः) अनन्तबल वा सेनाबल के (पते) पालन करनेहारे ईश्वर वा अध्यक्ष ! (अभिजेतारम्) प्रत्यक्ष शत्रुओं को जिताने वा जीतनेवाले (अपराजितम्) जिसका पराजय कोई भी न कर सके (त्वा) उस आप को (वाजिनः) उत्तम विद्या वा बल से अपने शरीर के उत्तम बल वा समुदाय को जानते हुए हम लोग (प्रणोनुमः) अच्छी प्रकार आप की वार-वार स्तुति करते हैं, जिससे (इन्द्र) हे सब प्रजा वा सेना के स्वामी ! (ते) आप जगदीश्वर वा सभाध्यक्ष के साथ (सख्ये) हम लोग मित्रभाव करके शत्रुओं वा दुष्टों से कभी (मा भेम) भय न करें॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। जो मनुष्य परमेश्वर की आज्ञा के पालने वा अपने धर्मानुष्ठान से परमात्मा तथा शूरवीर आदि मनुष्यों में मित्रभाव अर्थात् प्रीति रखते हैं, वे बलवाले होकर किसी मनुष्य से पराजय वा भय को प्राप्त कभी नहीं होते॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तावेवोपदिश्येते।

Anvay:

हे शवसस्पते जगदीश्वर सेनाध्यक्ष वा! अभिजेतारमपराजितं त्वां वाजिनो विजानन्तो वयं प्रणोनुमः पुनःपुनर्नमस्कुर्मः, तथा हे इन्द्र ! ते तव सख्ये कृते शत्रुभ्यः कदाचिन्मा भेम भयं मा करवाम॥२॥

Word-Meaning: - (सख्ये) मित्रभावे कृते (ते) तवेश्वरस्य न्यायशीलस्य सभाध्यक्षस्य वा (इन्द्र) सर्वस्वामिन्नीश्वर सभाध्यक्ष राजन् ! वा (वाजिनः) वाजः परमोत्कृष्टविद्याबलाभ्यामात्मनो देहस्य प्रशस्तो बलसमूहो येषामस्ति ते (मा) निषेधार्थे, क्रियायोगे (भेम) बिभयाम भयं करवाम। अत्र लोडर्थे लुङ्। बहुलं छन्दसीति च्लेर्लुक्। छन्दस्युभयथेति लुङ आर्धधातुकसंज्ञामाश्रित्य मसो ङित्वाभावाद् गुणश्च। (शवसः) अनन्तबलस्य प्रमितबलस्य वा। शव इति बलनामसु पठितम्। (निघं०२.९) (पते) सर्वस्वामिन्नीश्वर सभाध्यक्ष राजन्वा (त्वाम्) जगदीश्वरं सभाध्यक्षं वा (अभि) आभिमुख्यार्थे (प्र) प्रकृष्टार्थे (नोनुमः) अतिशयेन स्तुमः। अयं ‘णु स्तुतौ’ इत्यस्य यङ्लुकि प्रयोगः। उपसर्गादसमासेऽपि णोपदेशस्य। (अष्टा०८.४.१४) इति णकारादेशश्च। (जेतारम्) शत्रून् जापयति जयति वा तम् (अपराजितम्) यो न केनापि पराजेतुं शक्यते तम्॥२॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। ये मनुष्या परमेश्वरे तदाज्ञाचरणे तथा शूरादिमनुष्येषु नित्यं मित्रतामाचरन्ति, ते बलवन्तो भूत्वा नैव शत्रुभ्यो भयपराभवौ प्राप्नुवन्तीति॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. जी माणसे परमेश्वराची आज्ञा पालन करतात व शूरवीर माणसांमध्ये मित्रभाव अर्थात प्रेम ठेवतात, ती बलवान बनतात व शत्रूंकडून त्यांचा पराजय होत नाही व ती भयभीत होत नाहीत. ॥ २ ॥