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यदब्र॑वं प्रथ॒मं वां॑ वृणा॒नो॒३॒॑ऽयं सोमो॒ असु॑रैर्नो वि॒हव्य॑:। तां स॒त्यां श्र॒द्धाम॒भ्या हि या॒तमथा॒ सोम॑स्य पिबतं सु॒तस्य॑ ॥

English Transliteration

yad abravam prathamaṁ vāṁ vṛṇāno yaṁ somo asurair no vihavyaḥ | tāṁ satyāṁ śraddhām abhy ā hi yātam athā somasya pibataṁ sutasya ||

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Pad Path

यत्। अब्र॑वम्। प्र॒थ॒मम्। वा॒म्। वृ॒णा॒नः॑। अ॒यम्। सोमः॑। असु॑रैः। नः॒। वि॒ऽहव्यः॑। ताम्। स॒त्याम्। श्र॒द्धाम्। अ॒भि। आ। हि। या॒तम्। अथ॑। सोम॑स्य। पि॒ब॒त॒म्। सु॒तस्य॑ ॥ १.१०८.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:108» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:27» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे दोनों कैसे हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे स्वामी और शिल्पी जनो ! (वाम्) तुम्हारे लिये (प्रथमम्) पहिले (यत्) जो मैंने (अब्रवम्) कहा वा (असुरैः) विद्याहीन मनुष्यों की (वृणानः) बड़ाई किई हुई (विहव्यः) अनेकों प्रकार से ग्रहण करने योग्य (अयम्) यह प्रत्यक्ष (सोमः) उत्पन्न हुआ पदार्थों का समूह (तुम्हारा) है उससे (नः) हम लोगों की (ताम्) उस (सत्याम्) सत्य (श्रद्धाम्) प्रीति को (अभि, आ, यातम्) अच्छी प्रकार प्राप्त होओ (अथ) इसके पीछे (हि) एक निश्चय के साथ (सुतस्य) निकाले हुए (सोमस्य) संसारी वस्तुओं के रस को (पिबतम्) पिओ ॥ ६ ॥
Connotation: - जन्म के समय में सब मूर्ख होते हैं और फिर विद्या का अभ्यास करके विद्वान् भी हो जाते हैं, इससे विद्याहीन मूर्ख जन ज्येष्ठ और विद्वान् जन कनिष्ठ गिने जाते हैं। सबको यही चाहिये कि कोई हो परन्तु उसके प्रति सांची ही कहैं किन्तु किसीके प्रति असत्य न कहें ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे स्वामिशिल्पिनौ वां प्रथमं यदहमब्रवमसुरैर्वृणानो विहव्योऽयं सोमो युवयोरस्ति तेन नोऽस्माकं तां सत्यां श्रद्धामभ्यायायातथ हि किल सुतस्य सोमस्य रसं पिबतम् ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (यत्) वचः (अब्रवम्) उक्तवानस्मि (प्रथमम्) (वाम्) युवाभ्यां युवयोर्वा (वृणानः) स्तूयमानः (अयम्) प्रत्यक्षः (सोमः) उत्पन्नः पदार्थसमूहः (असुरैः) विद्याहीनैर्मनुष्यैः (नः) अस्माकम् (विहव्यः) विविधतया ग्रहीतुं योग्यः (ताम्) (सत्याम्) (श्रद्धाम्) (अभि) (आ) (हि) किल (यातम्) आगच्छतम् (अथ) आनन्तर्ये। (सोमस्य०) इति पूर्ववत् ॥ ६ ॥
Connotation: - जन्मसमये सर्वेऽविद्वांसो भवन्ति पुनर्विद्याभ्यासं कृत्वा विद्वांसश्च तस्माद्विद्याहीना मूर्खा ज्येष्ठा विद्यावन्तश्च कनिष्ठा गण्यन्ते। कोऽपि भवेत् परन्तु तं प्रति सत्यमेव वाच्यं न कञ्चित् प्रत्यसत्यम् ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जन्मतः सर्वजण अज्ञानी असतात, नंतर विद्येचा अभ्यास करून विद्वानही होतात; परंतु काही वेळा विद्याहीन मूर्खजन ज्येष्ठ व विद्वान जन कनिष्ठ समजले जातात तेव्हा सर्वांनी खऱ्याला खरे म्हणावे खोट्याला खोटे म्हणावे. ॥ ६ ॥