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आ भ॑रतं॒ शिक्ष॑तं वज्रबाहू अ॒स्माँ इ॑न्द्राग्नी अवतं॒ शची॑भिः। इ॒मे नु ते र॒श्मय॒: सूर्य॑स्य॒ येभि॑: सपि॒त्वं पि॒तरो॑ न॒ आस॑न् ॥

English Transliteration

ā bharataṁ śikṣataṁ vajrabāhū asmām̐ indrāgnī avataṁ śacībhiḥ | ime nu te raśmayaḥ sūryasya yebhiḥ sapitvam pitaro na āsan ||

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Pad Path

आ। भ॒र॒त॒म्। शिक्ष॑तम्। व॒ज्र॒बा॒हू॒ इति॑ वज्रऽबाहू। अ॒स्मान्। इ॒न्द्रा॒ग्नी॒। अ॒व॒त॒म्। शची॑भिः। इ॒मे। नु। ते। र॒श्मयः॑। सूर्य॑स्य। येभिः॑। स॒ऽपि॒त्वम्। पि॒तरः॑। नः॒। आस॑न् ॥ १.१०९.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:109» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:29» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पढ़ाने और पढ़नेवाले कैसे होते हैं, यह उपदेश अगले मन्त्र में इन्द्र और अग्नि नाम से किया है ।

Word-Meaning: - (वज्रबाहू) जिनके वज्र के तुल्य बल और वीर्य हैं वे (इन्द्राग्नी) हे पढ़ने और पढ़ानेवालो ! तुम दोनों जैसे (इमे) ये (सूर्यस्य) सूर्य की (रश्मयः) किरणे हैं और (ते) रक्षा आदि करते हैं और जैसे (पितरः) पितृजन (येभिः) जिन कामों से (नः) हम लोगों के लिये (सपित्वम्) समान व्यवहारों की प्राप्ति करने वा विज्ञान को देकर उपकार के करनेवाले (आसन्) होते हैं वैसे (शचीभिः) अच्छे काम वा उत्तम बुद्धियों से (अस्मान्) हम लोगों को (आ, भरतम्) स्वीकार करो, (शिक्षतम्) शिक्षा देओ और (नु) शीघ्र (अवतम्) पालो ॥ ७ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो अच्छी शिक्षा से मनुष्यों में सूर्य के समान विद्या का प्रकाशकर्त्ता और माता-पिता के तुल्य कृपा से रक्षा करने वा पढ़ानेवाला तथा सूर्य के तुल्य प्रकाशित बुद्धि को प्राप्त और दूसरा पढ़नेवाला है, उन दोनों का नित्य सत्कार करो, इस काम के विना कभी विद्या की उन्नति होने का संभव नहीं हैं ॥ ७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाध्यापकाध्येतारौ कीदृशावित्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे वज्रबाहू इन्द्राग्नी युवां य इमे सूर्यस्य रश्मयः सन्ति ते रक्षणादिकं च कुर्वन्ति यथा च पितरो येभिर्यैः कर्मभिर्नोऽस्मभ्यं सपित्वं प्रदायोपकारका आसन् तथा शचीभिरस्मान्नाभरतं शिक्षतं सततं न्ववतं च ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (आ) (भरतम्) धारयतम् (शिक्षतम्) विद्योपादानं कारयतम् (वज्रबाहू) वज्रौ बलवीर्य्ये बाहू ययोस्तौ (अस्मान्) (इन्द्राग्नी) अध्येत्रध्यापकौ (अवतम्) रक्षणादिकं कुरुतम् (शचीभिः) कर्मभिः प्रज्ञाभिर्वा (इमे) प्रत्यक्षाः (नु) शीघ्रम् (ते) (रश्मयः) किरणाः (सूर्य्यस्य) मार्त्तण्डमण्डलस्य (येभिः) (सपित्वम्) समानं च तत् पित्वं प्रापणं वा विज्ञानं च तत्। अत्र पिगतावित्यस्माद्धातोरौणादिकस्त्वन् प्रत्ययः। (पितरः) यथा जनकाः (नः) अस्मभ्यम् (आसन्) भवन्ति ॥ ७ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यः सुशिक्षया मनुष्येषु सूर्यवद्विद्याप्रकाशको मातापितृवत्कृपया रक्षकोऽध्यापकस्तथा सूर्यवत् प्रकाशितप्रज्ञोऽध्येता चास्ति तौ नित्यं सत्कुरुत नह्येतेन कर्मणा विना कदाचिद्विद्योन्नतिः सम्भवति ॥ ७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! उत्तम शिक्षणाने माणसात सूर्याप्रमाणे विद्येचा प्रकाशक, मात्यापित्याप्रमाणे कृपाळू, रक्षक व अध्यापक आणि सूर्याप्रमाणे तेजस्वी प्रज्ञायुक्त अध्यापक व विद्यार्थी या दोघांचा नित्य सत्कार करावा. या कर्माशिवाय विद्येची कधी वाढ होणार नाही. ॥ ७ ॥