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यानी॑न्द्राग्नी च॒क्रथु॑र्वी॒र्या॑णि॒ यानि॑ रू॒पाण्यु॒त वृष्ण्या॑नि। या वां॑ प्र॒त्नानि॑ स॒ख्या शि॒वानि॒ तेभि॒: सोम॑स्य पिबतं सु॒तस्य॑ ॥

English Transliteration

yānīndrāgnī cakrathur vīryāṇi yāni rūpāṇy uta vṛṣṇyāni | yā vām pratnāni sakhyā śivāni tebhiḥ somasya pibataṁ sutasya ||

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Pad Path

यानि॑। इ॒न्द्रा॒ग्नी॒ इति॑। च॒क्रथुः॑। वी॒र्या॑णि। यानि॑। रू॒पाणि॑। उ॒त। वृष्ण्या॑नि। या। वा॒म्। प्र॒त्नानि॑। स॒ख्या। शि॒वानि॑। तेभिः॑। सोम॑स्य। पि॒ब॒त॒म्। सु॒तस्य॑ ॥ १.१०८.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:108» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:26» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ऐश्वर्य्ययुक्त स्वामी और शिल्पविद्या की क्रियाओं में कुशल शिल्पीजन के कामों को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (इन्द्राग्नी) स्वामि और सेवक (वाम्) तुम्हारे (यानि) जो (वीर्याणि) पराक्रमयुक्त काम (यानि) जो (रूपाणि) शिल्पविद्या से सिद्ध, चित्र, विचित्र, अद्भुत जिनका रूप वे विमान आदि यान और (वृष्ण्यानि) पुरुषार्थयुक्त काम (या) वा जो तुम दोनों के (प्रत्नानि) प्राचीन (शिवानि) मङ्गलयुक्त (सख्या) मित्रों के काम हैं (तेभिः) उनसे (सुतस्य) निकाले हुए (सोमस्य) संसारी वस्तुओं के रस को (पिबतम्) पिओ (उत) और हम लोगों के लिये (चक्रथुः) उनसे सुख करो ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में इन्द्र शब्द से धनाढ्य और अग्नि शब्द से विद्यावान् शिल्पी का ग्रहण किया जाता है, विद्या और पुरुषार्थ के विना कामों की सिद्धि कभी नहीं होती और न मित्रभाव के विना सर्वदा व्यवहार सिद्ध हो सकता है, इससे उक्त काम सर्वदा करने योग्य हैं ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथैश्वर्ययुक्तस्य स्वामिनः शिल्पविद्याक्रियाकुशलस्य शिल्पिनश्च कर्माण्युपदिश्यन्ते ।

Anvay:

हे इन्द्राग्नी यो वां यानि वीर्याणि यानि रूपाणि वृष्ण्यानि कर्माणि या प्रत्नानि शिवानि सख्या सन्ति तेभिस्तैः सुतस्य सोमस्य रसं पिबतमुतास्मभ्यं सुखं चक्रथुः कुर्यातम् ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (यानि) (इन्द्राग्नी) स्वामिभृत्यौ (चक्रथुः) कुर्य्यातम् (वीर्याणि) पराक्रमयुक्तानि कर्माणि (यानि) (रूपाणि) शिल्पसिद्धानि चित्ररूपाणि यानादीनि वस्तूनि (उत) अपि (वृष्ण्यानि) पुरुषार्थयुक्तानि कर्माणि (या) यानि (वाम्) युवयोः (प्रत्नानि) प्राक्तनानि (सख्या) सख्यानि सख्युः कर्माणि (शिवानि) मङ्गलमयानि (तेभिः) तैः (सोमस्य) संसारस्थपदार्थसमूहस्य रसम् (पिबतम्) (सुतस्य) निष्पादितस्य ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्रेन्द्रशब्देन धनाढ्योऽग्निशब्देन विद्यावान् शिल्पी गृह्यते विद्यापुरुषार्थाभ्यां विना कार्यसिद्धिः कदापि जायते न च मित्रभावेन विना सर्वदा व्यवहारः सिद्धो भवितुं शक्यस्तस्मादेतत्सर्वदाऽनुष्ठेयम् ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात इंद्र शब्दाने धनाढ्य व अग्नी शब्दाने कारागिराचे ग्रहण केलेले आहे. विद्या व पुुरुषार्थाशिवाय कामाची सिद्धी कधी होऊ शकत नाही किंवा मैत्रीशिवाय नेहमी व्यवहार सिद्ध होऊ शकत नाही. त्यामुळे वरील काम सदैव करण्यायोग्य असते. ॥ ५ ॥