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याव॑दि॒दं भुव॑नं॒ विश्व॒मस्त्यु॑रु॒व्यचा॑ वरि॒मता॑ गभी॒रम्। तावाँ॑ अ॒यं पात॑वे॒ सोमो॑ अ॒स्त्वर॑मिन्द्राग्नी॒ मन॑से यु॒वभ्या॑म् ॥

English Transliteration

yāvad idam bhuvanaṁ viśvam asty uruvyacā varimatā gabhīram | tāvām̐ ayam pātave somo astv aram indrāgnī manase yuvabhyām ||

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Pad Path

याव॑त्। इद॒म्। भुव॑नम्। विश्व॑म्। अ॒स्ति॒। उ॒रु॒ऽव्यचा॑। व॒रि॒मता॑। ग॒भी॒रम्। तावा॑न्। अ॒यम्। पात॑वे। सोमः॑। अ॒स्तु॒। अर॑म्। इ॒न्द्रा॒ग्नी॒ इति॑। मन॑से। यु॒वऽभ्या॑म् ॥ १.१०८.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:108» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:26» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम (यावत्) जितना (उरुव्यचा) बहुत व्याप्ति अर्थात् पूरेपन और (वरिमता) बहुत स्थूलता के साथ वर्त्तमान (गभीरम्) गहिरा (भुवनम्) सब वस्तुओं के ठहरने का स्थान (इदम्) यह प्रकट अप्रकट (विश्वम्) जगत् (अस्ति) है (तावान्) उतना (अयम्) यह (सोमः) उत्पन्न हुआ पदार्थों का समूह है, उसका (मनसे) विज्ञान कराने को (इन्द्राग्नी) वायु और अग्नि (अरम्) परिपूर्ण हैं, इससे (युवभ्याम्) उन दोनों से (पातवे) रक्षा आदि के लिये उतने बोध और पदार्थ को स्वीकार करो ॥ २ ॥
Connotation: - विचारशील पुरुषों को यह अवश्य जानना चाहिये कि जहाँ-जहाँ मूर्त्तिमान् लोक हैं, वहाँ-वहाँ पवन और बिजुली अपनी व्याप्ति से वर्त्तमान हैं। जितना मनुष्यों का सामर्थ्य है, उतने तक इनके गुणों को जानकर और पुरुषार्थ से उपयोग लेकर परिपूर्ण सुखी होवें ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे मनुष्या यूयं यावदुरुव्यचा वरिमता सह वर्त्तमानं गभीरं भुवनमिदं विश्वमस्ति तावानयं सोमोऽस्ति मनस इन्द्राग्नी अरमतो युवभ्याम् पातवे तावन्तं बोधं पुरुषार्थं च स्वीकुरुत ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (यावत्) (इदम्) प्रत्यक्षाप्रत्यक्षलक्षणम् (भुवनम्) सर्वेषामधिकरणम् (विश्वम्) जगत् (अस्ति) वर्त्तते (उरुव्यचा) बहुव्याप्त्या (वरिमता) बहुस्थूलत्वेन सह (गभीरम्) अगाधम् (तावान्) तावत्प्रमाणः (अयम्) (पातवे) पातुम् (सोमः) उत्पन्नः पदार्थसमूहः (अस्तु) भवतु (अरम्) पर्याप्तम् (इन्द्राग्नी) वायुसवितारौ (मनसे) विज्ञापयितुम् (युवभ्याम्) एताभ्याम् ॥ २ ॥
Connotation: - विचक्षणैः सर्वैरिदमवश्यं बोध्यं यत्र यत्र मूर्त्तिमन्तो लोकाः सन्ति तत्र तत्र वायुविद्युतौ व्यापकत्वस्वरूपेण वर्त्तेते। यावन्मनुष्याणां सामर्थ्यमस्ति तावदेतद्गुणान् विज्ञाय पुरुषार्थेनोपयोज्यालं सुखेन भवितव्यम् ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - विचारशील पुरुषांनी हे अवश्य जाणावे की जेथे जेथे मूर्तिमान गोल आहेत तेथे तेथे वायू व विद्युतची व्याप्ती असते. जितके माणसांचे सामर्थ्य आहे. तितके त्यांच्या गुणांना जाणून पुरुषार्थाने उपयोग करून पूर्णपणे सुखी व्हावे ॥ २ ॥